पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२००

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अब्रीहि अणुव्रीहि---सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार धान जिमुका, चावल वहन अतट..-पि० तटहीन । खडी ढालवाल: [को॰] । | बारीक होता है और पकाने से बढ़ जाता है । यह खाने में अटतप्रपात--सज्ञा पुं० [स०] सीधा गिरनेवाला झरना [को॰] । स्वादिष्ट होता है और महँगा विकता हैं मोती चूर । अतत -वि० [सं० अतथ्य, अयवा अतत्व, प्रा० अतत्त] दे० 'अतथ्य' । अणह---संझा पुं० [स०] विभ्राज के एक पुत्व का नाम [को०] । उ०--चित्रग राव रावर कहै अतत मत मत्री कहे,—पृ० अणोरणीयान्'--सच्चा पुं० [सं०] एक उपनिपद् के उम पत्र का नाम रॉ०, ५६।५० | जिसके प्रादि में ये बाद ग्राते हैं ! वह मन यह है--- अतत --वि० [सं० शतव, प्रा० अतत्त ] दे० ' अतत्व' । उ०-अतत अणोरणीयान्महतो महीयानात्मास्य जन्तर्निहित गृहायाम् । । निरसन कीजिए तो द्वैत नहि ठहराई ।--सुदर० प्र०, भा० २, तमक्रतु पश्यति वीतशोको धातु प्रसादान्महिमानमात्मनः ।। पृ० ८४० । अणोरणीयान’--वि० १ सुथम से सूक्ष्म । अत्यंत सूक्ष्म २. छोटे । अतताई(g)--घसा पुं० [हिं०] ६० 'आततायी' । उ०—तपसी रो रूप से छोटा ।। | धरे तताई अडग कुटो गई सात उठाई |--रघु० रू०, अतक---सच्चा पुं० [हिं०] दे॰ 'अतिक' । उ०--सक सी सिमिटि पृ० १३५ ।। चित्र अर्क से भए है सवै वक अरि उर् पै अनवा इमि छायो अतत्व --माझा पुं० [सं० म+तत्व ] असार 'वस्तु [को०]। है ।-रत्नाकर, भा० २, पृ० १४१ । । अतत्व-वि० सारहीन । तत्वरहित (को०)। अतका -वि० [ अतिङ्कित, प्रा० अतिफि9 ] भातकित ।। अतथ्य--वि० [सं०] १ अन्यथा । झूठ। असत्य । अययार्थ । २. 'भयभीत । उ०—वाढी सीत सका काँपै कर है अतका ।—ग ऋ०, पृ० २३६ ।। अतद्वत् । अममान । अतका –मही पुं० [हिं॰] दे॰ 'अतिक' । उ०—सोही अज थोडे अतद्गुण--सज्ञा पुं० [सं०] एक अलकार जिसमें एक वस्तु का किसी जे न छोडे सीम सगर की लगर लँगूर उच्च प्रोज के प्रतक्रा में। ऐसी दूसरी वस्तु के विशिष्ट गुणा को न ग्रहण करन दिखलाया --पद्माकर ग्र०, पृ० २२४ । जाय जिसके कि वह अत्यत निकट ही । जैसे----गगाजल सित अतत-वि० [हिं०] दे॰ 'अत्यत' । उ०——मन पछी सो एक है पार अरु असित जमुना जलहु अन्हात । हस रहत तव शुभ्रता तैसिय ब्रह्म को अतत '---केशव० अमी०, पृ० १३ । । वढि न घटात ( शव्द ० ) । अतन--वि० [स० अ +तन्त्र] १ अनियन्त्रित । २ सिद्धातरहित । ३ अतद्वत्-वि० [सं०] जो उसके समान न हो [को०] । तन्न या ततु से रहित [को॰] । ग्रतद्वान्--वि० [सं०] अतद्वत् । असमान । जो (उसके) सदृश