पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२०२

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अतीवर्षी १४१ अतिक्रामक अतावख्श-वि० [अ० अता-+फी० वटपर ] दान देनेवाले । दाता। अतिकल्प--संवा पुं० [सं०] पुराणानुसार उतनी वाले जितने में एक उदार [को०]। ब्रह्मा की आयु पूरी होती है, अर्थात् ३१ नीन, १० खरव, अताई'--वि० [अ० ] १ दक्ष । कुशल । प्रवीण। २ धूर्त। चालाक । ४० अरव वर्ष । ब्रह्मकल्प। उ०---सत्य गवान्प, अतिन्प, ३. अर्धशिक्षित । अशिक्षित । जो किसी काम को बिना सीखें कल्पातकृत 1 --तुलसी ग्र०, पृ० ४८५ । हुए करे। पतिभन्य। अतिकात-नि० [सं० शतिकान्त ] अत्यधिक प्रिय [को०] । अताई-सच्चा पै० वह गवैया जो विना नियमपूर्वक सीखे हुए गावे अतिकाय---- [रा०] वि० दीर्घकाय । वहुत नवा चडा। बडे टील डौल वजावे । ४०--और स्वतत्र व्यसनशील वा अताई उनसे भी का । स्थूल । मोटा । । वढे जाते हैं !--प्रेमघन०, भाग २, पृ० ३५३ । अतिकाय--मधा पुं० रावण न। एक पुत्र जिसे लदमण ने मारी अताई-वि० [हिं०] दे॰ 'अतितायी' । | था । उ०---'मट अतिकाय प्रकपन भा --मानस, ६५६१ । अतान--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अथान' । उ०--बुज गई न विथा अतिकाल-सबा पुं० { स०] १ विलय । देर । २. कुसमय ! ३ काल | गई कुसुमित ताकि अतान । बहुरि दई दूनी भई लगे प्रतन के । | का अतिक्रमण करने वाला महावाल । काल चैः मी काल । वन-स० सप्तक, पृ० २६४। । शिव । उ०--काल अतिकाल, कलिवान, व्यलिदि पग, त्रिपुरअताना--सा पुं० [ ? ] मालकोम राग की एक रागिनी । मर्दन मीम कर्म भारी ।--तुलमी ग्र०, पृ० ४६० । अतानामा-सया पुं० [अ० अती+फा० नामह] दानपत्र [को०]। अतिकिरिट-वि० [स०] बहुत छोटे दतिवाला [को०]। अतापता-सच्चा १० [हिं० पता का अनु० वि० द्वि० ] हालचाल । ठौर अतिकिरीट---वि० [स०] दे॰ 'प्रतिकिरिट' [को॰] । ठिकाना । उ०~-दूसरे दिन खोज करते करते एक स्थान पर अतिकृच्छ--संज्ञा पुं॰ [स०] १ वहुत काट। २ छह दिन का एक प्रत । अतापता मिला ।--सुनीता पृ० ४४। विशेष—इस व्रत में पहले दिन एक ग्रास प्रा. लि. दूसरे दिन अतापी--वि० [स०] तापरहित । दु खरहित । शति । । एक ग्रास सायकल और तीसरे दिन यदि विना माँग मिल अताव--संज्ञा पुं० [अ० इताव ] गुस्सा। क्रोध । उ०—-लाखो लगाव । जाये तो एक प्रसि किसी समय खाकर गैप तीन दिन निराहार एक चुराना निगाह का । लाखो वनाव एक बिगडना अताव का।। --शेर०, मा० १, पृ० १२।। प्रतिकृति-सच्चा ली० [सं०] १ पचीस वर्ण के बत्तों की संज्ञा । जैसे---सुदरी मवैया अौर क्रींन । २ मर्यादा का अतिकम (को॰) । अतार--सञ्ज्ञा पुं० [अ० अत्तार ] दे॰ 'अत्तार' ।। अतिकृति’---वि० जिसे करने में अति या मर्यादा पा अतालीक--सुधा पुं० [अ० ] शिक्षक। गुरु। उस्ताद । अध्यापक ।। तक्रमण pक्षित-वि० [सं० अत्यत] दे० 'अत्यत' । उ०—-यी फोड रूप की । किया गया हो [को॰] । अनिवार--सधा १ [सं०] कुब्ज के नाम का पौधा [को॰] । रामि प्रतित कुरूप कई भ्रम नै चक मान्यो--सुदर० प्र०, अतिकोप---विः [स०] क्रोधरहित । शीत [को०]। भा॰ २, पृ० ५८१ । अतिक्रम---सज्ञा पुं॰ [सं०] नियम या मर्यादा का उल्लघन । विपरीत अति--वि० [सं०] चहूत 1 अधिक। ज्यादा । उ०-अति र ते अति व्यवहार । उ०—-देवपाल व क्रोध सीमा वा अति" म कर चुका लाज ते जो न चहै रति वाम --पद्माकर ग्र०, पृ० ८६ । था, उसने खड्ग चला दिया |--अाकाश ०, पृ० ३६ ।। अति-सया स्त्री० अधिकता। ज्यादती । समर का उल्लंघन या अति- अतिक्रमण-.सज्ञा पं० [सं०] १. उल्लघन। पार करना। क्रमण । उ०—(क) गगा जू तिहारो गुनगान करे अजगैब जाना। इ०---बाधाओं का अतिक्रमण कर जो अबाध हो श्रानि होति बरखा सु अनिँद की अति है ।-पद्माकर ग्र०, दौड चले --- मायनी, पृ० २०८ । २ प्रवल अक्रमण पृ० २५८ । (ख) उनके ग्रंथ मे कल्पना की अति है ।----यास (को०' । ३ जीतना । अधिकार करना (को॰) । (शब्द॰) । क्रि० प्र०---फरना ।—होना । अतिम्रत(q--वि० [हिं० 1 दे० 'अत्यत' । उ॰—लाम होत असत अतिक्रात–वि० [सं० प्रतिकात ] १ सीमा फा उल्लधन किए हुए। किसोरी कृष्न घरन को ---ब्रजनिघि ग्र०, पृ० ११ । | हैद के बाहर गया हुआ । वढा हुयी । २ वीता हुआ । अतिकृति--सा स्त्री० [सं• अति + उक्ति, हिं० उफति ] ३० ६gतीत । गया हया । 'अत्युक्ति'। उ०---सुनि अतिउकुति पवनसुत के । अतिक्रति--सज्ञा पुं० वात हुई वादों या कयन [क] । --मानस, ६१ । । अतिक्रांतनिषेध--वि० [ स० प्रतिक्रान्तनिषेध ]' निषेधाज्ञा का उल्नधन अतिउवित--सम्रा औ० [सं० अति + उषित ] अत्युक्ति । | करनेवाला [को०] । अतिकदक--सधा पुं॰ [सं०] हुस्तिकद नाम का पौधा [को॰] । अतिक्रातभावनीय--सज्ञा पुं० [ स० प्रतिक्रान्ततावनीय ] योग अतिकथ–वि० [स०] १ अविश्वनीय। अतिरजिते । २. अश्रद्धेय । दर्शन के अनुसार चार प्रकार के योगियों में से एकः । वैग्यि ३. सामाजिक नियमों का उल्लंघन करनेवाला । ४. मृत ।। सपन्न यौगी । नष्ट [को०] । अतिक्रामक----संज्ञा पुं० [म०] क्रम या नियम उल्लंघन करने याला । अतिकथा- सच्चा स्त्री० [सं०] अतिरजित कृया। निरर्थक वाढ [को०। उ०—कृतियों में इस कमी के रहते हुए भी अनेक प्रतिमा अतिकर्षण-सा वि० [सं०] अत्यधिक परिश्रम [को॰] । गुण हैं |शुक्ल० अमि० अ० १० १०॥ | SI