पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१९९

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अणद पण प्रत मणद सझा पुं० [ स० आनन्द ] आनद । उल्लास । चित्त की काल । ६ अत्यंत सूक्ष्म मात्रा । ६. एक मुहुर्त का , प्रसन्नता (डि०) ।। ५,४६,७५,००० वाँ भाग। 'मणमण--वि० [ अन्यमनस्, प्रा० अण्ण मण] १. अप्रसन्न । अणवि० १ अतिसुद्दम । क्षुद्र । २ अत्यत छोटा । ३ जो दिखाई 'दु खिव । नाराज । २ वीभार। रोगी (डि०) । | न दे या कठिनाई से दिखाई पड़े ।। अग्रता--वि० [ प्रा० अ + रत्त ] जो अनुरक्त न हो । अना- अण क--वि० [सं०] अण, सवधी । अतिसूक्ष्म । उ०—अणक ६ घणक सक्त । उ०—अणरता सुख सोवणा रातै नीद न अाइ ।--- जड जीव अादि जितने हैं, देखा।-- अनामिका, पृ० ३८।२ कवीर ग्र०, पृ० ५१ । एक प्रकार का छोटे दोनोवाला अन्न (को०) । ३ चतुर (को०)। अणरस -वि० [प्रा० अण+रस ] दे॰ 'अनरस'। उ०—रस २स छ अण्ण तर-..वि० [सं॰] वहुत बारीक या सूक्ष्म । कोमल [को०)। को अणः स प्रणरस को रस मीठा खारा हाइ |--दादू,

  • अणुता--वि० [सं०] दे० 'अणक' (को॰] ।

। पृ० ५५४ । | अण तैल--मधा पुं० [सं०] एक प्रौपध का तेल [को॰] । 'अणव्य---सञ्ज्ञा पुं० [सं०] चीना, साँद आदि धान्य उगाने का । क्षेत्र (को॰] । ऋण त्व-वि० [सं०] अतिसूक्ष्मता । अण, जैसी सूक्ष्मता [को०)। अणुसकी --वि० [ स० अन् = नहीं +शफा = डर, प्रा० अर्ण + । अण्वम--सज्ञा पुं॰ [सं० अणु + ग्र० वाम्ब ! एके विना ऋण वम--सज्ञा पुं० [सं० अणु 4 ग्र० बाँम्ब ] एक विनाशक अस्त्र । सक ] जो डरे नही। निर्भय । न शक । निडर (डि०) ।। दे० 'परमाण, वम' । अणास -सच्चा पुं० [हिं० अडस अडस । कठिनाई (डि०) । अण भा--सझा मी० [सं० ] बिजली । विद्युत् ।। अणि--सी स्त्री० [सं०] १ कोर। नोक । मुनई। ३ घार । बाढ़ । अण भाष्य-सझी पुं० [ म० ] ब्रह्मसूत्र पर वल्लभाचार्य द्वारा कृत ३ वह कील जिसे घुरे के दोनो छोरो पर चयके की नाभि | पुष्टिमार्गीय भाप्य [को०]।। में इसलिये ठोकते हैं जिसमे चक्का घुरी के छोरो पर से बाहर अण मध्यवीज--सहा पुं० [सं० } एक मत्र का नाम [को०|| न निकल जाय । धुरकीली । धुरी की कील। ४ सीमा। अणमात्र—-वि० [सं०] अण के समान छोटे आकारवाला (को०]।

  • हद । सिवान। मेड । ५ किनारा । ६ अत्यंत छोटा । ७ अण मात्रिक-वि० [ स० ) १ दे० 'अणमात्र' । २ अण के अंग या
• [ही के वम के अगले सिरे पर लगी कीली या वाल्टू ।

