पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१९०

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अट १२६ अट्ट अट---सभी स्त्री० [हिं० अटक ] शतं । कैद । प्रतिवध । रुकावट । उ०-वार बार राधा पछतानी । निकसे श्याम सुदन त मेरे उ०--तुम तो हर बात में एक अट लगा देते हो ।-(शब्द॰) । इनि अटकरि पहिचानी --सुर (शब्द॰) । अटक–सा पुं० [सं० = नहीं + टिक = चलना अथवा स० + अटकल–सञ्चा जी० [ सं० अद=घूमना + फल=गिनना] १. अनुमान । टक = बघन, अथवा • हठ -क (प्रत्य॰), प्रा० *अटक ] कल्पना । २ अदाज । तख मीना । कूत । उ०——वह करोडो रुपए [ क्रि० अटकनी, वि० अटकाऊ] १ रोक । रुकावट । अह के अटकल अकेले दान विषय में व्यय करता है ।--प्रेमपन ० चन । विघ्न । वाधा । उलझन । उ०—-करि हियाव, यह भा॰ २, पृ० २२० । सौंज लादि के, हरि के, पुर ले जाहि । घाट बाट कहूँ। क्रि० प्र०—करना ।--बैठना ।--लगाना । अटक होइ नहि सद को देहि निवाहि ।---सूर० (शब्द०)। अटकलना+--क्रि० स० [हिं० ‘अटकल' से नाम० ] अटकल लगाना। २ संकोच । हिचक । उ०--तुमको जो मुझसे कहने में कोई अदाज करना । अनुमान करना । अटक न हो तो मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ ।--चैट० अटकलपच्चू१--सच्चा पुं० [हिं० अटकल+देश० पच्चू = पकाना] मोटो (शब्द॰) । ३. सिंध नदी । ४ सिंध नदी पर एक छोटा नगर अदाज। कपोन कल्पना । अनुमान । जैसे---इसे अटकलपन्चू जहाँ प्राचीन तक्षशिला का होना अनुमान किया जाता है । से काम न चलेगा ।—(शब्द०)। ५ काज । हैजे । वडी अावश्यकता। अटकलपच्चू-वि० अदाजी । खयाली । ऊटपटाँग, जैसे --ये क्रि० प्र०—-पढनाउ०—-ह्या ऊघो काहे को आए कौन सी अटक अटकलपच्चू वाहें रहने दीजिए ।--(शब्द॰) । परी ।---सूर (शब्द॰) । अटकलपुच्चू-क्रि० वि० अदाज से। अनुमान से । जैसे,—रास्ता अटक--वि० [ स० अट ] धूमनेवाला । चक्रमणशीन (को०] । नहीं देखा है, मेटकलपन्चू चले रहे हैं ।---(शब्द॰) । अटकन--सद्मा पु० [हिं०] दे० 'अटक' । अटकलवाजवि० [हिं० अटकल +फा० वीज (प्रत्य०) ] अदाज अटकन वटकन--सच्चा ५० [ देश ० } छोटे लडको का एक खेन । लगानेवाला। निराधार बात करने में निपुण । विशेप--इसमें कई लो अपने दोन हाथों व उँगलियों को जमीन अटकलबाजी---पक्षी स्त्री० [हिं० अटकल + वाजी ] अदाज लगाना । पर टेककर वैठ जाते है । एक लटका सबके पड़ो पर एक एक | कल्पना करना । । करके उँगली रखता हु अ यह वही जाता है-- अटकन बटकन अटका--पन्ना पु० [ म० अट = खाना, उहि ० अाटिका] जगन्नाथ जी दही चटक कन, प्रला झू व 7 ना झूले, सावन मास में रेना को चढ़ाया हुआ भान जो दूर देशो में भी सुखाकर प्रसाद की फुले, फन एन । नयाँ वात्रा गए गगा, लाए सनि पिय भांति भेजा जाता है। जगन्नाथ जी के भोग के निमित्त दिया | लियाँ, एक पिपली फूट गई, नेबुले की •गि टूट गई, खडा हुआ धन । उ०--प्रटका द्विशत रुपैया केरो । तुमहि चढहीं मा ८ छुरी ।' पूरब में इसको इस प्रकार कहते हैं-- अफ का बुक्का तीन तलुक्का, लीवा लाठी चदन काठी, चदन लावै दूली अस् प्राण मेरो राम रसिक०, पृ० ८५४ ।। दूला, 'मादो मास करेला फूल, इजइल विजइल पान फूल अटका+-सा स्त्री॰ [ हि० अटक ! दे० 'अटक' । ग्रेटकाना--क्रि० स० [हिं० ‘अटकना' का प्रे० रूप ] [मा अटकाव ] पचक्का जा ।' जिस लडके पर अतिम शब्द पडता है वह छूटनी जाना है। जो नवमें पीछे रह जाता है उसे चोर समझ कर १ रोकना । ठहराना। अडानी । लगाना । उ॰—गए तवहि | खेल खेला ज न है । ते फेरि न आए। सूर स्याम वै गहि अटकाए ।—सूर०, अटकना--कि० अ० [म० = नहीं+टिक = चलना] १ रुकना । १०।२२७८ । २ फंसाना । उलझाना । उ०—तवहि म्याम इक ठहरना । अडना। उ०--(क) तुम घलते चलते अटक क्यो बुद्धि उपाई । जुवती गई घरनि सव अपने गृह कारज जननी जाते हो ?-- शब्द०) । २ फेमना । उलझना लगा अटकाई :--सूर०, १०४३८३ । ३. इाले रखना । पूरा करने में रहना। उ०-~-इहीं शाम अटश्य रहनु अलि गुलाब के मूल । विनत करना । जैसे,—उस काम को अटका मत रखना।--- | (शब्द॰) । विहारी र०, दो० ४३७ । प्रेम में फंसना । प्रीति करना उ०--फिरत जु अटकत न टनि दिनु, रसिका सुरस ने | अटक व--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० अटक - वि] ( प्रत्० )] १ रोक ) अटव | रुकावट । प्रतिवध | अडचन 1 वाचा । विघ्न । उ6--या। खियाल । अनत अनत नित निन हितनु, fवत सचत कत लल' ।---विही र०, दो० ५२६ ]४ विवाद करना । समर्पण में ग्रहण का एक सुनिहित भावे, थी प्रगति, पर अडा झगटनः । उलझना । उc-जव गजराज ग्राहसी अटक्यौं, रहता था सतत झटकाव |--कामायनी, १० ११ । २ मासिक घर्म । ३०-न्ता पाछ कछूक दिन में सास को अटकाव भयो । वन बहुत दुख पायो । नाम लेत ताही छिन हरि जू गरुडहि दो सौ वावन०, पृ० २९८ । छडि छुइयो ।--सुर०, १॥३२ ।। अटकर--सझा नी० [हिं०1 दे० 'अटकल'। उ०—-(फ ) जैसे तैसे अज' अटखट -वि० [अनुच० ] अट्रसट्ट । अडवड । टटा फटा। ले पहिचानत । अटक रही अट र करि पानत ।--सूर०, १०५० वस पुराने साज सर्व अटखट सरल तिकोन खटोला रे । " तुलमी ग्र०, पृ० ५५३ । (धा०) । (ख) अपनी अपनी सव कहें अटकर पर न कोई। मृदर० ग्र०, भा॰ २, पृ० ७६० ।। अटखेली—सच्चा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'अठखेलो' । अटकरना--क्रि० स० [हिं० 'भटकर' से नाम० ] दे॰ 'नेटकलना । अटट --वि० [हिं० अटूट ] निपट । नितात , १७