पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१७५

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चेतन ११४ पच्छ्यतिर भनेतन-[2] १ वै त । जिनमें सेना का अभाव अचौकी--वि० [सं० ४ = नहीं+ हि० चौंकना = चकित होना ] अच ८२ :गि प्रकार अनुब की गक्ति कित । स्थिर। उ०—हुत अचीवी चित्त नित ही ध्यान से । । । 'न' मा इटा। उ---मद ने एन अचेतन । 'रायरो 1- ज० ग्र०, १० ३८ । । । । । - मीर !--मायनी, पृ० ११ । चन--8) पुं० [हिं०] ६० * अचवन" । उ०-चातक उमा वन 5 9न ६०)। ३. वहिं। निजीद (को०)। प्रानैद अचन को -- घुमानद, पृ० १५६ । | ग । म । ----'वः पतन झवस्था में पाया । अचान--सी पुं० [ हि ] ३० प्रचन' । अच्चड़े--वि० [ स० प्राश्चर्य ; प्रा० अच्चर | अचभः । अचरज । उ०अनन--15० प्रविन्द पद । उइ द्रव्य। भाण तण 'रनाथ महाभड प्राय परच उबारगी अच्ड | •ना -- { वैन ] नाविहीन । चेत् । २ चित रा० ६०, पृ० १३४ । f? । भितनि । ३ वहिन । निर्जीव (को०] । अच्छद----वि० [ सं प्रच्छन्दस् | १ देदाध्ययन न करने वाल।। २ अनन---f२० [ नं०] १ वागविहीन । न जाननेवाला । २. गर्छ । वेदाध्ययन के अधिकार से विहीन । ३ छद या पद्य से रहित । छविहीन । ४ छलविहीन छद्म 'हिर (को०)। पता :- ० (गः = नहीं + हि० चेत +६ (प्रत्य॰)] अच्छ१.-मा १० । म०] १ स्फटिके । २ भालु । ३ स्वच्छ जले उनी । वे 1 गफलत । (दि०)। ४ अभिमुख्य । समुख होना । को०) । ५ एक प्रकार अर--ना पु० [३० चेतक 1 वन्न न रखनेवाला या वरप का पौधः (को०) । 7 पन्ः नेवाने भिजु । भिग्रा वा एक भेद । ३०-- अच्छ- वि० म्यच्छ । निमंल । पवित्र । ग्रन्छ । उ--(क) उदधि भिसा ! कुछ चेल, प्राजीविक, निगंठ आदि भिक्षु है ।-- नापति रात्र को, उदिन जानि वलवन । अ रिक्ष ही लक्षि पर १० मा, पृ० २३१ । अच्छ छ्या हनुमत --केशव शब्द०) (ख) मान विधि चेन्नपरन--- ६ | रा ० प्रचलपरिसह । गागम में कहे हुए तन प्रच्छ छवि ग्वन राखिवं काज दृग-ग-पोंछन क करे नाः ३ग ने 5 उनके १ अर पुराने होने पर भी मूने पावदोज ---बिहार २० द'० ४१३ । दि में ग्लानि २ जाने का नियम ।। अच्छ' (७ --प) मुं० [ स० श्री प्रा० अच्छ) १ अखि । नेत्र उ०प्रट-दिः [२०] १ ३प्दारहिन । १ विना प्रदान की । ३. गति (क) कहे पदमाकर ने • च्छन प्रतच्छ होत •च्छन के आगे है अविच्छ गाइनु है |--पद्माकर (शब्द०) । (ख) जो तव अप्ट्रि --- [न०] प्रसन्न या चेप्टारहिन । २ विना प्रभास को अच्छ समच्छ मत कर पकरि छुपानी ।---रत्नाकर, भा० १, पृ० १०१ । २ रुद्राक्ष दे०--मौजी श्री उग्वीत ऋच्छ कठा तन्य'----३० [२] मैदनारहित ! ग्रामविहीन । ३ । व ल धारे |--रत्नार, भा० १ ० १०१ । ३ अाकुमार चैतन्य:---सा पुं० १. निश्चेतनता । चेतना का अभाव । ३ नामक रावण का वेटा। उ - खवा हति विपिन उजारा । इन । ३, तन।विहीन द्रव्य या वन्त । जड पदार्थ देखत तोहि अ-छ तेहि मारा ।—तुलसी (शब्द०) । | : । ४ होश हवाम न रहना । वेहोरी (को०)। अच्छत मी पुं० ( स० ग्रघात, प्रा० अच्छत ] विना टूटा हुयी अर्चन--- ० [न० ४ = नहीं+दे० चैन) बंईन । व्याकुलता। चावल जो मग ले द्रव्यो में गिना जाना है और देवताश्रो यो यि । दु । पोष्ट । ३०---विनै मान प्राप्त है चलिये, चाया जाना है । उ०—अच्छत अकू रोचन लाजा । भजुल ब” । जुन टठि तजि रिस विक्षी, हँग दुहुनु के नैन। में गन तुमि बिराजा ।---मानम १।१४ । । - दिने,६० ६६ । अच्छत --वि विडिन् । लगातार। उ०--राधी हेरत जो गयो, भने-;. [ ० २ = न+दैन = रनि ] [ ० प्रर्वनी] अच्छत हि मम'धि नह नुन राघव घाघ ४ा, सके न थे। 1 7 । यि।। ३०-- ६ वि चिन्यै चहुं ओर अपराध । —जायसी । शन्न ) । ले पनि उनी १०-देव (शब्द०) । अच्छत (Q:--- क्रि० वि० { हिं० छत 1 हते हुए उपस्थिति में । आईना--- पु० [ न० धिन्न - टा हुया ] १ ननट मोटा कुदा विमानता है । उ०~-बुद्ध की करत छाजन नहीं हैं तुम्हें सुनि । । । र है र निउर र मासे से महाराज अच्छत हमारे १-१र०, १०1८१६४ । * : *। *। *। नि ! ठी। हैमूर। अच्छभल्ल---सच्चा [सं०] भालू । मल्ल र फि०) । * **? 7 है । पर 1- द न ल ।। वो अच्छम(५---वि० [ ० श्रद्दाम 1 अगमर्यं । अशक्त । 'नाचार । उ०* 7 * * { ८ गते। 1ि हुए। सब है ममग्थहि नुवद प्रिय प्र-छम प्रिय हितकारि }--तुलसी गना --- पुं० [३३ वमन प्रा० नाचनअ<<प्रचउन7 ग्र०, पृ. ६२ ।। नन्दा ! म २ । गा । । । ३नन । अच्य (५)---वि० [हिं०] १० अक्षय' । उ०—-मैं रछक रन दन्छ ग। - 1? ६ , म ने नगर पत, यि झन्छय वन मानी !--रत्नाकर, भा० १, पृ० १६४ । १ * * * * * *। * 3 न अन्य ततिया(५-- मी० [हिं० दे० 'ग्रसघं तृतीया' । ०० ८", ६ नम : f Etv । ३नन मान अच्छय तृतिया, अछ। सुनिधि पिय की प्यारी चढाई वदने । नेद० २६, पृ० ३७१ ।