पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२०४

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प्रतिकृत १४३ अतिदेश अतितत-वि० १ [सं०] १ अत्यत दूर पेननेवासा । २ अपने को विशेप-- यह पचमहायज्ञो में से एक हैं और गृहम्य के किये नित्य अधिक वदा दिखानेवाला । ३ श्राव (को०)। कर्तव्य कहा गया है। अतितरण--सहा पुं० [सं०] १ पार करना । २ पराभूत यो अतिथिभवन--सज्ञा पुं० [सं० अतिथि + न्यन ] दे॰ 'अतिथिगृह' । | पराजित करना को० ।। अतिथियज-सज्ञा पुं॰ [ स०] अतिथि का श्रादर सरकार जो पचअतितारी--वि० [ नं० प्रतितारिन् } पार कर जाने वाला । विजयी महायज्ञ में पाँचवाँ है । नृय । गतिथिपुजा । मेइमानदारी । (को॰] । अतिथिणाला--संज्ञा स्त्री॰ [ म 1 ३० ‘अतिथिगृह' [को०] । अतितीक्ष्ण-वि० [सं० ] अत्यत तेज [को॰] ।। अतिथिस विभाग--सज्ञा पुं॰ [ म० ] जैन शास्त्र के अनुसार चार अतितीक्ष्ण--सञ्ज्ञा पुं० शोमाजन नाम का वृक्ष [को०] । शिक्षाश्रतो में से एक जिम में बिना अििथ को दिए 'गोजन अतितीव्रसपा पुं० [ स• 1 संगीत में बह द” जो तत्र से भी कुछ नहीं करते है । अधिक ऊँचा हो । । विशेप---इममे पाँच अतिचार हैं--(१) संचित निक्षेप (२) अतितीव्र--वि० अत्यत तेज [को०] । सचित पोहण (३) कालतिचार (४) परव्यपदेश मत्सर अतितीव्रा--सङ्ग स्त्री० [ सं०] एक प्रकार की दूद [को०)। और (५) अन्योपदेश । | अतिथिसत्कार--सज्ञा पुं० [स०] अभ्यागत अतिथि की अविभगत । अतितृष्ण--वि० [सं० ] अत्यधिक चोटवाला। जिसे अत्यधिक चोट । मेहमान की खातिरदारी [को॰] । पहुँची हो (को०] । अतिथिसत्क्रिया--सज्ञा स्त्री० [सं०] ६० अतिथिसत्यार' । अतितृष्ण'--वि० [सं०] १ अधिक प्यास । २ इत्यत लामी (को०] अतिथिसेवा--सर्जा स्त्री० [सं०] दे० 'अतिथिमपार' । अतितृष्ण’--सा सी० १ तेज मि। अत्यधिक लोभ (को०)। प्रतिदतुरः----वि० [सं०] जिसके दाँत अधिक बड़े ही या मुंह में बाहर अतिव्रस्नु--वि० [सं० । अत्यधिक हुनेवाला [को॰] । निकले हो [को॰] । अतिथि--सहा पु० [स०] १ घर में अयिा हुअा अज्ञात व्यक्ति । अतिदर्प--वि० [सं०] अतिशय अभिमानी (को॰] । वह जिसके ग्राने का समय निश्चित न हो। अभ्यागत । मेह- अतिदर्प-संज्ञा पुं० १ अत्यधिक गर्व या अभिमान । २ एक मान । पाहुन । उ०--उस अनोखे अतिथि को छातिथ्य में सपं [को०] । चुपचाप ।--शकु०, पृ० ६ । २ वहु सन्यासी जो किमी म्यान अतिदश- वि० [ स० प्रतिदईन् ] अधिक दूरदेश । प्रत्यक पर एक रात से अधिक न ठहरे। व्र त्य । ३ मुनि (जैनमाधु) । दूरदर्शी (को०]।। ४ अग्नि का एक नाम । ५ अयोध्या के राजा सुहोने जो अतिदाता--सज्ञा पुं॰ [ स० अतिदातु] अत्यधिक दाम देवाना बुश के पुत्र और रामचद्र के पत्र थे । ६. यज्ञ में सोमलता को व्यक्ति [को॰] । लानेवाला व्यक्ति। अतिदान---संज्ञा पुं० [ स० ] १ अत्यधिक दान । २ अति अतिथिक्रिया---सी स्त्री० [ स०] अातिथ्य । अतिथि की आव उदारता [को०]। भगत [को॰] । प्रतिदाह- -सज्ञा पुं० ( स० ] बहुत अधिक ताप या जलन [को॰] । अतिदिष्ट --- वि० [सं०] १ जिसमे या जिसका अतिदेशन हुआ है। अतिथिगृह--सज्ञा पुं० ( स० 1 व्हे 'मवन जो वे बल अतिथियो के । २ जी अवधि, क्षेत्र, सीमा अादि से आगे बढ़ा हु प्रा हो । ३ | ठहरने के लिये बना हो । अतिथिशाला [को॰] । प्रभावयुक्त । प्रभावित । ४ आकृष्ट । खि चा हुम।। ५. किसी अतिथिग्व--सज्ञा पुं० [सं०] १ श्रातियेय । २ राजा दिवोदास की अन्य वी जगह पर रखा हुआ को०]।। उपाधि । उ० ---राजा दिवोदाम अतिथियों का ऐसा स्वागत करता था कि उसे अतिथिग्व की उपाधि दी गई थी ।--हिंदु अतिदीप्य’--चि० अतिशय प्रकाशमान (को०] । मक्यता, पृ० ५६ ।। अतिदीप्य’- संज्ञा पु० लाल चित्र का बृदी [८०] । अतिथिदेव-वि० [म०] अतिथि को देवता के समान जानने और अति सह-६० | स०] जिम की राहून अत्यत कठिन हो । माननेवाला [को॰] । असह्य [को०] । अतिथिईप-मज्ञा पुं० [सं०] अतिथि के प्रति घृण या गाव [को॰] । अतिदुगत--वि० [ से ० ] जिमका बहुत बुरी गति छ । अत्यत दशा अतिथिधर्म--सज्ञा पुं० [सं०] अातिथ्य प्राप्त करने का अधिकार (को०]। ग्रम्प कि०]। अतिथिधर्मी-वि० [म० अतिथिधर्मिन] अतिथ्य का अधिकारी [को॰] । अतिदुधपं--वि॰ [म०) १ जिस का दमन करना वहत १ ठिन हो। अतिथिपति--सज्ञः पुं० [सं०] धातिथेय । मेजबान को॰] । । २ अतिप्रवल । प्रचट । वहृत उग्र । प्रत्यधिक उद्दष्ट [को॰] । अतिथिपूजन -सज्ञा पु० [ मृ० ] दे॰ 'अतिथिपूजा'। उ०—अतिथि- अतिदूर-वि० [सं०] देश, काल या मवध सादि में विचार से बत पूजन भली भाँति हुई ( अ ) र लते समय मधुकर के दूरी या अतर पर [को०] हाथ गरम कर दिए ।---श्यामा०, पृ० ७६ अतिदेव--सज्ञा पुं॰ [सं०] श्रेष्ठ या दैना यत् विष्ण, शिव । अतिथिपजा--संज्ञा स्त्री० [6] अतिथि का अदिर मत्सर । मैहमन अतिर्दशा पुं० [सं०] १ एक स्थान के धर्म या नियम वा गरे दारी ! अतिथि सत्कार। स्थान पर आरोपण। २ वह नियम जो साधारण नियम है