पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१८६

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१३५ अजीयत की एक देवी को अजी--अव्य अजि--वि० [सं०] चलनेवाला । गमन करनेवाला, जैने--पदाजि = अजिर--संज्ञा पुं० [सं०] १ प्रांगन । सहन । उ०--चुटरुनि चल्त, | पैर से चलनेवाला [को०] } अजिर मह विहरत, मुरत मदिन नवनीत !--[२०, १०।६७ । अजि२---मा स्त्री० १ 'चलना की क्रिया या स्थिति । गति । २ फेंकने २ वायु । हुवा । ३ शरीर । ४ मढकः । ५ इद्रियों को की क्रिया । फेकना [को०] । विपथ 1 ६ छबूंदर (को॰) । अजियाउर--सहा पु० [हिं०] दे० 'अनौग'। अजिर’--नि: शीघ्रगामी (को॰] । ऋजिग्रीरा --संज्ञा पुं० [से० प्रायफा+पुर, प्रा० अज्जिया -- और अजिरा- महा वि० [सं०1१ टुग का एक नाम । २३ वैगवती (प्रत्य॰)] आजी या दादी के पिता को घर । नदी [को०] । अजित".-वि० [सं०] १. से पराजित । जो जीता न गया हो । उ०-- अजिरीय--वि० [सं०] अाँगन से संबधिन । सन या झाँगन मा को॰] । | इद्री अजित वृद्धि विपयाल मन की दिन दिन उलटी चाल । अजिह्म--वि० [सं०] १. जो जिहा या टेढा न हो । सीघा । सरल । --मूर०, ११२७/ २ जो जीन। न जा सके। अजेय (को॰) । २ ईमानदार । सच्चा । खरा [को॰] ।। अजित’--सहा पुं० १ विए । २ जिथे । ३ बुद्ध । ४ दियघ्न अपिंधि अजिहा__सज्ञा पुं० १ एयः मनीं । ३ मेढक । दादून [को०]। (को०)। ५ जहरीन मूसा (को०)। ६ प्रयम् मन्त र के देव अजिह्मग'--a [स०] सीघा चलनेवाल।। टेढ़े मेढे न चलनेवाला(कौ] । की एक श्रेणी या वर्ग (को॰) । अजितनाथ-सा पु० [सं०] जैनियो के दूसरे तीर्थकर का नाम । अजिह्मग?--सज्ञा पुं० वाण । इषु [को०] अजिह्व--सज्ञा पुं० [सं०] मेढक । दादुर [को॰] । अजितवला--सच्चा झी० [सं०] जैन संप्रदाय की एक देवी [को०] । अजितविक्रम'--वि० [सं०] अपराजित विक्रबाला [को० ] । अजिह्व-वि० जी मरहित । जिह्वाविहीन [को०] । अजी----अव्य० { स० अयि ! ] सवाधन शब्द । जी' जैसे---- प्रजी, अजितविक्रम--सझा पुं० चद्रगुप्त द्दिनीय का एक नाम या विरद [को०१६।। जाने दो' (शब्द०) । अजिता-- सवा स्त्री० [सं०] भादो वदी एकादशी का नाम जो व्रत की। अजीकव--सज्ञा पुं० [सं०] शिव का धनुप [को०)। अजितात्मा--- वि० [सं०] दे॰ 'अजितेंद्रिय' [को॰] । अजीगर्त---सज्ञा पुं० [सं०] १ एक ऋपि जो शून शेप के पिता थे । अजितापी--वि० [सं० प्रजितापीङ ] अजेय मुकुटवाला। बेजोड २ वह जो छिद्र में प्रविष्ट होता हो। सौर । सः [को॰] । मुकुट को (को॰] । अजीज-वि० [अ० अजीज ] प्यारा । प्रिय । अजितेंद्रिपु-वि० [सं० अजितेन्द्रिय ] दे॰ 'जितेंद्रिय' । ३०---- अजीज-सज्ञा पुं० १ संबधी । ३ मित्र । सुहृद् ।। असुर अजितेंद्रि जिहि देखि मोहित भए, रूप सो मोहिं दीज क्रि० प्र०करना = प्रिय समझना |---जानना या रखना = दिखाई । सुर०, १।