पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१९५

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अठारहवीं इतन पासा मधु मगति मेरि रसना सारि । दाँय अववे परचो पूरी अडडq---वि० [ मुं० +द न देट देने योग्य ] १. अदटर्न ३ । कुमति पिछली हारि । राखि सन्नह सुनि अठारह चोर पाँच जिसकी देन है गर्ने । ३ f-भय । निई। मान !---सूर (शब्द॰) । ग्रेडवर -- पृ॰ [हिं०] १० बर। ---(६) भने । अठारहवाँ---वि० [ २० अष्टादशम, प्रा० अट्ठारसर्वं, अप० अट्ठारहवें, माल दी। नाले पर वान वा छान ली। अपर व थट्ठारहवा ] जिसका स्थान मात्र हवे के उपरा । हो । थम या जf जैसा ।--पाः n,६० २०१11 (1) 116 * हिमन गिनती म जिसका स्य ने अठारह पर ।।। में सजाने पर प्रव' नी, न १ व २ वर बढ़ाए अठासिव - वि० [म० अप्टनीति + हि च (प्रत्य०) ] जिस स्थान लति ।-----नार, ०२, १० २८ ८ । । मत्त सिवे के उपर ति हो । क्रम या राया । जिसपो म्यान अदम'( - पु० । ०। ६० ' ५' । । --97 इमर अठासिव हो । घुघरिय भनमन त म । --- T०, १५६५ अठागी---मुक्षा स्त्री० [सं० अप्टाशीति, प्रा० अट्टासीइ, अप० अट्टासि ] अड----सय ५ रनी | ग रङ = दि २३। ४ = गमाघा=अमिएक सख्या । अस्सी र आठ । ८८ ।। योग J1 क्रि० ग्र, प्रदानो, f० अवार, दिया ] ६३।। अठिलाना--ऋ० अ० [हिं०] दे॰ अठलाना। ४०--रहिमन निज टंकः । जिद । धन । प्रन पी थिई । मन की ब्यथा मनहीं रायी गय । सुनि अठिन है लोग सच बटि अडकाना+---त्रि० स० [हिं०] ६० 'डन' । | न लेह कोय |--कविता को०, भा० १, पृ० १६५ । अडग'--'व”[हिं० प्र%ि + अग] {दग। न भिवानी। अठिल्ला --स) पुं० [सं०] प्राकृत का एक छदै । ६० 'अरिरल' [को०)। अटल। प्रचन - टि० ) । ३०–त्री दगमसि अठेल---वि० [सं० अ = नहीं + हि० ठेलना] बलवान् । मजबूत ! रावण १ मा ३ अर ना मानो 1-3 , | जोरावर (दि०)। पृ० २० । अटेसापुरी--वि० [हिं०] दे॰ 'अट्ठाइम'। उ०---विनवत सबै मया विस। अडगडा—राज्ञः १० | मनुध्व०] १. वै-गये। प्रोमु दि के चारि अठसा । सो सब पलट् दैग्विया हम जैसे के तैमी ।---पलटू०, ठहरन १r =नान। . ! जहाँ बिन में f नये घर, बेन भा० ३, प० ६६ ।। अादि रहते है।। अठोठ(७)--ससा पुं० [ देश०] ठाट। अविर। पाय। उ०-- अगरिध (५ -वि० [हिं०] दे॰ 'गन्धूि' ।। लाज के अठोट के कै. वैठती न भोट दे दें, घूघट में काहे को अडगरिध(७–वि० [हिं० प्रटिंग + 5० रिघु] पि (०) ।। कपट पट तानता । डारि देती डर कर ऍवती ने चारि अगोदा-- मा ५६ [ हि घटदोष 4. गोE = पाय] एम् । ही चोरि पीठि मोरि ही न हठ ठानती ।