पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१८९

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अज्ञातक १२८ अटेवर अज्ञातक--वि० [सं०] अविदित । अप्रसिद्ध । अज्ञात [को०] । अज्ञानी--व० [सं०] ज्ञानेन्थे । मृG । जह। अवियाग्रस्त । अनाडी । अज्ञातकुल--वि० [म०] जिसके वश कुल अादि का पता न हो [को०]। नादान । नाममझ । प्रबंध । अज्ञातचर्या--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] अज्ञातवास [को०)। अज्ञेय--वि० [सं०] न जानने योग्य । जो मन में न अ। मः । बुद्धि अज्ञातजौवना--सा ही० [ स० अज्ञातयौवना] दे० 'अज्ञात- की पहुंच के बाहर का । ज्ञानातीत । बोधगम्य । यौवना' । उ०--इहि परकार तिया जो लहिए । सो अज्ञात-अज्ञेयवाद-समा १० [सं०] परमतत्व पी ज्ञाननीत स्थिति या प्रज्ञेजौवना कहिए ।।--नद ग्र०, पृ० १४६ । यता का प्रनिपादक मत (फो०]। अज्ञातनामा-- वि० [स०] १ जिसके नाम का पता न हो । जिसका अज्ञेयवादी--वि० से ०] अज्ञेयवाद वा माननेवाला । अपवाद का नाम् विदित न हो। ३२ जिसे कोई न जानता हो । अवि: अनुयायी [को०] । ख्यात । तुच्छ । अज्म--सा पुं० [घ०] सत्र । दृढ निश्चय । उ०—-या अन्य किया था अज्ञातपितृक--वि० [स०] जिपके पिता का पता न हो । नामालूम | वह शैतान ता पर देने कावा श्रीरान --विजनी०, पृ० २२० । वापवाला [को॰] । थज्यास--पहा पुं० [म० अध्यास = मिथ्यावान, भ्राति] अविश्वास। अज्ञातपूर्व -वि० [सं०] जो पहले से जानकारी में न हो। जिसका घूर्नपन । ठगहाई । उ०—जग पासवाम अज्पाम दिम विदिम पहले से ज्ञान न हो [को०)। प्राण उदास |--० ६०, पृ० ६६ ।। अज्ञातयौवना--मा स्त्री० [सं०] मुग्धा नायिका के दो भेदो में से एक। जिसे भरने यौवन के आगमन का ज्ञान न हो । अज्यासुत(U-सहा पुं० [१० जागुतो वकी। उ०—-बड़े ब्रह्म को अज्ञातवास---पद्य) पुं० [सं०] छिपक रहना । ऐसे स्थान का निवास । | काध जने अज्यानून कहे मारी ।--स० दरिया पृ० ११६ । जहाँ कोई पता न पा सके, जैसे--विराट के यहाँ पाडवो ने | अज्येष्ठ-वि० [सं०] १ ज गये जेठा न हो। २. जिसे बडे भाई न एक वर्ष अज्ञानबाम किया था' (ब्द॰) । हो (को०)। ३ जो सर्वश्रेष्ठ न हो (को॰) । अज्ञातस्वामिक (धन)----सज्ञा पुं० [सं०] वह घन जिसके मालिक का - अज्येष्ठवृत्ति--यि मि०] १ बड़े भाई का कार्य या बहार न करने | वाला । ३ उस व्यक्ति की तन्ह कार्य या व्यवहार करनेवाला । पता न हो। जैसे, मार्ग में पड़ा हुआ या जमीन में गडा धन । | जिमै वडा भाई न ही [०] । अज्ञाता--वि० सी० [सं० अज्ञात जिसे ज्ञात न हो । मुग्धा । उ०-- अज्य –क्रि० ब्रि० [2] 'ज' ! ज्ञाता--की केश' (शि में इन्हें न कसे कम वेधवा । अज्र--सा पुं० [१०] भनाई का वदला । प्रत्युपार [को॰] । वीणा, एe १ ।। अज्वाल---वि० [ अ +पाल 1 जनविहीन। लपटन्ति । अज्ञात--संज्ञा पुं॰ [स] वह व्यक्ति जो अपनी जाति या सवध का न हो । अन्य जातीय व्यक्ति । परजात [को॰] । ज्वालारहिन । लपटविहीन । उ०---7वान उपजावन अज्यान्न अज्ञान-संज्ञा पुं० [म०] १ बोध का अभाव । जडता । मूर्ख । दरसावन मुभल यह पावक न जाव का विडाए हो ।