पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१९२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अर्ट/उँ १३१ अट्टहासी अटाउ --सा पुं० [म० अg = अतिक्रमण करना +हि० प्राउ मुहा०—-अटेरन होन? == हड्डी हड्डी निकलना । अत्यंत (प्रत्य॰)] १ विगाड। बुराई । २ नटखटी | शरारत । दुर्बल होना । उ०—प्राप ही भेटाउ के ये लेन नाम मेरो, ३ त यापुरे मिलाप २ घोड़े को कावा या चक्कर देने का एक ढग या तरीका ।' के संताप कर देने है (शब्द०) । क्रि० प्र०--फेरना । अटागर---पज्ञा पुं० [सं० अट्ट + अागार] समूह । अटाला। देर। उ० ३ कुश्ती का एक पेंच ।। हुआ समे नौ जुहार जुहार। पान अटागर काथ श्री कार । मुहा०—-अटेरन कर देना = दाँव में डालकर चकरा देना । दम --वीसन०, पृ० १८ ।। न लेने देना। टाटूट--वि० ( स० अढ = ढेर + हि० अटूट अयवा स० अटुट - हिं० श्रेरना---त्रि० स० [ हि० 7दरन से नाम० ] १ अटेरन से सूत की अटूट ] नितात । विल्कुल ।। अटी वैनन । २ मात्रा से अधिक मद्य यf नशा पीना । अटाना--क्रि० स० [हिं० अटक = रोक, बाधा ] रोक या बाधा हो । । जैसे,—क्या कहना हैं लाल जी खूथ अटेरे हैं ।--(शब्द॰) । पडना । उ०—प्रागे अाइ सिंधु नियराना। पार जाइ कह ग्रटोक)---वि० [ स० अ + तर्क, पॉ० तक = टोकना ] विना रोक गाढ अटाना |--इद्रा०, २६ । टोक का। उ०—(क) अरु अटोक ड्योढी करी, पैठत बखत अटाना--क्रि० स० [हिं० अटना का प्र० रूप ] किसी वस्तु को तमाम । ----मतिराम ( शब्द०)। (ख) मोद भरी ननदी किसी वस्तु मे समा देना । रखना अँटा देना। अटोक टोना टारे लगी ।—कविता की ०, २१०२ । अटारी--मज्ञा स्त्री० [सं० अट्टालिका] कोठा । दीवारों पर छत पाटकर अटोटG --वि० [हिं० ] दे॰ 'अटूट' । उ०---चोली चारु छीट की बनाई हुई कोठरी । सबके ऊपर की कोठरी या छत । चबारा । छाजति उपमा देत अटूट ।--सूर०, परि० १, पृ० ८५ । ---नियुकि चढे उ कपि कनक अटारी । भई समन निसाचर अटोपq--संज्ञा पुं॰ [ स० अटोप ] दे० प्राटाप' । उ०—–अलोप टोप नारी ।—मानस ५।२५ । | कै अटोप चाई चोप सो घरं --पद्माकर ग्र०, पृ० २८४ । अटील--संज्ञा पुं० [सं० अट्टाल ] बुर्ज । धरहरा (डि० )। अट्ट -सज्ञा पुं० [सं० हट्ट = बाजार ] १. हाट । बाजार। अटाला--सज्ञा पुं० [स० अट्टाल ] १. ढेर। फूरा । राशि । अवार। । उ०—देव दपनि अट्ट देख सराहते ।