मात्रा से युक्त [को॰] । अणिमाडव्य-सहा मुं० [ स० अणिमण्डव्य ] एक पि का नाम प्रण रेण --संज्ञा पुं॰ [सं०] अणिविक या अग्ण सवधी घूल जैसी सूर्य ।। ५ जो एक कील या नोकीला डटा चुभाए रहते थे जिसके कारण की पिरणो में दिखाई पहनी है किो०]।। • उनका यह नाम लोक में प्रसिद्ध हुआ (को०] । ऋण रेण जाल---सधा पुं० [सं०] अाणविक धूलिरणों समूह [को॰] । अणिमा–चा मी० [स०] अष्ट सिद्धियो में पहली सिद्धि । रेवती-सच्ची श्री० [सं०] देती नामक झुप। करोटन की -- विशेप--इस सिद्धि के द्वारा योगी प्रणवत् सूक्ष्म रूप धारण " वृक्ष [को॰] । कर लेते हैं और किसी को दिखाई नही पडते । इसी सिद्धि विशेष--इसकी अनेक जातियाँ होती हैं और उनके पत्ते भी भिन्न के द्वारा योगी तथा देवता लोग अगोचर रहते हैं और भिन्न प्रकार तथा रग के होते हैं। • . समीप होने पर भी दिखाई नही देते तथा कठिन ने कठिन प्रभेद्य अण वत--सा पुं० [स० प्रणवन्त बाल की भी खाल निकालनया - पदार्थ में भी प्रवेश कर जाते हैं। प्रश्न को०)। २ सूक्ष्मता । ३ अण,तो या अण, का भावे । । अणवाद-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ वह दर्शन या सिद्धात जिसमें जीव अणिमादिक-सझा जी० [ स० ] अष्टसिद्धिय-प्रपत् १ अणि मा,

  • २ महिमा, ३ लघिमा, ४ गरिमा, ५ प्राप्नि, ६ प्राकाम्य

या अत्मा अण, माना गया हो । वल्लभाचार्य का मत । ७ ईशित्व र ६, वशित्व । २ वह शास्त्र जिसमे पदार्थों के अणनित्य माने गए हों। वैशेषिक दर्शन । अणियाली--सहा स्त्री॰ [ स० अणि =धार+ हि० याती = वाली (प्रत्य०) 1 कटारो (डि०) । अर्ण वादी-सज्ञा पुं० [स० अणवादिन] १ नैयायिक । वैशेषिक शास्त्र प्रणी सत्रो० [ देश० ] अरी । अनी । ए री । हे री । उ०--- | का माननेवाला। २ वल्लभाचार्य का अनुयायी वणव ।। डोलती इरानी खतरानी वत रानी बेबै, कुडियन पेवी प्रणी माँ अवाक्षण-- सेसा पुं० [ स० ] जिसके हृारी सूक्ष्म पदार्थ देखे जाते है। , गरुन पावा हौं ।---सूदन (शब्द॰) । सूक्ष्मदर्शक यत्र । खुर्दबीन। माइक्रोस्कोर । उ०—विखर गया अणी-सच्चा स्त्री० [स०] दे॰ 'अणि'। मानव का मन अणुवीक्षण पथ से ।--युगपथ, पृ० १२० । अणीय-वि० [सं० अण, + ईयस् = अणीयस् ] अतिमूक्ष्म । बारी ।। २ वाले की खाल निकालना। छिद्रान्वेपण । - - झीना ।। अणुवेदात--सज्ञा पुं० [सं०] एक ग्रथ का नाम [को॰] । अण'-१'सच्चा पुं० [सं० ] इयणक से सूक्ष्म, परमाण, से वहा कण अण व्रत--सी पुं० [सं०] जैन शास्त्रानुसार गृहस्थ धर्म का एक अगे। जिसका विना किसी विशेष यत्र के खड नहीं किया जा सकता। । विशेष--इसके ५ भेद है-(१) प्राणातिपात बिरमण, (२) मृपावाद २ ६० परमाणों का सघात या बना हुआ। च ।। ३ छ टा विरमण, (३) अदत्तदान विरमण, (४) मैथुन विरमण अौर टुकडा । कण । ४ परमाण, । ५ सूदम कण । ६ रज । (५) परिग्रह विरमण । पातजलि योगशास्त्र मे इनको 'यम' रजकण । ७. संगीत में तीन ताल के काल का चतुर्थाश कहते हैं । अणियाली@-सहरी डि०) । । हेरी । उ॰ अग्ण वीक्षण-सया |