पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१६९

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१०८ अषित १ (२---** * [* भापति गोट । मारे । प्रहार । ३०-वृंद कीर मा०, पृ० ३७ । २ अपकर। भयानक । -६३ | " * * }-मनन, '१।१४ । एहि पर मोक न हुरही । सो गुरु नर्क अघोर हि परही । म --- {{। अपन] १? म । र । ज्यादा। अधिक। मे० दन्थि ।, पृ० ७ । "}. । * •६ इन मनि। इन नहि दोन्ही बाढयो बैर अघार’---मुभा पुं० [सं०] १ शिव का नाम या एका रूप । २. एक पत्र या मप्रदाय । - ----२ {•] ? या नि ने भन्नेमा [को॰] । विजेप--३मने अनुयाय न केवल मद्य मास का व्यवहार अत्यधिक पाना-- ० ० [सं० प्राण] १ भोजन या पान से तृप्त होना। करते हैं, वरन् वे नरमाम, मल मूत्र आदि तक से घिन २४ : मी पाना । घरनी। मरना। ४०--पुरप को नहीं के रते । कीनाराम इस संप्रदाय के यळे प्रसिद्ध पुरुष हुए हैं । ११ २१ । मिति पाए । जुग जुग छुधा बुभाई ता पाइ ३ अघोर पय का उपासक । अघोरी । उ०---मति के कठोर मानि धरम को तोर करे, करम मधोर धरै परम मेयर --• पा + प्रा' का अपं छी तरह गूंघना है। यह को ।--भिखारी 7०, २० २, पृ० ३४।। •rif; भएर प्यु होना' सशनि' अर्ष धीरे धीरे अयगिग रिया से ‘मयाना' को अर्थ देने लगा। अधोरघोररूप-सज्ञा पुं॰ [सं०] शिव का एक नाम (को०) । ३ नुट होना । नृम्न हैन । मन का भरना। इच्छा को पृर्ण । अघोरनाथ--सा पुं० [में०] भतनाथ । शिव। इन । ३००-२प्रमिय चिर बिंदु माधव छवि निरहि नयन । । अघोरपथ-- पुं० [२० अघोर+पथ] अघरियों का पथ या संप्रदाय वि० दे० 'घोरमागं' ।। गई।-नुनी प्र०, पृ० ४६१ । ३ प्रमन्न होना । पं से मन्निन ! ::--यात ही तरिका देरि ऋवि देत अध अघोरपयी--सच्चा मुं० [ सं० अघोरपथी ] अघोर मत का अनुयायी । | अघोरी । औघड ।। ४,१३ साई ।- सुनी प्र०, १० २६६ । ४ () घना । अघोरपय--सी पुं० [सं०] शिव की उपासक एक संप्रदाय [को०] । 5 It । 5००-प्रम वचनामृत सुनि न अघाऊँ। मानस, अघोरप्रमाण---संज्ञा पुं॰ [सं०] भयकर परीक्षा या शपथ [को०] । ७६८६ ।।, (५ ना दो पाँचना । ३०-सी पछिताइ अघई र पनि ६ हित हानि।-मानम २६३ । | अघोरमार्ग--सा पुं० [सं०] अघोर मतावलवियों की साधना को ढग । अपना :--० =}~ रीट भरना। तृप्न फरना। उ०—१रै भहराई प्रघारियो को सघन मागं । ३०-सारूप्य मुक्ति सो तव पावे, भइर। रिपु पाः अघोरमार्ग को जो कोई ध्यावे ।- कबीर सा०, पृ० ६०५। ” रि मदन रुधिर में अपाक }---सूर, विशेप--अघरमार्ग में शिव की प्रारीवर रूप में उपासना होती भानु-य० १० १ मानिन्छ । ३ दूसरे की अनिकामना करने हैं । माननाघन, विसाधन, मनसाधन, पचमकार सेवन, पापमय जीवन व्यतीत परनवाला । ३. सभी अवस्था । चित'मम्म र रुद्राक्षधारण अष्टि इस मार्ग में विहित है। * परिमं प रयाना (को०)। तात्रि ३. वीराचरिया से इनके प्राचार विचार मिलते है । पारी'--.fd० [सं० अपारिन्] यमन या दु ख से युफ्त फो०)। अघोरा--सपा स्त्री॰ [सं०] भाद्र कृष्ण चतुर्दशी । भादः वदी चौदस । सारी'---- १• १० ११ + भरि] १. पाप हो भन्नु । पापनापा। विशेष--इस तिथि को शिवपूजन का विशेष महत्व है। ६T * परवति । ---तुम्हरे भजन प्रभाव अपारी -- अघोरी'--या पु० [सं०] [स्त्री० अघोरिन्] १, अघोर मत का अनु१६, ३१ । २ अर नामक दैत्य को मारनैयाले श्रीण सायी । अघोर पथ पर चलने वाली सधि जी मद्य मास में सिवाय मल, मूत्र, शव आदि घिनौनी वन्तुषो को भी खा जाता प ३५ ०-० [३० प्रपात पाप । दुरगामी । ३०-साधी कध है और अप। वे भी भयवर अरि घिनौना धनाए रहता है। उन पर मतप दुनिया भर। गरीवरम शाह पा रहे ग्राघः । कीनारामी । २ घिनौनी वस्तु का व्यवहार करने दयो भय वार -- ० ० १२७। वाटा व्यक्ति । भदयाभक्ष्य का विचार न करनेवाला। सर्वभसी। दि}---FE" ० ० प्रपना भघाने की न्विनि या 'भार । घृणित व्यक्ति ।। Y;" .-" : { मया - यर् [प्रर५० }] १. अघाने या प अधी --वि० जो विनानं वन्तु का व्यवहार गरे। घृणित । | } *ने ? यि ६ माय । २. ३ । घिनौना। उ०—यन्यौ घमं आपहि तुम हित चडाल अपारी । -- • [१] *ग में मेनापति अप नामक दैत्य जिते । रत्नापर, मा० १, पृ० ६२ ।। "} 7 में म प ।। अघोप'.-वि० [सं०] १ शब्दरहित । नीरव । २ अल्पवनि मुक्त । --** {}} । पगिन । मःम ! इ०-फूर, मु जाति, ३ ग्वाल या अहीरों से रहित ।। | F, F६१ १ १ ज २२ र १ज १-२i ( २०}अपरिहा पुं० १ =करण में एक वर्षसमूह का नाम । t ;--- • [ *] - टा। विप --उसमे प्रये वर्ग वा पना श्रीर दूसग अक्षर तथा , –६० ! •] १ ज ६, या भय न । (३) । ३. | प, में भी , पधा--क, प, च, छ, ट, ठ, १, २, ५, ६, | ३ । १६ । नः।-- --'नय 4: 7 में पयार * २६ }--२ ६० १६, १८ १८३ ।। ३, नेर फै। नया का मून' शब्द पपाकि पाप थर्ण १३ हूत है ने-'---- { १० ६ | १. ५। । पठार। इ:--- म ६६ ।। है । म मेयर :; भो म --- अमोदित--५० [३०] बिना हा या पोरगर क्रि हु । '