न हो। अतत्रत्व--सया मा [ मे० अतन्त्रत्व ] अर्थरहित्य । अर्थशून्यता ।। अतन-मा १० [सं० अतनु ] कामदेव । अनग । उ०---धूम अतद्र---वि० [सं० अतन्द्र] १ तद्रारहित । सजग । २ सतर्क [को॰] । धमारिन की मची अगन अतन उमग । अरी आज बरसत घनो अतद्रमा (७)---वि० [ सै० अतन्द्रिम] तद्रारहित । निरालस्य । सुजग । प्रजबीथिन रसूरग--स० सप्तक, पृ० ३६१ । । उ०—दैत छवि को है कोनद में नदी में कहो नखत विराजे ।। कौन निसि में अतद्रमा ।—पद्माकर ग्र०, १० ८० ।। " अतनु --वि० [सं०] १ शरीररहित । विना देह का । विना अस का । अतद्रिक--वि० [सं० अतन्द्रिक] १ आलस्यरहित । निरालस्य । चुस्न । उ०---रति अति दुखित अतनु पति जानी --मानस १।२४६। चंचल । उ०—विखरि जात पंखुरी गरूर जनि केरि अतद्रिका'। २ मोटा। स्थूल ।। सुकवि दस सब है है हरि सिर मोरचद्रिका |---व्यास अतनु'--सी पुं० अनग । कामदेव । ( शवद्र०) । २ व्याकुल । विकल। वेचैन । ' अतप---वि० [सं०] १. जो तप्त न हो । ठढा । यात' । २. दिखावा न अतद्वित--वि० [सं० अतन्द्रित ] अलिस्यरहित । चपल । निद्रारहित करनेवाला । अडिबररहित । बेकार । निठल्ला [को॰] । चंचल । उ०----पहुँच नहीं पाया जनमन का नीरव रोदन, हृदय अतप्त--वि० [सं०] १. जो तपा नै हो। ठढा । २. जो पका न हो। सगीत रही उच्छ्वसित अतद्रित ।--रजत शि०, पृ० ११४ । अतप्ततनु ----वि० [२०] रामानुज संप्रदाय के अनुसार जिसने तप्तमुद्रा अतद्रिल---वि० [सं० अतन्द्रिल] तद्राविहीन । अतद् [को॰] । अतः--क्रि० वि० [स०] इस कारण से । इस वजह से । इसलिये । न धारण का हो । जिसने विष्णु के चार प्रायुधो के चिह्न अपने शरीर पर गरम घातु से न छपवाए हो । बिना | इस वास्ते । इस हेतु। उ०—-शुचिते, पहनाकर चीनाक, कर ।। सका न तुझे अत दघिमुख --अनामिका, पृ० ११० ।। छाप या चिह्न का । मत--वि० [हिं० ] दे॰ 'अति' । 'सहचरि सरैन' भयक वदन अतप्ततनु-सझा पुं० विना छाप का मनुष्य । | कौ मदनमोहिनी अत है ---पोद्दार अभि० ग्रॅ०, पृ० ३९४ । अतमा-वि० [सं० अतमस् ] अधकार रहित' [को०]। अतऊध्वम्-अव्य० [सं०] इसके आगे या बाद में [को॰] । अतमाविष्ट--वि०. [ स० अ+तम + अाविष्ट ( असाधु प्रयोग)] जो अतएव--क्रि० वि० [स०] इसलिये । इस हेतु से। इस वजह से इसी अधकाछन्न न हो या अधकार से ढका न हो [को०] । ", | कारण। अतमिस्र-वि० [स०] जो अघकार से अच्छिन्न न हो [को०]। अतक---सात पुं० [सं०] यात्री करने वाला यात्री [को०]। अतरग--सी पुं॰ [देश॰] लंगर को जमीन से उखाड़कर उठाए अतट-सक पुं० [सं०] १. पर्वत का शिखर। चोटी । डीखा । ३, रखने की क्रिया । अमीन का निचवा भाग । प्रवल (को॰) । कि 79-—करना ।