पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२०७

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अतिमानव अतिरूक्ष अतिमानव-----सज्ञा पुं० [सं०] अलौकिल शक्ति तथा गुणों में से उच्च अतिरजिन--वि० [सं० अतिरञ्जित] १ अतिरजना से युक्त । अत्युमनुष्य [को॰] । क्तिपूर्ण । उ०--रह अतिरजित सी तू नका' चिनेन सी फिर भी कुछ अंतिमानवी–वि० [म० अतिमानव + ई (प्रत्य॰) 1 मानव से संबध न कम थी 1---नहर, पृ० ७१ । २ अत्यन रागमय । उ०—देखा रखनेवाली । अलौकिक । देवी । उ०--उनकी अत्यन हार्दिक | मनु ने वह अतिरजित विजन विश्व का नँव एकति ।—कामनम्रता अतिमानवी थी ।—हिंदु सर्पता, पृ० २५६ ।। यनी, पृ० १४ ।। अतिरक्त–वि० [म०] १ वहुत अधिक नाल । २ अत्यधिक अनुरक्त अतिमानुप'--वि० [सं०] मनुष्य की शक्ति से बाहर । अमानुषी । दैवी [को॰] । अंतिमानुप-सज्ञा पु० [सं०] १० 'अतिमानव [को॰] । अतिरक्ता--संज्ञा स्त्री० [स०] अग्नि की एक जीभ का नाम , अग्नि अतिमाय--वि० [सं०] जो मायावी न हो । माया से रहिन । वीनराग। | की मात जी नो मे से एक । वो०३ ।। मायातित [को०]। । अतिरथ—सज्ञा पुं० [म०] १० ‘अतिर' [को॰] । अतिमित–वि० [म०] अररिभिन । अतुन । वेदांज। बहुत अतिरथि:--सज्ञा पु० [म० अरथिन् ] दे० 'अतिरथी' । उ०— अधिक । वेहिसाब । बेठिकाना । अमरन करि जु न जीते जाहीं । पमादि अतिथि जिनि अतिमित–वि० [म०] जो तिभित या गीला न हो [को॰] । माही !--नद ग्र०, पृ० २१९ । अतिमित्र--सज्ञा पु० मि०] अत्यंत घनिष्ठ मित्र । २ अत्यनिक अतिरयी सज्ञा पुं० [म० अतिरथिन् ] रथ पर चढकर राडनेत्रा ना | भ ग्रह [को०] ।। योद्धा । बह जो अकेने रविवो मे लड सके । उ०-- अतिर्भािमर---वि० [सं०] तेजी से पलकें गिरानेवाला [को॰] । अतिरथी महारथी सरव कालानल चारा ।--राम० धर्म अतिमुक्त--वि० [सं०] १ जिसकी मुक्ति हो गई हो । निर्वाण प्राप्त । पृ० १४७ ।। २ नि पा । विप परामनारहित । वीतराग । अतिरभन—सशा पु० [म.] असामान्य गति । अत्यधिक शीघ्रता अतिमुक्त’--सज्ञा पुं० १ माधवी नतः । २ तिगुना । निरिच्छ । ३। [को॰] । मरुमा का पौधा ।। अतिरसा–मशा स्त्री॰ [न०] विभिन्न प्रकार के पौधो के नाम जैसे, अतिमुक्तक-सज्ञा पुं० [मं०] दे॰ 'प्रतिमुक्त" [को॰] । मूर्क, रारना और तनक [को॰] । अतिमुक्ति–सज्ञा पुं० [सं०] परम निर्वाण । मोक्ष [को०] । प्रतिराग- सच्चा पु० [म०] प्रवल उत्सुकता [को०] । अतिमुशल---सज्ञा पु० [सं०] किसी नक्षत्र में मंगल अस्त हो और अतिरात्र--सज्ञा पु० [पु०] १ ज्योतिष्टोम नामक यज्ञ का एक गौण उसके सत्रहवें या अठारहवें नक्षत्र से अनुवक्र हो तो उस वक्र अग । २ वह मंत्र जो अति रात्र यज्ञ के अंत में गाया जाय । ३ चाक्षुष मनु के एक पुत्र का नाम । ४ मध्य रात्रि । को अति मुशन कहते हैं । अतिराष्ट्र--संज्ञा पुं० [भ] पुराण के अनुसार एक नाग या मई । । विशेष--फलित ज्योतिष के अनुसार इससे चोर और शस्त्र का अतिरिक्त क्रि० वि० [मं०] सिवाय । अलावा । जैसे—इसे | भय तथा अनावृष्टि होती है । हमारे अतिरिक्त कोई नही जानता (शब्द॰) । अतिमूत्र--सज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक मे अत्रेय मत के अनुपार छह प्रकार अतिरिक्त-वि० १ अधिक 1 ज्यादा । बढती । शेप । वचा अ के प्रमेहो मे से एक । वहुमूत्र । हुआ । जैसे खाने पहनने से अतिरिक्त धन को अच्छे काम विशेष—इममे अधिक मूत्र उतरता है और रोगी क्षीण होता। में लगाशो (शब्द॰) । २ न्यारा । अलग । जुदा । मित्र। जाता है । इमे वतु मूत्र भी कहते हैं । जैसे,—जो सव मे पूर्णपुरुष और जीव मे अतिरिक्त है वही जगत् का बनानेवाला है (शब्द०)। अतिमैथुन- ज्ञा पुं० [नं०] अत्यधिक से भोग [को०] । अतिरिक्तकबला-मज्ञा स्त्री॰ [म.] जैन मत के अनुसार सिद्ध शिला अतिमृत्यु- 'ज्ञा पुं० [स] मोक्ष । मुक्ति । के उत्तर का सिंहासन जिसपर तीर्थकर बैठते है । अतिमदा--- ज्ञा स्त्री० [म०] १ मुगध की बहुत अधिक मात्रा । २ अतिरिक्तपत्र--संज्ञा पुं० [सं०] वह विज्ञपान समाचार या सूचना नवमति नका। नेवारी । मोगरी । आदि जो अलग से छापकर किमी समाचार पत्र के साथ अतियव—संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का जौ [को०] । वांटा जाय । विशेप पत्र । कोडपत्र । अतियात–वि० [म०] बहुत तेज च ननेवावा । तीव्र गतिवाना [को०]। अतिरिक्तलाभ-सज्ञा पुं० [स० अतिरिक्त+लाभ] वह लाभ जो अतियोग--संज्ञा पुं० [सं०] १ अधिकता । अतिशयता । २. किमी नियत या उचित मात्रा में अधिक हो । अतिरुचिर-वि० [म०] अत्यधिक प्रिय [को०] । मिश्रित प्रीपधि मे किमी द्रव्य की नियत मात्रा से अधिक प्रतिमचिरा संज्ञा स्त्री० [न०1 अनिजगती और चूडिलिका नामक मिलावट ।। अतिरंजन नजा पु० [६० अनिरजन] दे॰ 'अतिरजना' । दो वृत्त [को॰] । अतिरूक्ष-वि० [सं०] १ वहुय रूखा । २ क्रर । ३ प्रेमहीन । अतिरजना---गज्ञा स्त्री० [सं० अनिरजना] अत्युक्ति । बढ़ा चढ़ाकर ४ अत्यधिक स्नेही (को॰] । वाहने की रीति । । अतिरूक्षसच्चा पु० एक प्रकार का अन्न को०] ।