पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१७७

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११६ अछन्। स्वरित प्र- ---- झी० [सं०] १ मंटल या घेरा । २. व या राग अच्युतागज---सझा q० [सं० प्रच्युताङ्गज] १ कामदेव । ३ कृष्णपुत्र प्रद्युम्न को०)। अन्दः -६० त०] टिने या छैदने के अयोग्य [को॰] । अच्युतागज-सपा पुं० [म.] १ विष्णु के बड़े भाई इद्र । २ श्रीकृष्ण


३८ [ २ ] अविभाज्य । विभाग न करने नायक [को॰] । के बड़े भाई बलराम । ईदिउ.--वि० [२०] ६० 'अन्वेदिक' [ मो० } ।।

अच्युतात्मज---सी पुं० [सं०] दे॰ 'प्रच्युतपुत्र' [को॰] । ६ दिन्छि- पृ० { हि० दे० 'प्रय वृद' । उ०—मत पुरुप अच्युतानंद'-- वि० [ म० अच्युतानन्द ] जि सका शानदं नित्य हो ।' अन्त रिम निरजन हार }---मनवाणी, भा० २, पृ० १८ ! अच्तानद सा पु० नम्वरूप परमात्मा । ईश्वर । अच्छोटन-सा सुं० [n०] प्रापेट । मृगया । शिनार [को॰] । अच्युतावास-सपा पुं॰ [स०} पीपल वृक्ष [को०)। प्रोत(५-३० [३० अक्षत, प्रा० अच्छत ? ] १ पूरा । २ | अशोषु--सा पुं० [ स० असम्भव या अत्यद्भुत, प्रा० अच्चमुस> । पधियः । वडून । २०--वृप में धर्म पृथ्वी सो गाइ । वृषभ अचानव ] दे॰ 'अचभ (डि० ) । ह्य तागो या भइ । मेरे हेतु दुखी तू होत । के अधमं तुम अछक(५--वि० [ स० अ = नहीं + चय, प्रा० चख, चक, फेफ, ] विना पर अच्छा !--[र ( शब्द॰) । अच्छद--भधा पुं० [म ०] वागभट्ट द्वारा कादबरी में उल्लिखित छका हुआ। अतृप्त । भूखा । उ०—-तैग या तिहारी मतवारी है। हिमा उपम्य एके मरोवर ।। अछक तौला जो नौं गजराजन की गजक करे नहीं ।---भूषण अच्योद-वि० म्न्नन्छ या निर्मन जलवाला [को॰] । ( शब्द०) । अच्छोदा-सदा स्त्री॰ [१०] पुराणों में चणित एक नदी [को॰] । अछकना -क्रि० वि० [हिं० प्रछक से नाम० ] अतृप्त होना । तृप्त च्याहिन}---मधा झी० [हिं॰] दे॰ 'अहिणी' । न होना । न प्रवाना । उ०---चपक वैलि चमेलिन मे मधु अन्टोहिनी--सा स्त्री० [हिं० ] अक्षौहिणी सेना । छाक छक्यो अछक्यो अनुले । माननी मज गुलाब समोर अच्यत५----० [ ६०] ३० प्रचित्य" । उ०—च्यत च्यत ए। घर नहि धोर मनोज की हूलै !--(शब्द०) । | मच्चिी मय माहि समाना ---कवी ग्र०, पृ० १०० । । अछग्ग@--वि॰ [हिं॰] दे॰ 'अछ' । ३०---परे के अछग्गे । न प्रयता–नि० वि० [म० अचिन्तित 1 अकस्मात् । आकस्मिक वैरीन सगे ।--पृ० २०, ८१५२ । । | 53 गे । उ०--फान्न पच्यता झडपसी ज्यू तीतर को बाज - अछत(s)---क्रि० वि० [सं०/क्षि, प्रा०५/अच्छ] [क्रि० स० पवर १०, १० ७२ । ‘अछना' का कृवत रूप जिसका प्रयोग क्रि० वि० की तरह अच्युत-वि० [सं०] १. जो गिरा न हो । २. दृढ। अटल । स्थिर। होता है। ] १, रहते हुए । उपस्थिति में। विद्यमानता में । ३ नित्य | अमर । अविनाशी । ४, जो न चूके। जो त्रुटि न समुख । मामने । उ०---( क ) खसम अछन बहू पीपर जाय । दर। जो विचलित न हो। ५ न चूने या टपकने वाला (को०)।


