पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१९७

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अड़ाना अडाना--सच्चा पुं० एक राग जो कान्हडी का भेद है ।। मुहा०-~-अडिया करना = जहाज के लगर की रस्सी खीचना ।। अडाना-क्रि० स० [हिं० अडाना १ टिकाना। ठहरानी । हँसानो । अडिल्ल---सा पुं० [हिं०] दे० 'अरिल्ल' । उलझाना। २ टेकना । डाट लगाना। ३ कोई वस्तु बीच में अडी-सज्ञा स्त्री० [हिं० भडना ! १ अडान । जिद । ह । अाग्रह । देकर गति रोकना । जैसे,—पहिए मे रोडा अड। दे।-(शब्द०)। ३ रोक । ४ ठूसना । भरना। जैसे,—'इस विल में रोडा अडा दे क्रि० प्र०-~-करना= हिरन की तरह छनौग मारना। (शब्द॰) । ५ गिरना । ढरकाना । ३ ऐसा अवसर जप कोई काम रुका हो । जरूरत का वक्त । अडानी--सज्ञा पुं॰ [देश॰] १ वडा पखा। उ०—-धहु छत्र अडानी मौका । ४. पासा यो चौपड़ के खेल में एक ही घर में दो गोटिया कलम धुज, रानात राजत कनक के 1--गिरिधरदास (शब्द०)। के पहुंचने पर अन्य खेलाडियों की चालों को रुकना । उ०--- अडानी--सहा स्त्री० [हिं० अडाना ] १ कुश्ती का एक पेच । चौरासी घर फिरै अड। पौ बारह नाव। ---पलटू०, पृ० ३४ । अडगा। दूसरे की टाँग में अपनी टाँग अड़ाकर पटकने का अडी.-वि० अडनेवाला । टेकी । जिद्दी । दाँव । २ लकडी की रक जो खिडकी या दरवाजे के पल्लो के पल्ला अडीखभ -वि० [हिं० प्रडी +खम) जोरावर! चली।--डि ० । को रोकने के लिये लगाई जाती है । अडिठ-वि० [सं० अदृष्ट, पा० अष्ट, प्रा० अडिट्ठ ] १ जो दिखाई अड़ायती--वि० [हिं० शाह या अड+आयती ( प्रत्य० ) | न पडे । लुप्त । २ छिपा हुआ। अतहित । गुपचुप ।। [ ली० अडायती (बज०) ] जो अड करे। अट करनेवाला । अड़क--सुज्ञा पुं० [सं०] हिरन । मुग (को०] । अडतो। उ०—क्यो न गडि जाहु गाड गहिरी गडति जिन्हें गोरी गुरुजन ल ज निगड गडायनी। ऋडो न परति री। | ग्रेडुचल-पल्ला पुं० [सं०] हलचल को एक भाग (को०)। निगडने की अंडी दीठि लागे उठि आगे उठि होत है अडा. अडूलना -क्रि० स० [ देश० अथवा हि० उँडेलना ] ढालना । यती 1 --देव (शब्द॰) । उडेलना। डालना। गिराना। उ०—-जहाँ अाठ हू भांति के अडार----वि० [ ५० अराल ] १ अहवाला । स्थिर रहने वाला। उ० कज फूलै । मन नीर प्रकास तारे अड़े लै ।--सूदन (शब्द०)। --जग डाले डेल ? ने नाहाँ । उन दि अडेर जाहि पल अडसा--- १० [ सै० अटरूष, प्रा० अठरूस ] एक अपधि विशेष । माहाँ ।—जायसी प्र० पृ० ४२ । २ टेढा । तिरछ । विशेष--इमका पेड ३-४ फुट तक ऊँचा होता है। इमका पत्ता अंडार--संज्ञा पु० [सं० अट्टाल = बुर्ज, ऊँचा स्थान] १ समूह। हलके हरे रंग का आम के पत्ते से मिलता जुलता होता है। राशि । ढेर। उ०—नम पितु अन्न अडार जुहायो । क्रम इसकी प्रत्येक गाँठ पर दे दे पत्ते होते है। इसके सफेद र क्रम ते सव जनन वट।