पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२०६

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अतिप्रश्न १४५ अभिमान अतिप्रश्न---[पु० स०] अमर्यादित प्रश्न । उप मुक्त उत्तर प्राप्त अतिभव--संज्ञा पुं० [सं०] आगे बढ़ जाना । पराजित करना । विजय | होने पर भी किया गया प्रश्न । अनावश्यक प्रश्न [को०] । | करना [को०] । अतिप्रसंग-सज्ञा पु० [स० अतिप्रसङ्ग १ अत्यधिक सक्ति २ अतिभार-सज्ञा पु० [सं०] १ अत्यधिक बोझ । २ गति । चाल । वहुत ही घनिष्ठ सवव । ३ घृष्टता । ढिठाई । अशिष्टता ।। ३ वाक्य की अस्पष्टता [को०] । ४ किसी नियम की अतिव्याप्ति । ५ प्रचुरता । आधिक्य । अतिभाग--वि० [स०] अधिक मात्रा में बोझ ढोनेवाल [को॰] । विस्तार [को०] । अतिभारग–[म०[ खच्चर (को॰) । अतिप्रसक्ति-सज्ञा स्त्री० [सं०] ६० ‘अतिप्रसग’ (को०] । अतिभारारोपण-सा पुं० [सं०] जैन शास्त्र के अनुसार पशुओ पर अतिताण---संज्ञा पुं० [सं०] असामान्य जीवन । प्रसाधारण व्यक्तित्व -अधिक बोझ लादने का अत्याचार । [को०] । अतिभारिक--वि० [सं०] बहुत भारी [को ।। अतिप्रौढा--संज्ञा स्त्री॰ [म०] विवाह करने योग्य लडकी | युवावस्था अतिभी-सज्ञा स्त्री० [सं०] इद्र के वज्र की ज्वाला । विद्यत की चमक प्राप्त कन्या (को०] । [को०] । ज्ञा पुं॰ [सं० अति+हि बेरब] बरवं छद का एक भेद । अतिभू?--वि० [सं०] सवको पार कर जानेवाला [को०] । विशेष- इसके पहले और तीसरे चरणों में बारह तथा दूसरे अतिभ-सुज्ञा पु० [सं०] १' विष्णु का एक नाम । २ दे० 'प्रति मव' और चौथे चरणो मे नौ मात्राएँ होती हैं । इसके विपम पदो । [को०] । के आदि में जगण न अाना चाहिए और सम पदों के अत का का शव अतिभूमि--सज्ञा श्री० [सं०] १ अधिकता । २ श्रेष्ठता । ३ मर्यादा वर्ण लघु होना चाहिए । का अतिक्रमण । ४ अधिक विस्तृत भूमि [को॰] । अतिवरसण-ज्ञा पुं० [ म० अतिर्पण ] मेघमाला । घटा अतिभोग--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ उपयुक्त या नियत समय के अतिरिक्त भी किसी वस्तु अथवा विपथ का उपभोग । २ स्वत्व की अतिवल?--वि० [न०] प्रबल । प्रचड । वली । उ०—-नारी प्रतिवल ' भौति किसी सपत्ति का बहुत दिनो तक उपयोग [को०] । | होत है, अपने कुन को नाम ।--गिरधर (शब्द॰) । अतिभोजन--सज्ञा पु० [सं०] अावश्यकता से अधिक खाना । पेटूपन अतिवल’--मल्ला पु० [सं०] १ अत्यधिक शक्ति । २ शक्तिसपन्न सेना [को॰] । । क्रिो०] । अतिवला---संज्ञा स्त्री० [स०] १ प्राचीन युद्ध विद्या ।। अतिमगल्य–वि० [स० अतिमङ्गल्य] अत्यधिक शुभ [को॰] । विशेष—इस विद्या के सीखने से श्रम और ज्वर की बाधा का अतिमगल्य-सज्ञा पु० बिल्व वृक्ष [को०] । अतिमत-मज्ञा पुं॰ [ स० ] सर्वमान्य समझा जाननाला विचार या भय नहीं रहता था और पराक्रम बढ़ता था । विश्वामित्र ने सिद्धात [को०] । इसे रामचंद्र को सिखाया था । अतिमति--वि० [ स० ! अत्यधिक घमडी । अहकारी । उ०----जौ ३ एक प्रोपधि ! कॅगही या कही नामक पौधा । अतिबात-मज्ञा पुं॰ [ स० अतिदात ] तेज हवा । तूफान । उ०— अतिमति चाहसि सुगति तौ तुलसी करु प्रेम ।—स० | सप्तक, पृ० २० । प्रतिमा रुदहि पविपात नभ अतिवात वह डोलति मही । अतिमति--सज्ञा स्त्री० १ अहकार । अत्यधिक गर्व । २ हठ (को०] । मानस ६:१० | अतिवालक--वि० [सं०] वाल को जैसा। बच्चों जैमा । बाल्य [को०]। अनिमध्यदिन सझा पुं० [म० अतिमध्यन्दिन] प्रखर मध्याह्न । खही अतिवालक-मज्ञा पु० 'छोटी वय का बालक । शिशु को०] । दुपहरी [को॰] । अतिवाला--संज्ञा स्त्री० [सं०] दो वः की गाय (को॰) । अतिमय-वि० [सं०] १ इस लोक से परे । अलौकिक । २ मानअतिवा--वि० [ म०] १. अाधारण बाहोवाला । शाजानुबाहु | वीय शक्ति से परे। अमानुषिक [को०] । अतिम -सज्ञा पुं० [सं०] अत्यधिक सपर्क । अत्यत निकट का संबध अतिवाहमा + पु० १ चौदहवें मन्वनर के एक ऋषि का नाम । [को०] । * एक गधर्व का नाम [को०] । अतिमसि-वि० [सं०] अत्यधिक मासवाला। [को०] । अतिव्रह्मचर्य---वि० [न०] ब्रह्मचर्य व्रत का अतिक्रमण करनेवाला । अतिमा- सच्चा स्त्री० [सं० अतिमान ] अपरिमेय वह मन स्थिति जो ब्रह्मचर्य व्रत को तोडनेवाला [को०] । आज के भौतिक, मानसिक, सास्कृति परिवेषा को अतिक्रम अतिव्रह्मचर्य-सज्ञा पुं० [सं०[ ब्रह्मचर्य व्रत का अत्यधिक पालन कर चेतना की नवीन क्षमता से अनुप्राणित हो । उ०—यह [को॰] । प्रतिमा, तन मे जा बाहर, जगजीवन की रेज लिपटाअतिभर-संज्ञा पुं० [सं०] १ बहुत अधिक वोझ । उ०—मति डिग , कर अतिमा, पृ० ४४ । पर दवै सव ब्रज जन भयो है हाथ पै अतिभर ।-नंद० ग्र०, अतिमात्र-वि० [सं०] अतिशय । वहुत । ज्यादा । मात्रा से अधिक। पृ० ३६३ । २ दे० 'अतिभार [को०] । अतिमान-वि० [स०] अपरिमेये । अति विस्तृत [को०) । | अतिमानसशा पु० [सं०] दे० 'अतिमति' [क] । | को०] । १६.