पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२०९

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अतिवेगित अतिसंधि अतिवेगित-वि० [सं०] १ तेजी से बनाया हुआ । २ तीव्र गति वढिके, नदियाँ नट ह्व गर्दै काटि किनारे । बेगि चलो तो चलो से चलनेवाला [को०] । ब्रज में कवि तोख कहं ब्रजराज हमारे । वे नद बाहृत सिंधु अतिवेध–सन्ना गुं० [सं०] १ अधिक निकट का सवय । २ दशमी भए अरु सिधु ते ६ है हलाहल मारे' (शब्द०)। मके पौच | और एकादशी को योग [को०) मुख्य भेद माने गए हैं, यथा---(१) रूपकातिशयोक्ति (२) अतिवेल–वि० [सं०] १. अत्यत । असीम् । बेहद ।' २ मर्यादा का । भेदकातिशयोक्ति, (३) नवधातिशयोक्ति (४) श्रमवधातिशयोक्ति उल्लघन करनेवाला (को०)। ३ उद्वेलित (को०)। श्रीर (५) पचम भेद के अतर्गत ग्रक्रमातिशयोक्ति, चालाअतिवेला--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ विलव । देर । २ अनुपयुक्त तिशयोक्ति तया अत्यतातिशयोक्ति है ।। ३" समय [को॰] । अतिशयोपमाः–सशी स्त्री० [म०] उपमा अलकार का भेद ।। अतिव्यथन--संज्ञा पुं० [सं०] तीव्र यातना अत्यधिक पीडा । विशेप–इनमे यह दिखाया जाता है कि कोई वस्तु सदा अपने अतिव्यथा--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'अतिव्यथन । विपय में एक है, दूसरी वस्तु मे उसकी उपमा नहीं दी जा अतिव्यय कर्म–संज्ञा पुं० [सं०] फजूलखर्ची का काम । मकती । जैसे—'केमोदाम प्रगट प्रकास सो अकास पुनि, ईम हू अतिव्याप्ति--सज्ञा स्त्री० [सं०] न्याय में एक लक्षण का एक दोष । के नीम रजनीस अवरेखिऐ । थल थन जल जल अचन अगल किसी लक्षण या कथन के अंतर्गत लक्ष्य के अतिरिक्त अन्य अति, कोमल कमल देहु बरन विनेखिएँ। मुकुर कठोर बहू | वस्तु के आ जाने का दोष । नाहिने अचल जम वसुधा सुधा हू निय अधरन लेखिऐ । एकरस विशेष—जहाँ लक्षण या लिग लक्ष्य या लिंगी के सिवाय अन्य एकझप जाकी गीता सीता सुनि, तेरो सो बदन तैनो तोही विप देखिए ।---केशव प्र०, पदार्थों पर भी घट सके वहाँ ‘अतिव्याप्ति' दीप होता है ।। ० १, प० १६२ ।' - जैसे--‘चौपाए सव पिज है, इस कथन में मगर और घडि अतिशस्त्र—-वि० [म०] शम्त्र ने 41 तेज वा बढा हुआ [को०] । याल अादि चार पैरवाले अडज भी आ जाते है । अत इसमे । अतिशायन--संज्ञा पुं० [सं०] १ प्रधानता। श्रेष्ठना। २ ग्राधिक्य । ३ अागे वढं जाना [को॰] । अतिव्याप्ति दोप है। अतिशयी–वि० [स० अतिशायिन्।