पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१९३

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अट्टहासी १३२ अठपतिया fe अट्टहासी’---वि० अट्टहास करनेवाला [को०] । अठई----सज्ञा स्त्री० [म० अप्दमी ] शप्टमी तिधि । ३०--मतमी अट्टहास्य--सा पुं० [स०] ६० 'अट्टहास' [को०] । पूनिउँ वा सब प्रार्छ । अठई अगायम हैं उन लाछी |-- अट्टा--संज्ञा पुं॰ [ स० अट्ट = बुर्ज } मचान । जायसी (शब्द॰) । अट्टाट्ट हास--- सझा पुं॰ [स०] दे॰ 'अट्टहास' | अकठ(--वि० [हिं० दे० 'अटपट' । ३०--पाठवठ गाज बरन अट्टाल-सज्ञा पुं० [सं०] १ ऊपरी मंजिल का कोठा । २ बुर्ज । गहि जाई । सर्ग मो इक के मोहाः।--भीख पा०, | उच्च स्थान । ३ प्रासाद । महल [को॰] । पृ०७४ । अट्टालक-सच्ची पुं० [सं०] किले का बुर्ज । अठकपाली---वि॰ [ सं० प्रप्ट + पाल ] अठन। बुद्धिवाना। चतुर । अट्टालिका-~-सज्ञा स्त्री० [सं०] अटारी । कोठा ।। धूर्त । चाला F । उ०--बडे बडे श्रेठ । पाली मारे सामने अपना अट्टी----संज्ञा स्त्री० [सं० अट्ट = घूमना, बढाना] १ अटेरन पर लपेटा अठकपालीपन मून गाए |--चुत ची० (१०), पृ० २ । हमा सुत या ऊन । लच्छी । पोला। किरची । २ अटी। अठ्करी--मया नी० [हिं०] दे॰ 'ग्रवाली' । उ०--मदढ्ढे दट्ट्टी। मनी नोन अट्ट्टी ० ०, १०।२१। अठकोन-~-वि० [हिं०] दे॰ 'प्रप्टकोण' । उ०—अबुम अरघ व प्रजे अट्ठ-वि० [सं० अष्ट ] अाठ की संख्या । ८ । उ०----घन मिकार अठोन अमलतर --मारते ९, ० ३, पृ० ६६० । राजन करिय हुनि वराहु अनि अट्ठ ।--पृ० रा०, २४३५१ ।। अठौशल-सहा पुं० [हिं०] दे॰ 'अठमिन' । । अट्ठा-सच्ची पुं० [सं० सप्टक, प्रा० अट ठ्य] तास पर एक पत्ता जिमपर । किसी भी रग की अाठ बूटियाँ होती है । अठकीसल-सज्ञा पुं० | हि० ० + ऋ० फीसिल ) १ गप्ठी । अट्ठाइस-वि० [अ० ] ३० (अट्ठाईस' । पचायत । २ सलाह। मत्रणा । उ०--हेत फिरत वारि वृच्छ अट्ठाइसवाँ–वि० [सं० अष्टाविंशतिम्, हि० अट्ठाइस] जिसका स्थान कहलाने सबै हे।ति अठराल गुग्गी श्री अन्नाचा ६ ।--नासत्ताइसवें के उपरात हो। क्रम या गिनती मे जिसका स्थान वर, भा० ३ ० ११८ । अट्ठाइसवाँ हो। क्रि० प्र०—करना ।—होना । अट्ठाईस-वि० [सं० अष्टाविंशति , पा० अट्ठा यीस; प्रा० अट्ठाईस, अठखलपन--सा पुं० [ {० टक्रीडा, या अष्टपैल, प्रा० अठ्ठजेल, अप० अट्ठाइस ] एक राख्यो । बीस र आठ । २८ । अठखेल्ल ] चचलत। चपलता। चुलबुलापन । अट्ठानवे-वि० [सं० अष्टानवति, पा० अट्ठानवति, प्रा० अट्ठाणवइ] अठखेली--मझा रनौ० [ १० अप्टी डा या भटखेल, प्रा० अठखेल, एक सख्या। नव्वे र अाठ । ६८ | | ट्ठखेल्न ] १ विनोद । क्रीडा । चपलता, कल्लोल । चुचलता । अट्ठानवेवाँ---वि० [सं० अप्टनवतितम; देश ० अट्ठानचे] जिसका स्थान चुलबुलापन। २ मतवाली चाल । मस्तानी चाल ।। सत्तानवे के उपरात हो। झम या सख्या में जिमका स्थान क्रि० प्र० --करना । अट्ठानवेव हो । मुहा०--अठखेलियां सूझनी = चुलबुलापन करना । ०--तुझे अट्ठारह–वि० [स० अष्टादेय, प्रा० अट्ठारस, अट्ठारही दे० 'अठारह । अठखेलियाँ सूझी हैं हम वेजार वैठे हैं।--कविता को०, भा०४, अट्ठावन-वि० [सं० अष्टपञ्चाशत्, प्रा० अठावण्ण, अट्ठावन्न ] एक पृ० २६३ । संख्या । पचास और अाठ । ५८ । ऋठताल -सा पुं० [म० अष्टताल | १ एक प्रकार का गीत । अट्ठावनव-वि० [सं० भ्रष्टपञ्चाशतम्, देश० अट्ठावन] जिसका स्थान उ० --यो अठतालो गीत उचारे, कई भछ प्रभु गुण इक धारै । सत्तावन के उपरात हो। क्रम या सङ्ग्या में जिसका स्थान --रघु० ९०, पृ० २०६ । अट्ठावनवाँ हो । विशेप---इनमे अाठ चरण होते हैं। प्रथम तीन चरण चौदह अट्ठासिव-वि० [सं० अष्टाशीति,अप० अट्टासि> हिं० अठासी + चौदह माता के होते हैं और चया चरण दप्त मात्रामो का वाँ (प्रत्य॰)] जिसका स्थान सत्तासिवे के उपरांत हो । क्रम यो रहता है जिसने तुः ति मै लघु गुरु रहता है । इर्मः प्रकार चार | सख्या में जिसका स्थान अट्टासिव हो। चरणो का दूसरा हाना बनाया जाता है। इसमें चौथे और अठासी–वि० [स०अष्टाशीति, अप०अासि,अट्टासइ] ३०'अठासी'। आठवें चरण का तुकति प्रथम, द्वितीय, तृतीय,१ चम और सप्तम अट्ठे---वि० [हिं० आठसे] अठगुना। जैसे, पाँच अट्ठे चालीस, सात के साथ मिलता है। प्रथम हाले के प्रथम पद में अठारह | अट्ठे छप्पन । मात्राएँ होती हैं । अठग -सच्चा पुं० [सं० अष्टांग] अष्टांग योग । उ०—उठत उरोजन ३ दे० 'अष्ठताल' । वाद्य । उ०—याजत वैन विषान वाँसुरी उठाए उर ऐंठ भुज अठन अमेठे अग अाठ हू अठग सी -- डफ मृदग अठताल --नद० ग्र०, पृ० २६६ । देव (शब्द०)। अठत्तर--वि० [हिं०] दे० 'अठहत्तर' ।। अठ--वि० [स० अष्ट, प्रा० अठ] आठ । (हिंदी समास ये प्रयुक्त) अठन्नी--सूझा स्त्री० [हिं० अठ + अन्नी == आनावाली ] १ : सन् १९५६ जैसे---अठपतियाँ, अठपहला, अठकोनी आदि । तक भारत में प्रचलित अाठ झाने के मूल्य का सिक्का । २. अठएँ--वि० [हिं०] दे॰ 'ठ'। उ०--अठएँ अाठ प्रष्ट केवल मे, पचास पैसे का सिक्का । उध निरखे साई ।---धरम०, पृ० ७७ । अठपतिया--सच्चा स्त्री० [सं० अष्टपत्रिका, पा०, मट्टपत्तिका, प्री० अठइसी--संज्ञा स्त्री॰ [fइ० अट्ठाइस] २८ गाहियो अर्थात् १४० फलो अट्ठपत्तिया, अठपत्तिया ] एक प्रकार की पत्थर की नक्काशी की संख्या जिसे फलों के लेनदेन मे सैकडा मानते हैं । जिसमे अछि दलो के फूल बनाए जाते हैं।