कबीर (शब्द०) । ( ख ) सापु अछत जुवराज पद रामह अच्युत-स पृ० १ विष्णु और उनके अवतारों का नाम। २ वासु

देउ न रेसु 1--मानस, २११। ( ग ) तिनहि अछत तुम अपने देव 1 कृष्ण (को०) । ३. जैनियो के चार श्रेणी के देवताओं अलम काहे कत रहन से गात ।-सूर०, १०॥४२१५ । में मौर्या अपने बैमानिक श्रेणी के कल्य'भव नामक देवताओं का पर भेद । ४. रि' पोधे का नाम । ५ एक प्रकार की पद्य २. सिवाय । अतिरिक्त !--लखन कहे मुनि सुजसे तुम्हारी । ना जिसमें १२ वध होते हैं (को०) । तुम्हहि अच्छ को वरने पारा ---मानस १२७४ ।। अच्युतकुन--6) पुं० [सं० अच्युत + फुल ] वैष्णव का समाज और अछत ---क्रि० वि० [ स० अ = नहीं + अस्ति, प्रा० अच्छ= हैं ] उनी विपरपरा। विशेषकर रामानदी सप्रदाय के वैष्णव न रहते हुए । अनुपस्थित । उ०--गनती गनिवे तै रहे छत तन प्रपने को प्रपतन या प्रत्युतगोत्र कहते हैं । अछन नमान --विहारी र०, दो० २७५ । अच्युतोत्र-गा। पुं० { हि० ] ३० ‘अच्युतकुत्र' । अछताना पछताना--मि० अ० [ स० पश्चात्ताप, प्रा० पच्छाताव से अन्तजगा ई० म०] जनिया मा एकः दैवव जी विष्णु से विपम द्विरुक्त नाम० ] बार बार किसी भूल या किसी वीढी इन्य २ गया। [१०]।। हुई बात पर खेद करना | पछताना | उ 9---ऐसे सच समझ अच्युतपत्र---पः पुं० [१०] १ कामदेव । मनग । २ मृण श्रीर अद्युताय पछताय मेवों सहित इद्र अपने स्थान को गया ! इन्मिए । पुत्र प्रद्युम्न [ फो०] । अन्यतमध्यग--सपा पुं० [सं०] मर्गत में एक विकृा स्वर जो मार्जनी । लालूलाल (शब्द॰) । नाप 7 5 माग्भ होता है और जिममे दो ध्रुतियां होती हैं। अछन'---संज्ञा पुं० [ स ० अ + क्षण ] क्षण मात्र नहीं । बहुत दिन । अननृत-संवा १० [३०] विष्णु, [को॰] । दीर्घकाले । चिरकाले । ३०----देन कहहि फिर देत न जो हैं । मनगर--म' यु० [सं॰] यह वृक्ष जिममे भयून प्रयत् विष्णु ।। प्रजम अछ। यो भाजन सा है ।--पद्माकर (शब्द०) ।। शिम ? । पदउ । 3" [७] } अठन --क्रि० वि० [अ० (उच्चा० ) + स० सण , प्रा०, अप० छन] ६न्द न--- पुं० [१०] मन में पवित्र न्यर दो छदात्य धीरे धीरे ! ठहर कर । उ०--प्यारे इन घन गलियन प्राव । " श्रु में प्रारंभ होता है और जिनमे दो श्रुतियाँ नैनन जन्न सो धइ सँवारी अछन अछन धरि पावर---रमिक विहारी (शब्द॰) ।