पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१९४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अठपही अठारह अठपहरा-- वि० [ सं अष्टप्रहर ] रात दिन का । प्राठो पर का। अठवारी---सल्ला स्त्री॰ [ स० अप्ट, प्रा० अट्ठ अठ-से 2 वार + हि० ६ लगातार। उ०--सेवर तपत पर वैट दूर अठपहा वाजे (प्रत्य०) ] वह रीनि जिसके अन्मार असाम? जोताई के समय पलटू०, पृ० ७५ । प्रति अठवे दिन अपनी हैल वैल जमीदार को खेत जोतने के अठपहला--वि० [सं० अष्टपटल, पा० अपहल अथवा म० श्रप्ट + फा० लिये देता है । पहल ] आठ कोनेवाला । जिसमे आठ पावं हो अठवाली--सा स्त्री० [हिं० अठ+वाली | १ वह लकडी का अठपाव'--"सधा पुं० [ मे० अष्टपाद, पा० अट्टपाद; प्रा० शानुपाव] टुकडा जो कि सी भारी च ज में वाँधा जाता है और जिनमे उपद्रव । ऊधम । शरारत। उ०--भूपन यो अफजल्ल बचें सेंगरे लगाकर पेशराज लोग उसे मारी चीज को उठाते हैं। अपवि के सिंह को पद उमैठो--भूपण ग्र०, पृ० २५३ ।। २ वह पालकी जिसे प्रठि कहा उठाते हैं। अठवरी । अठवन्ना--सम्रा पुं० [ मे• अट = घूमना-बन्धन | वह बस जिमपर अठसठ- वि० [हिं०] १० अठसठ'। उt-- अहमठ तीर्थ मध के जुलाहे करघे की लंबाई से बढ़ा हुआ ताने का सूत लपेट रखते बेरनन कोट गया और कासी |--कवीर श०, पृ० ७८) हैं और ज्यो ज्यों बनते जाते हैं उनपर से सत खीचते अठोसल्या--सधा पुं० [ स० अप्टशिला, पा० अदृसिला ] सिंहासन । जाते हैं । 30--देखि सखिन हैसि पाँव पखारे । मणिमय अठसिल्या अठमासा'---सबा पुं० [सं० अष्टमासिक, प्रा० अट्ट+मास] १ वह खेत वैटारे ।--विश्राम (शब्द० । । जो श्रीपाढ़ से माघ तक समय समय पर जोना जाता रहे और अठहत्तर--वि० [सं० अप्ट सप्तति, प्रा० अत्तरि] एका सस्या। सत्तर जिसमे ईख बोई जाय । अठवाँसी। ३ गर्भ के आठवें मास में और आठ। ७८।। होनेवाला सीमत सस्कार। ३ अाठ मास पर होनेवाला प्रसव । अठहत्तरवाँ--वि० [हिं० अठहत्तर+वां (प्रत्ये०] जिसका स्थान ऋठमासा--वि० दे० 'अठवाँसा' । सतहत्तरर्वे के उपरात हो। क्रम वा सख्या में जिसका स्थान अठमासी-सच्चा स्त्री० [सं० अष्टमाश] अाठ माशे का सोने का सिक्का ।। अठहत्तरत्र हो । सावरेन । गिनी ।। अठाई –वि० [ स० अस्थायी अयबा म० अ- स्थानिक ] उपद्रवी । अठ्यी--वि० [हिं०] १० 'आठव' । उ०—-अठयौ गर्भ तेरी हता। उत्पाती । शरीर । उ -- हरि अाठहू गाँठ अठाई । --केशव -- नद० ग्र०, पृ० २२१ ।। (घाब्द०) । अठलानाG----क्रि ० अ० [हिं० ऐठ-+ लाना] १. ऐंठ दिखाना। अठान –सद्मा पुं० [सं० अ = नहीं + हिं० ठानना] १ न ठानने योग्य इतराना । गर्व जताना । ठसक दिखाना । ३०--काहे को अति कार्य । अकरणीय कर्म । अयोग्य यो अनुचिन कर्म । उ०—(क) लात कान्ह, छाँडी लरिकाई ।