---निवारी० ग्र०, मा० १, पृ० १२८ । अविद्या । मोह। अजानपन । ३०--अज्ञान भला जिसमें सोह तो क्या, स्वय ग्रह भी कव है ।--साकेत, पृ० ३१६ । २ अझर -वि० [सं० अ = नहीं+करना = गिरना ] जो न झरे । जो न गिरे। जो न बरसे । उ---चुलि सुन घर घन अझरे जीवात्मा का गुण और उनके कार्यों से पृथक् न समझने का अधिक । ३ न्याय में एक निग्रस्थान । यह उस ममय होता कारी निनी सुखदानि । मिनि सोभनि तू, दामिनि दीपति वानि !--स० मतक, १० २४३ ।। है जब प्रतिवाद के तीन बार कहने पर भी चादी किसी ऐसे उन4 .कि० अ० [हिं० 1 ई० "अरुझना' । उ०—कामिन विषय को समझने में असमर्थ हो जिसे सब लोग जानते हो । कनक तला लपटना। प्रझरत सझुन्त संत सुजान -- 2 अज्ञान-वि० ज्ञानशून्य । मूर्ख । जढ़ । नासमझ । अनजान । उ०— दरिया पृ० १२ । । में अज्ञान कछ नहि समुझ्यौं, परि दुख पुज सह्यौ ।-- अझना(१--सा पुं० [म० प्रद्युम = सती हुई अग्नि ] मागे । सूर ० १६ । अग्नि । उ० -बिलखते छाडी द्यौस चीरिक चिन्हा वारि, अज्ञानकृत- वि० [म०] १ अज्ञान में किया हुअा । अनजाने में किया वारि दियो हिप में उग पो अझनो है।-घनानंद पृ० १३८ । हुग्रा । २ अज्ञान या मूर्खतावश किया हुधा [को०] । अझना –वि० [ न० जीर्ण, प्रा० अङ्ग = अजुन्न ] जो अज्ञानत --क्रि० वि० [सं०] अज्ञान या मूर्खता के कारण । मोहवा । जीर्ण न हो। जो सदा एक सों बना रहे । हमेशा एक सा २ अनजान मे 1 नासमझी के कारण (को०] । रहनेवाला । उ०—-तुम्हें दिन साँवरे ये नैन सूने, हिये में ले अज्ञानता--संज्ञा स्त्री० [म०] निर्वोचता। जडता। मूर्खता । अविद्या ।। दिए विरही अझनै --घनानंद, पृ० १६७ ।। नासमझी । नादानी । उ०—'इन सब बातो में बहुत सी अझोरी -मझा नी० [सं० दोलन झलना ] झोली । कपडे की लंबी स्वर्थपरता अौर वहुत सी अज्ञानता मिली हुई है।-- थैली जो कधे पर लटकाई जती है। उ०——झरी चकोरी | श्रीनिवास ० ऋ०, पृ० २०० । काँधे अतिन्ह की मेली ववे, मू ड के कमल वपर किए फोरि अज्ञानतिमिर--सी पुं० [सं०] अज्ञानरूपी अधक्रार । मोरूपी कै ।--तुलसी (शब्द॰) । अंधेरा [को०)। अटवर--सज्ञा पुं० [सं० अट्ट = अधिक, फा० अॅवार = ढेर ] टोला । अज्ञानपन---सक्षा पु० [सं० अज्ञान +हि० पन (प्रत्य॰)] मूर्खता । ढेर । राणि । ३० लागि गए अवर ल” अखिल शटवर पै, द्रुपदजडता। नादानी । नासमझी । अजानपन । सुती को अजी' न अबूटी है --रत्नाकर, भा० २, पृ० १११ ।