—साकेत, पृ० ३ । २ समान। असवाव । सामग्री । ३ कृस इयों की बस्ती में अटुट ---सा पुं० [सं०] १ बुजं । उ --अट्टो पर चढ़ चढ़ कर सब ओर मुहल्ला । पूथों में बढ र वळकर --सावेत, पृ० १५२ । अटारी । कोठा । अटाव--सज्ञा पुं॰ [२० अट्ट -- हि० श्राव (प्रत्य०)] १ वैर । वैम ३ एक यक्ष का नाम। ४. प्राधान्य । अधिकता। अतिशयसा । नस्य । द्वैप । २ शरारत । पाजीवन। दुष्टता । ३ अँटना । ५ पका हुआ चावल । भात । ६ भोज पदार्य । ७ पहरा देने के वैचा स्थान या मीनार। ६ महल । प्रासःद । ६ रेशम समान । पूरा पड़ने का भाव । अटित--वि० [सं० अटा] जिसमें अटा या अटारी हो। अटारीवाना। वस्त्र । १० दुर्ग में सेना के रहने का स्थान या भाग (को०)। अटित--वि० [सं० अटन] घुमावदार । घुमा हुआ । अट्ट’----वि० १ ऊँचा । २ शुष्क । सूखा । सुखाया हुअा। ३ उच्च अटिहार--वि० [हिं० अटना+हार (प्रत्य॰)] अंटनेवाला । पूरा स्वर से युक्त [को॰] । अटक---सज्ञा पुं० [सं०] १ छत के ऊपरवाला कमरा। वैगला । २. पडनेवाला । त०--अटिहार कोई पूज्जै नही बल अभूत अतिम प्रासाद । महल [को॰] । करयो ।--पृ० रा०, २४ १९७ । अट्टट्ट---वि० [सं०] १ बहू त ऊँचा । २ बहुत जोर का [को॰] । अटी--सा स्वी० [सं० अडी ] एक चिडिया जो पानी के किनारे । अट्ट हास-सम्रा पु० [सं०] वहे जोर की हँसी । ठठाकर हैं मना । | रहती हैं। चहा । कि० प्र०--करना :--होना । अटूट-वि० [ से० अ= नहीं+चुट = टूटना] १ न टूटने योग्य । अटट अट्ट्टन--4पुं० [सं०] १ एक प्रकार का चक्र की प्रकृति का अस्त्र । अखडनीय । अछेद्य । दृढ । पुष्ट । मजबूत । २ जिसका पतन | २ अपमान । अवमानना । उपेक्षा । तिरस्कार [को॰] न हो। अजेय । ३ अखइ । लगानार। उ०----छुटे जटाजूट अट्टसट्ट-वि॰ [ अनुध्व०] १ ऊटपटांग । अडबड । जैसे--तुम तो सौं अटूट गगधार धील मलि सुधागार को अधार दरसत सद। यो ही अट्टसट्ट वका करते हो !----(शब्द०)। २ वहुत ही है !--रत्नाकर, भा० २, पृ० २१० ।। साधारण या निम्न कोटि का । इधर उधर का । जैसे,-- अटेरन-सा पुं० [ स० अहिण्डन, प्रा० * अहिणन » अइडरन उस क ठरी में बहुत सा अट्ट सट्ट सामान पडा है ।--(शब्द॰) । "अटइरन ® अटेरन, अथवा सं० अट' = घूमना एकत्र करना ] अट्टहासत--सा पुं० [सं०] अट्टहास' [को॰] । [क्रि ० अटेरना 1१. सूत की आँटी बनाने का लकड़ी का यत्र । अट्टहास--संज्ञा पुं० [सं०] ठहाका । जोर की हँसी । खिलखिलाना अत्यना। ३०- अस कहि अट्टहास सठ कीन्हा ।--मानस, ६ । ३६ । विशष---६ इंच की एक लकड़ी के दोनों सिरो पर सूत लपेटने क्रि० प्र०--करना--होना । के लिये दो अहिर लकडियाँ लगाई जाती हैं जो दोनो योर अट्टहासक'सज्ञा पुं॰ [सं०] १ खिलखिलाकर हँसनः । तदाका कुदे का फूल और पेड। प्राय तीन तीन इस बढ़ी रहती हैं। इन लकडियों में से नीचे की लकडी कुछ घड) और ऊपर की लकडी पृष्ठ के बल रखे अट्टहासक' वि० जोर से हंसनेवाला । ठहाका मारकर हॉसनेवाला। हुए घनुष के आकार की होती हैं । अट्टहासी'-सा पं० [ स० भट्टहासिनु ] शिव [को॰] ।