---सूर (शब्द०)। २. चोचला तजतु अठान न, हठ परयो सठमति, आठौ जाम् ।--विहारी करना । नखरा करना । उ०—-जैये घले अठिलैये उतै इत र०, पृ० १७०। (ख) हनुमान परोसिन हू हित की कहती कान्ह' खरी वृषभानुकुमारि है।--सभ्, (शब्द॰) । ३ मदे तो अठान न ठानर्त। मैं ।—हनुमान (शन्द०)। २ वैर। न्मत्त होना। मस्त दिखाना । उ०---देख जाय और काहू यादुता। विरोध। झगडा। उ०-- सगै झरत उमगै को हरि १ सवै हरित मंडरानी । सूरदास प्रभु मेरो नान्हो ठानि अठान पठान चढे ।--सूदन (शब्द०)। तुम तरुणी डोलति अठिलानी ।--सूर (शब्द०)। ४ छेडने के अठाना'--क्रि० स० [र्म• अति = पीडा, प्रा० अट्टि + अट्ट से नाम०] लिये जान बूझकर अनजान वैनना ।। १ सताना। पीडित करना। उ०--प्राजु सुन्यो अपने पिय अठवना--क्रि० अ० [सं० आस्थापन, पो० ठान = ठहराव अथवा | पारे को काम महा रघुनाथ अठाएँ ।--१घुनाथ (ब्द॰) । सं० स्थान ] जमना । ठनना। उ०—में वितं या थान दुग अठाना -क्रि० स० [सं० स्यान = स्थिति, ठहराव, ठानना, प्रा० की होय तयारी । करो मोरचा सवै तोपखानो सब जारी । सबै ठान ] मचाना। ठानना । जमाना । छेडना। ३०--(क) जारी कर देहु सनु आवत है अठयो। सिंह वहादुर पास जानि जुद्ध अमर्नेक अठायो । तवर ख इहि देस पठायो ।-- साँडिया को लिख पठयो ।--सूदन (पाब्द०)। लाल (शब्द॰) । (ख) घासहूरै था कुँवर जी रन रग अठाया । अठवाँस'--सपा पुं० [ स० अष्टपाश्र्व ] अठपहली वस्तु । अठपहले पत्थर तिस कागज के बचते मूरज मुसकाया |--सूदन (पाटद०)। का टुकडा । अठानीG--वि० [हिं० अठान + ई (प्रत्य॰)] अयोग्य या अनुचित कार्य अठवाँस–वि० अठपहला अठकोना । करनेवाला। उ०-द्रोन के प्रबोध दुरवोध दुरजोधन के अयि मधि अठवाँसावि० [स० अष्टमास, पा० अट्टमास] वह गर्भ जो मार ही दिवस जयद्रथे अठानी मे ।--रत्नाकर, भा० २,पृ० १४५। महीने में उत्पन्न हो जाय । अठार--वि० [सं० अष्टादश, हि० अठारह, अट्ठार ] अठारह की अठवाँसा--संक्षा पुं० १. सीमत सस्कार । २. वह खेत जो पाढ से सख्या। दस और अाठ । १८ | उ०प्रव्य अठार गवालप माघ तक समय समय पर जोता जाता है और जिसमे ईख लष्प , तौ माय गुर तेत्त विसप्प !-~-पृ० रा०, १८७ ! बोई जाय । अठमासा ।। अठारह'--वि० [सं० अ'टादेश, पा० अट्टादस, प्रा० अट्ठारम, अट्ठारह] मठवारा--सया पुं० [स० अप्ट, प्रा० अ>अठ+ स० वार] १. अठ एक सख्या। दस और मार्छ। १८ । उ०—पदुम अठारह जुयप दिन का समय । पक्ष की आधा भाग । सप्ताह । हुपता । २. | वदर --मानस, ५५५ । । अनिश्चित दिनो तक। ३०-नहि घनु अठवा रन ल वैसी अठारह--सा। पुं० १ माव्य में पुरानूनवः संत या शह। झरी लगाबै ।--प्रेमघन॰, पृ० ५५१। २. चौसर का एक दोन । पासे की एक सया । ३०-वारि