पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१७९

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११६ इ.१ --- { ४ प - ४३ वा अ]ि छ या दूषणरहित, अजत--वि० पुं० [स० अच् + अन्त = प्रजत] वह शब्द जिसके अंत में | -: । । ---"न पद व गन्हे भूपण सव। अन् प्रत्याहार है । वह शब्द जिसके अंत में स्वर हो । है: । मानिन र २,fe प्रय पो 1--रजुन्य (अद०)। स्वरात (व्या ०) । ६ -३८ ८८ ६४] १ प्रदय । निरनर । लगातार। अजता-सट्टा पुं० [ देश० ] दक्षिण भारत में सह्याद्रि पर्वत की गोद में ० .-.-7 दि म्न् न”, नि । विही घ । झाठी जाम हवाला बागु नदी की घाटी में स्थित एक स्थान जो अपने ८ : ज न चन्मत न्न |-- बिहार) २०, ०४ : ५। १९ कलात्मक गुफामदिरों के लिये जग द्वयात है। • ६२ । ३२ धिर अत्यत । ज्यादा । उ०--(च) धने विशेप---मध्य रेलवे का इटारसी वबई शाखा पर स्थित जनगाव र गने 5 फिः ह उछाह !--विहारी र०, ६० र टेशन में उतर १ र फरपुर ह ते हुn जता जाने का मार्ग है । ६०० ।(5) न दारि पिय पग पनि, अदर रियो अच्छेह । गुफाएँ प्राकृतिक नहीं हैं, बल्कि पत्थर के ठोस ‘हाडी को कॉट--सार १०, २०६३ । । काट कर भारतीय नारीगरों द्वारा निमित हैं। वास्तु, शिल्प 1 --- [१०] दे० 'अक्षय' । उ०.--: मैटे व चिपम काल र चिन्न इन तीनो कलाग्रो का चरमोत्कर्ष इन गुफाओं में , पा, मटै धमः पद दहिए t-- पर श०, पृ० २६ ।। दृन्टिगोचर होता है जिनका निर्माणकाल ई० पू० दुसरी शती अद्योप, -१० [न: +छुप) आच्छादन रहित । नना। नीच । ( गुहा सख्या १०, १२, १३ ) से लेकर ७वीं शती म *छ । द न । उ०—वा मजम पार जप पूजा, सवः न निनको । बिहार गुहा १, २) है। प्रारभित्र गुहा में वौद्धो की हीनयान शाखा के प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं । शिल्प र चित्रों गुना । * भोप हीन मति मेरी, दादू को दिबुलावै ।-- में भगवान बुद्ध की प्रधानना है । १६वी गुहा सर्वोत्कृष्ट हैं । (७-१८ {५० प्रक्षोभ ] १ क्षमिरहित । चचलतारहित । इसके भित्तिचित्रो मे भगवान् बुद्ध और उनके जीवन की गनन्थे । ----वीर ब्रर्ती दुम धीर अधोभा । गोरी देत न विविध घटनाएं एवं विभिन्न जातक कथाग्रो वे चिन्न अत्यत सघे पाउ भाभा ।--तुलसी ( मन्द०) । २ हिथर । गभीर । हाथो से अकित है । रग ऐसे पक्के और चटकीले है, मानो कारीगर ने उन्हें अभी अभी समाप्त किया है । ५० फुट से t: 1 ३ माहुहिन । मायारहिन । खेदरहित । उ०—-जवते अधिक प्रशस्त मडप के ऊपर की छत तक अलकृन है। अन्यान्य वह जनमिया, तच ते परधन लोभ । के अधार कबहूँ। गुफा की चित्रसमृद्धि भी अत्यंत उच्च कोटि की है। ये न हैं हैं गौन अछ। कबीर--- { शब्द० ) १४ निर। गुफाएँ भारतीय स्वर्णयुग के साहतिक, कलात्मक और निय । ५ जिसे बुरा य में वरते हुए क्षोभ या ग्लानि | अध्यात्मिक उपलब्धियों की प्रत्यक्ष साक्षी है । न ३।। नन । अजतुक----वि० [सं० अजन्तुक जतुविहीन। प्राणीरहित । उ०—अधोर(५ ---- [० अ = नहीं + हि घोर= विनारा] अपार । अजरुक, जव पृथ्वी पर विसी प्रकार हैं। जीवन न था ।--- प्रल । दिन अर छारे में। हिंदु० भ्यता, पृ० ८ । । प्रोह'(५)--सुज्ञा पुं० { १० प्रक्षोभ, प्रा० अच्छोह ] १ क्षोभ को अजभ-वि० [सं० प्रजम् ] विना दाँत का । दतरहित । [गे । २. fः म्यिन्ता । ३ माह का म पचि । दया- अजुभम पुं० १ मेडम । २ सूर्य (को०)। ३. बालक मा व६ हैन । Tणान् निदं यना ।। | अवस्था, जव उसके दाँत न निकले हो (को०) ।। पछी ५'--.-वि० १ ६ मद्दिन । २. स्थिर । ति । ३ मान्य । अजमत्त ---मद्धा पुं० [हिं०] दे॰ 'अजमत' । उ॰--अजमत 'भारी ४ गणार हि । निर्दय ।। हमीर से जानी –१० रासो, पृ० ८५ । । । माही - [हिं०] ६० 'प्रोह' । अजसी--सहा स्त्री० [अ० एजेंसी] १ प्रजट के रहने का स्थान । में जगम--- मया १० {76 जनम } छप्पम नाम’ मात्रिक छद येः ७१ अजट का दफ्तर या उसकी कचहरी । ३ अाढत। माढत की भैया में है । दूकान ! देह दूकान जिसमें किसी दूसरे सौदागर या कारखाने विशेष---- एन ११४ वर्ग होते है जिनमें ३८ गुर मार ७६ की चीज बेचने के लिये रखो जाय । १ र ।। माझा मी नग्या १५२ है। अज-वि० [सं०] जिसका जन्म न हो । जन्म के वचन से रहित । भनट----सहा 3० [म एजेंद] १ प्रतिनिधि | किसी दूसरे को मोर अजन्म । स्वयम् । उ०—-म्रह्म जो व्यापज विरज अज अंकल

  • ग प नैन। २ किं । राहा पा सरवार की ओर से अनी अभेद ।—मानस, १५.० ।। नि १३ को द ग्यार में ६६। नियुक्त रि या हुअा व्यक्ति, अज-मुन्ना ५० १ ह्मा 1 ३०-~-लगने वाचि अज सबहिं सुनाई । [: '३ रनानम्र अप। राजा या मरकार की मानस, १६१ । २ विप्ण । ३ शिव । ४ ईश्वर (को०) । ६१ ।

मनमार फाप परना है । ५. कामदेव । ६. चंद्रमा (को०) । ७. एक सूयं चशी राजा जी ! " " न पोर में ममनन यो मूछ प्रग्य नैमर दशरथ में पिता थे। रा , ३ उदया। गुमाउः । प्रतिये | विशेष--वाल्मीकि रामायण में इन्हें नाभाग का पुत्र लिखा है पर :---." ० : ० ५ -६ (प्रत्य॰)] १ प्रजट मा रघुवश प्रादि के अनुसार ये रघु के पुत्र थे। ६ । १ नं ६ दर र ६। इसकी पह। ३. अजट ८, बेर । उ॰—तदपि न तजत स्वान, अन, खेर ज्या कित विषय अनुरागे ।--तुलसी ग्र०, १० ५१६ । ६. मैं”। १°•