यो ।—विश्राम (शब्द०)। २ ई धन के फूल जटा में गुथे हुए निकलते हैं जिनमें थोडा सा मीठा रस का ढेर जो बेचने के लिये रखा हो। ३ लकडी या ई धन की होता है जो कास, श्वास, क्षय आदि रोगों में दिया जाता है। दूकान । '४ गयो भैसो के रहने का घेरा या वाडा । अच*----सझा ० [देश॰] शत्रु नाँ। द्वेष । मनमुटाव ।। अडारना- क्रि० स० [हिं० डालना ] डालना । देना । उ०-- अडैता()---वि० (हिं०] दे॰ 'अडायती' । पीउ सुनन धनि प्रापु विसारे । चित्त दुखे तन खाइ अहारे । अलपु-वर [हिं०] दे० 'अडियल' । उ०—ऐल परी गैल में मत जायसी (शन्द०) । मतवारनि की, भीड अडत अडेलनि तुरग तरजत हैं । अडल-सझा पुं० [सं० ] नत्य का एक भेद । चिडियो के पख की । हम्मीर० पृ० २४ । तरह हाथ फटफटाकर एक ही स्थान पर चक्कर कॉटनी । अडर---पड़ी पु० [ से पन्दोल * हलचल ] तुमुल शब्द । शोर । मयूर नृत्य। गृल । ३० 'अदर' । उ०—-चाजन वाजे होय अडोरा । वह अडाव--सा पुं० [हिं० अड ] १ स्तभ । अाधार । २ ॐाई ।। वहल हस्ति श्री घोरा --जायसी (शब्द०)। । उ०—गज महलू के अडाव अरस सेती अडे |--रघु० | अडोल--वि० [सं० प्र= नहीं + हि० डोलना] १ अटल। जो हिले नही। ०, पृ० २३८ ।। निश्चल । उ०—प्रेम अडोलु डूले नहीं, मुंह बोल अनेखाई । अडिग--"३० | म० अ = नहीं + हिं० डिगना ] जहिले डुले नही । चित उनकी मूरत बसी, चितवन महि लखाई 1---विहारी निश्चल । स्थिर ।। र० दो० ६३१ ।२ स्तब्ध । ठकमारा। उ०—त्यो पदमाकर अडिग्ग--वि० [ हि०] दे० 'अडिग' । उ०---धीग्जवत अडिग्ग खालि रही दृग' वोले न वल अडोल देशा है ।--पद्माकर ग्रे, जिनेद्रिय निर्मल ज्ञान गह्यो दृढ दू !- सुदर ग्र०, भा० ३, पृ० १५१ । ३ स्थिर। ध्रुव । उ०—-मुख वोल कहत अडील पृ० ३८४ । हैं गज बाजि देत अमोल है ।-पद्माकर ग्र०, पृ० ६ । अडियल-० [हिं० अडना + इयंल (प्रत्य॰) 1 १ रुकनेवाला । अड अडोस पड़ोस- सझा पुं० [सं० प्रतिवेस (= पडोस) से वि० ० अडकर चलनेवाला । चलते चलते रुक जानेवाला । उ०-- मू० ] आसपास । करीब । मधुवन अडियल टट्ट, की तरह रुक गया ।—तितली, पृ० २२६ । अडोसी पडोसी--संज्ञा पुं॰ [ हि० अडोस पडोस ] आसपास का रहने २ सुस्त । काम मे देर लगानेवालः । मट्टर } ३ जिद्दी । हठी । वाला । हमसाया। अडिया--सा जी० [हिं० आडना ] अड्डे के प्रकार की एक लकड अड्ड(9)–वि० [ देश० अड्ड = आड़े आनेवाली ] वाधा । रके। जिसे टैककर साघु लोग वैठते है। साधुमो की कुबडी या अरु । उ०-.-काल पहुँच्यो सीस पर नाहिन कोऊ अड्डे |-- तकिया । भिखारी बँ०, मा० १, १० २३३।