पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१८१

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अजगैवी १२० । अजपा अजगैबी -वि० [फा० पज +अ० गैबी -- ई (प्रत्य॰)] रहस्य- अजन--सज्ञा पुं० [सं०] १ अयोग्य व्यक्ति । अप्रिय व्यक्ति । तुच्छ पूर्णता । अलौकि कता । उ०--कहै पदमाकर त्यो तारन जन । उ० --हँसे खुलकर हाल चाहर अजन जन के वने मगल । विवारन की गिर गुनाह अजगैवी गैर आव की ।---पद्माकर --अर्चना, पृ० २७ । २ पितामह। ब्रह्मा (को०) । ३ गति ग्र०, पृ० ३२४। गमन (को॰) । यौ॰—अजगैवी गोला, अजगैबी तमाचा दैवी विपत्ति आक- अजनक-- वि० [स०] उत्पादन न करनेवाला। अनुत्पादक (फो०] ।। स्मिक कष्ट। अजगैबी तमाशा = आश्चर्य करनेवाला खेल । अजननि----संज्ञा स्त्री० [सं०] उत्पन्न या पैदा न होने की स्थिति । अजगैबी मार = दे० 'अजगैवी गोला' ।। उत्पन्न न होना [को०] । अजघन्य---वि० | स० ] जो जघन्य अर्थात् जो निम्नतम, तुच्छ और अजुननीय--वि० [ स ० ] जनन के अयोग्य । जो उत्पादनीय न हो । | अनिम या उपेक्ष्य न हो [को०] ।। अजननी--वि० [अ०] १. अज्ञात । अपरिचित । जिसे कोई जानता अजघोष-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सन्निपात जिसमे रोगी के । | न हो। बिना जान पहिचान का । नया । परदेशी । २ अन जान 1 नोवाकिफ । शरीर में बकरे की गंध आती हैं ।--(माधव) । अजनवीपन- --सच्चा पुं० [अ० अनजवी+ हि० पन (प्रत्य०) ] अजनवी अजजीव-सज्ञा पुं॰ [सं० ] दे० 'प्रजजीविक' | को० ] । होने का भाव । उ०—उम पर दो भाषाओं के अजनबीन की अजजीविक--सच्चा पुं० [सं०] द करे पालकर उनके विक्रेत्यादि के द्वारा छाप दिखाई पडी ।—त्रितामणि, मा० २, पृ० १४२ । अपनी जीविका चलाने वाला व्यक्ति (को॰) । अजनयोनिज--संज्ञा पुं॰ [ स० ] दक्ष प्रजापति (को०] । अजटा--सच्चा स्त्री० [सं०] भूम्यामलकी । कपिकन्छू (को०] । अजनाभ--सी पुं० [सं०] भारतवर्ष वा एक प्राचीन नाम कौ] । अजड:--वि० [सं०] जो जड न हो । चेतन । अजनामक--मज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का खनिज द्रव्य (को०] । अजडर--मधा पुं० चेतन पदार्थ । अजनाशक--सज्ञा पुं० सि ०] भेडिया को । अजङ-वि०, सज्ञा पुं॰ [ स० अजड ] दे॰ 'अजड' अजन्में --वि० [सं० अजन्मा | दे० 'अजन्मा' । उ०——आत्म अजन्म अजण--सहा पुं० [सं० अजुन ] राजा सहस्रार्जुन (--(f३०) । सदा अवि-सी । ताकी देह मोह वड फाँसी :-- सूर० ५४ । अजथ्या--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ पीले रग की जूही का पेड र फूल ।। अजन्म--संज्ञा पुं० [सं०] जन्म का अभाव । जन्म न होना [को०] । २ पीनी चमेली । जर्द चमेली । ३ बकरे का समूह (को॰) । अजन्मा--- वि० [सं०] जन्म रहित । जिमका जन्म न हुग्रा हो । जो अजदडी--सज्ञा स्त्री० [सं० प्रजदण्डी ] एक प्रकार का पौधा । ब्रह्म जन्म के वधन में न झार्न । अनादि । नित्य । अविनाशी । दडी को०] । अजय"---मज्ञा पुं० [सं०] शु नाथाभ सूचक सप्टिव्यापार जैसे | भूकंप अादि ।। अजदर--सा पुं० [फा० अजदर ] दे॰ 'अनदहा' । उ०--अजदर । अजन्य--वि० १ जन्य या मनुष्य के लिये अनुपयुक्त । २ उत्पादन हैं भभूका है जहन्नुम है बला है --'भारतेंदु ग्र०, भा० १, के अयोग्य । अजननीय (को० ।। पृ० ५२२ । | अजप--संज्ञा पुं॰ [सं०] १ कूपाठक । बुरा पढ़ने वाला ब्राह्मण ।। अजदहा--- सज्ञा पुं० फा०] बडा मोटा और भारी साँप । अजगर । २ १करी, भेड़ पालनेवाला । गरियो । अजदाह-सज्ञा पुं० [हिं०] ३० मजदहा' । उ०---संत की प्रीति अजपति-- संज्ञा पुं० [सं०] १ उत्तम एव श्रेष्ठ वक । २ भौम । अजदाह की चाहिए, चले बिन फिरे आहार आवै ।--पलटू०, मगल [को०] । पृ० २६ ।। अजपथ-सज्ञा पुं० [सं०] १ छ यापय । अजवीथी (को०) २ वह अजदेवता--सज्ञा पु० [सं०] १ अग्नि । २. पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र को पय जिसपर केवल बकरी ही चल सके । अत्यत सँकरा मार्ग । | एक नाम [को॰] । विशेष --अजपथ के विषय में वृहत्कया इलोक्सग्रह में लिखा है। अजधाम--मज्ञा पु० [ स० अन + धाम ] ब्रह्मलो | उe---(क) पद कि यह राम्रा इनना कम चौडा होता था कि प्रामने सामने पाताल सीस अजधामा }--मानस ६ ।१५। (ख) पद हैं। से- धानेवाले दो व्यक्ति एक साथ उसपर से निकल नहीं सच ते थे । पताल दिग श्रुति अजघाम भाल वन घन मोल कलि भृकुटी विलास है ।-- दीन० प्र०, पृ० १५५ ।। अजपथ्य--संज्ञा पुं० [स०] दे० 'अजपय' (को०] । अजनदन---संज्ञा पुं॰ [ स० अज + नन्दन ] रघुवंश के राजा अज के । अजपद--संज्ञा पुं० [सं०] अजैक पाद नामक रुद्र [को०] । अजपा-वि० [सं०] १ जिसका उच्चारण न किंग जाय । उ०-- पुन्न देशरय । उ०—-त्याग दिया आज अजनदन ने एक साथ | जपते ममति अजपा विभक्त हो राम नाम --अपार, पृ० पुत्र हेतु प्र ण सदैव कारण अपए है।--माकेत, प० २०१। ४१। २ जो न जपे या भजे । अजन--वि० [सं०] १ जन्म के दधन मुक्त । जन्महित । अजपा--संज्ञा पुं० १ उच्चारण न किया जानेवाला तान्न । अजन्मा । अनादि । स्वयंभू । उ०—सकललोक नायक, सुख मत्र । वह जप जिसके मूल मन्न 'हस' का उच्चारण श्वास• दायक, प्रजन, जन्म धरि अायौं ।--सूर०, १०:४। २ निर्जन । प्रश्वास के गमागमन मात्र से होता जाय । हुन मत्र । उ०—मुनसन । उ०-- मो उर अजन पजिर मैं निज नोतिहि | अजपा जपत मुन अभिअतर, यह तत जानै सोई ।---कदीर जमाय जागोगे ---घनानद, पृ० १६२ । ग्र०, पृ० १५६ ।