६ प्रधान । श्रेष्ठ । २ अत्यधिक । अतिशक्करी- सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १५ वर्ण के वृत्तो की सज्ञा । इसके अआगे बढ़ जानेवाला (को॰] । संपूर्ण भेद ३२७६८ हो सकते हैं। उ०---पंद्रह अति शक्करी अतिशयनी—मज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वृत्त [को०] ।' सहस बत्तीस सात से अठसठि कोय |–भिखारी०'ग्र० भ०१, अतिशीत--सज्ञा पुं० [सं०] ठठ का अतिक्रमण । मथकर जाडा [को०)। पृ० २३६ । अतिशीलन--संज्ञा पुं० [म.] अभ्यमि। मश्क। वारवार मनन या अतिशय-वि० [सं०] वहुत । ज्यादा । अत्यत । अतिशय-सझा पुं० प्राचीन शास्त्रकारों के अनुसार एक अलकार। सपादन । विशेष—इसमे किसी वस्तु की उत्तरोत्तर से नविना या असमविना अतिशूद्र-सज्ञा पुं० [म०] वह शूद्र जिसके हाथ का जल उच्चवर्ण के | लोग ने ग्रहण करें। अत्यने । दिखाई जाती है जैसे—'ह्व न होय तो यिर नही, यिर तो अतिशेप-सज्ञा पुं० [सं०] वहुत थोडा बचा हुम्रा ग्रुश [को॰] । विन फनवान । सत्पुम्पन को कोप है, खल' की प्रीति समान, अतिश्रुत-वि० [स० अति+श्रत] अतिप्रसिद्ध । विख्यात । उ०(शब्द॰) । कोई कोई इस अल कार को अधिक अलकार के | माधव ब्रह्मचारी ने ज्योही वह अतिश्रुत नाम सुना वह अचकअतभुक्त मानते हैं।' चाकर अबपाली की ओर ताकत रह गया |---३० न०, अतिशयता--सक्षा स्त्री० [सं० अतिशयता ] आधिक्य । प्राचुर्य ।। पृ० २५५।। बहुतायत । उ०—-स्वगिक सुख की सी अाभास अतिशबंता में अतिश्रेष्ठ-वि० [म०] सर्वोत्कृष्ट | सबसे उत्तम (को०)। अचिर महान् ।—-पल्लव, पृ० ३२ । |'. अतिश्व-वि० [म० अतिश्वत्] कुत्तो से तेज दौडनेदाला सूर। उ०— अतिशयन--संज्ञा पुं॰ [ मं० ] दे० 'अतिशयता' । ' | जो सूकर अपनी द्रुतगति से कुत्तो को बहुत पीछे छोड़ देते थे वे अतिशयनी--संज्ञा स्त्री॰ [सं० ] चित्रलेखा नामक एक छद को॰] । अतिश्ब पदवी के अधिकारी होते थे।--सपू० अभि० ग्र० अतिशय लु–वि० [सं०] अति की ओर वा अागे वळ जाने की चेष्टा पृ० २४८ | | केरनेवाला [को । ' : - अतिसध—सज्ञा पुं० [म०] प्रतिज्ञा या प्राज्ञा का भग करना। विधि श्रुतिशयित--वि० [सं०] १ अत्यधिक । २. आगे बढ़ा हुआ [को०] । या देशविरुद्ध अाचरण । अतिशय-वि० [सं० प्रतिशयिन्] १ प्रधान । श्रेष्ठ । २ बहुत क्रि० प्र०—करना ।—होना । अधिक [को०] । | अतिसंधान—संज्ञा पुं० [स० अतिसन्धान] १ अतिक्रमण । ३ विश्वास अतिशयोक्ति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ क्सिी वात-को वढा वढाकर | घात । धोखा ।।। | कहना । २, एक अलकार। - । ' क्रि० प्र०—करना ।—होना । विशेष—इममे उपमान से उपमेय का निगरण 'लोकंमीमा का अतिसधि—सच्चा स्त्री० [स० अतिसन्धि] १ सामथ्र्य से अधिक सहायता उल्लघन प्रधान रूप दिखाया जाता है। जैसे---‘गोपिन के देने की शर्त । २ कि मित्र की सहायता से दूसरे मित्र या मैसुवान के नीर पनारे भए पुनि हुँ गए नारे नारे भए नदियाँ ,' सहायक की प्राप्ति [को०] । ।