—देव (शब्द॰) । अठोतरसो- वि० [ मं० अष्टोत्तरशत प्रा० अटू,त्तरसत ] माठ के ऊपर लन्डी का टुकड़ा जिले एन दिरे पर घेद र नटवट नोपियों स । एक सौ अाठ । के गले में बांधने हैं जो दौडते नमः उन अन पैरों में संगती अठोतरी--सहा स्त्री॰ [स० अष्टोत्तरी] एन सी अाठ दानों की जपमाला । हैं जिससे वे बहुत तेज भाग हैं। मनै । छ। ठे। अठोर-- वि० [सं० अ = नहीं +हि० ठोर ] जिसमे धार न हो। कुद । डेंगना। भतरा । उ०—ठोर धार चरति । मालनी छिन में घोडा अडचन----मज्ञा पुं० [३०] १ इनवर्ट। अट । दाधर | पति ।। भेघमाला पानी हरिया।--दपिनी ०, पृ० ३० । यठिनाई । दिक्त । ३०---मागे च नकर इस पाम में वे अठीडी--सा पुं० [ स० अप्टपदी ] एक प्रकार का आठ पैरोवाला। बढी अडव पटेगी ।--(शब्द०)। अडचनमा औ० [हिं०] दे० 'अ ' । उ-9ोध, भय, अटौरा--मना पुं० [सं० अष्ट, प्रा० अटू, अठ + हिं० श्रीरा (प्रत्य॰)] जुगुप्सा र रण। ॐ रावध में माहिरमिया को शायद लगे हुए पान के अाठ वीडो की बोगी। कुछ अदनान दिखाई पड।---रम०, १० ६७३ ।। अडग५ –वि० [हिं०] दे॰ 'अडिग' । उ०---तपमीरो रूप घरी अतताई अडट -वि० [हिं० अ = नहीं + डांट ] डॉट में न इन्चाला। न अडग कुट) गई सात उठाई (---रघु० ९०, पृ० १३५। ६यनेवाला । ३०-प्रटनि टन सुदङ थपि थिर के रत अडग--सः पुं० [हिं० दे० 'अडेगा' । उ०—धक्को की धडाधड अपवर |-- ० रा ०, ३५५ । अडग की अडडे में हैं हैं वडाक्छ सुदती की वडावडी |-- अड्डडा--संज्ञा पुं० [हि० अ = टिकाय * का वह पद्माकर ग्र०, पृ० ३०७ । । बस का इड। जिसके दोनों छोर पर मट्टू में रहते हैं। यह अर्डंगवडेंग*----वि० [हिं० अडग + वेढग] टेढ़ा मेढ़।। अडवर्ड । उहा मन्जुल पर चिडियों के प्रसूटे की तरह वैध रहता है और अव्यवस्थित । उ०—-अडॅग वग कर आत्मा मेटे माँची सूध। इसी पर पाल चढ़ाई जाती हैं। ---दरियाँ० बानी, पृ० ३४ । | अड़डपोपो-सज्ञा पुं॰ [देश॰] १ सामुद्रिक विद्या जाननेवाला । हाय अडगा-सी पुं० [हिं० अ + अग = ( अगवाला ) रुकावट डालने देखर जीवन की घटनाग्रो को बतलानेवाला । ३ पाखडी । वाला ] ट्राँग अहाना । अटकाव । रुकावट । अडचन । धर्मध्वजी। झूठमूठ मइवर मरनेवाला। ३ वृथालापी । हस्तक्षेप । उ०----ऋद्ध है मलेच्छ नि की सुद्धि के धिरुद्ध वने। ववादी । गप्पी । - " जाल में कुबुद्धि तर्ने उद्धत अडगा को ।-रत कर, मो० २, अडतल-सज्ञा पुं॰ [हिं० आष्ट + स ० तल ] १. अट । सोझल । म पृ० १६५ । २. छाया । शरण । ३, बहाना। होला । उन्ने । दे दें, घूघट केक पट तानती । इरिटि ० शरीर में लगता है। . रा (प्रत्य०)]