४३७ । समान करना । प्रिय समझना --होना = (१) प्रिय होना अजितेद्रिय-वि० [स० अजितेन्द्रिय ] जिसने इद्रियों को जी तो न हो। (२) कोई वस्तु देने में संकोच हाना । जो इद्रियों के वश में हो । इद्रियलोनूप । विपयामचत । ०-- अजीजदार--संज्ञा पुं॰ [अ० अजीज + फा०बार] दे॰ 'अजीज' [को॰] । कृपन दरिद्र कुटनी जैसे । ऋजितेंद्रिय दुख भरत है तैमै --- अजीजदारी--सज्ञा स्त्री० [अ० अजीज + फ० दार। 1१ मित्रता । नद० प्र०, पृ० २६१ ।। दोस्ती । २ सवध । रिश्तेदारी [को०]। अजिन–सा पुं० [सं०] १ चमं । चमड़ा। खाल । उ०-- न अजीटन--सज्ञा पुं० [अ० अडजूडेंट) सेना क। एक सहायक कर्मचारी दिव्य दुकल जोरत सखी हैसि मुख मोरि ६ |--तुनर्स ग्न जो कर्नल या सेनापति को सहायता देता है । पृ० ३४ । २ ब्रह्मचारी श्रादि के धारण करने के लिये प्णमृग अजीत--वि० [सं०] जो कुम्हलाया हुश्रा या मद न हो [को०]। श्री व्याघ्र प्रादि का घर्म । उ०—-अजिन वसन फल ऋसने अजीत()-. अजीत)---वि० [हिं०] दे० 'अजित' । ३०--जीनि उठि जायगी महि सयन डासि कुम पात ---मानस, २२११। ३ चमडे का अजीत पाडूपूतन वी, भूप दुरजोधन की भीति उठिं जायगी । एक प्रकार का बैना (को०)। ४ भायी । धौंकनी (को॰) । --रत्नाकर, भा० १, पृ० १४२ । ५. छाल । . अजीति--सज्ञा स्त्री० [सं०] १. समृद्धि । अभ्युदय । २. क्षय को अजिनपत्रा--सच्चा स्त्री० [सं०] जिसके पंख अजिन की तरह सुश्लिष्ट हो । चमगादड [को॰] । अमाव [को॰] । अजिनपत्रिका--सच्चा स्त्री० [सं०] दे॰ 'अजित पत्नी' [को॰] । अजीब---वि० [अ० ] विक्षण । विचिन्न । अनोखा। अनूठा। अजिनपनी---संशा जी० [सं०] चमगादड । गादुर [को०]। आश्चर्य जनक । विस्मयकारक । तहत एक प्रकार अजीव वो गरीव--३० [अ० अजीब+ फा० शो 4- अ० गरीव ] | का वृक्ष [को०1।। १ अनूठा । आश्चर्यजनक । २ दुष्प्राप्य [को०] ।। अजिनयोनि--सज्ञा पुं॰ [ स० ] मृग । हिरन । अजीमुश्शान--वि० [अ० अमोम + उल् + शान बहुत ही शानदार । अजिनवासी--वि० [ से ० 1 कृष्ण मृग का चर्म धारण । का चर्म धारण उ०--'एक वडी अजीमुश्शान सुख पत्थर की मस्जिद थी' ।--- कनेवाला [को०] । । प्रेमवन०, भा० ३, पृ० १५८ ।। अजिनसध---संज्ञा पुं० [अ० अजिनसन्ध] मृगचर्म का पापारी । अजिन श्रेजीयत-सम्रा स्त्री० [अ० ] कष्ट । पीडी। उ०----जो मुझे देने का व्यवसायी [को०] । मजीत गम् ।—दक्विनी ०,१० २१८ ।