पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१६७

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१०६ --:मा ६ ; 7 है कि उनका प्राय एक नियत अग्रेणी--संवा पु० [सं०] नेता । अगु । [को०]। * ; ; प । वन कमी कभी अदिधिषु-सा पुं० [सं०] ऐसी स्त्री से विवाह करनेवाला पुरुष जो :: : * * * * *ना है जिसने उनसे कुछ और पहले किमी अौर को व्याही रही हो । अग्रेदिधिषु...) खी• वह क्या जिसका विवाह उसकी बड़ी बहन ----- {{} 7 मा ३ = [सं०] । के पहले हो जाय ।। -- ८ || ' (०]। अग्रेसर-वि० [सं०] दे॰ 'अग्नसर' [को॰] । ----- ० ० ० ' ! ।। अग्रेसरक--क्षा पु० [सं०] १ नेना। अगमा । २. अपने मालिक के 1 --- { " -4-5 ] गना। उ०---अबेर की आगे आगे जानेवाला सेवक [को०)। " , " rfr: "न १-- ० ग्र०, भ० १, अग्रसुर--सा पुं० [सं० अग्र । ईश्वर | देवताओं में अग्रणी या प्रथम पूज्य गणेश । उ०- सभरि तिण पाछे अप्रेसुर दया क्री कर --- १ - [१०] ३ ' ना' [य० । श्री लवोदर 1--रजि० ए० ४ । पान -7°/ १० (::] * । न्विति या भाव। हैरान । अङ्ग्य'--वि० [ स०] १ प्रधान । श्रेठ। २ अगली ।

-- गुन गुना में इतनी अग्रान हो गया कि ३ कुशल [को०] ।। ५ 11 पनि पनी ने नगा !--प्रेमघन॰, भा॰ २, अग्य--मज्ञा पुं० १ बड़ा भाई ! २ सय से बडा म ई (को०) 1 ३ सय

वैदी को आनन्यमा हो' एकरस पढ़ने में समयं याह्मण, जो | •ि प्र---रना - श्रद्धा के साधको मे गिना या हो । ४ छत । पाटन (को' । अगनी--- : [ ] ना TT मा जानेवा'ना नाग स०]। घनिका--वि० [सं० अघ 1 पपय । पापिनी । उ०—प्रसिद्ध हो गाय--१० [९] १ । गाँध 7 न है। नगर वः।। । । २ अघनिया -भिखारी० ग्र० मा० १,१० १८’। | Pr="1 ३ जी रा पोता न हो। जुगनी [९] । अध१ [१०] १ पापात्मा । २ बुरा। बदमाश । ३ दप धान-- ० ५ मा सह अंन जी देवता के लिये दुष्कर्मी [था। e]! तिन 13 दि दाना है। वह अपने पशु और अध२--सझा ५० १ पाप । न्यो । } में उ०-~सुन प्रवे नर हु 31 7 नाना ।। नाक निकोरी :--मानस १ २६।२ दोष । गुनाह दुष्कर्म । म न-- १ • [ग] प्रधान मनि । मुय स्थान । गवसे प्रागे उ.--जेहि अव बने ब्याध जिमि बनी ।—मानस, १ २६ । । न ग p 7न । ३ दुख विपत्ति । उ०—खि विस्व हरपित करत हरते पन्ना- [*, *] 1 5 7ग न योग्छ । प्रग्रहणीव । धारण ताप अप प्यम ---तुन सी ग्र०, पृ० १३४ । ४ व्यसन । * : * सय । २ न न नायक । ३ त्याज्य । छाडने ५ अगौच (को०)। ६ मथुरा के राजा कस का सेनापति माइ । ? न माने यंप । अविचारणीय (को०)। ५. अपामु' जिसे कृष्ण ने पारा था । {२} १३ । पगिनीय (F०)। अघम्रोध :-मग्रा पुं० [म० अधौघ पानानमूह। पाप राशि। उ०~~-~----;" " [२] नीद में फर्म में प्रयुक्त न होनेघानी । मिय निदा अघोघ नसाए । लोक विसोय बनाइ बसाए । -~-मानम १११६ । 'र'-- { * *] 1 प्रातः । पेश। २. पागे भानेवाला । अघकच्छ--मा पुं० [१०] एक व्रन जो प्रायपित्त के रूप में किया ":"ri -- प्रति अपम झुत्रो में गिद्ध करेंगे । जाता है। अघमर्पण कृच्छ (को॰] । ;"* १:३०) । ३ नि । श्रे। इत्तम । ४ मर्यरठ। अघकृत--वि० [म०] पातकी । पाप करनेवाला [को॰] । * ; ; (०) } } ४ । । । (के०) । अघन--वि० [सं०] अघ या पाप का विनाशक [को०] । १३ ---, - • द; 1:। पत्र । अघघ्न-सा पु० विष्णु (को०]: । 1 -- १; ५० [:} *** । न्ना गा मिफ3 ) । अघट!---: [स० = नहीं + घट ८ होना] १. जो कार्य में परिणत * : * -- 1- [-] १ ६ १ १ २ देना।२ चैप्ट। न हो गये। जी घटिन न हो। न होने योग् । उ०--प्रवट घटना गुपट, सुपट पिपटन बिगाट, भूमि, पाताल, जल, गगन २५ -* * *। । । । । ? राम गता ।---तुमी ग्र०, पृ० ४६७ } २ दुर्घट। कठिन । ३ । जो ठ" न पटें । जो ठीक न उतरे।, अनुपयुक्त । बेमेन । अयोग्य । उ०--भूपण पट पहिरे विपरीता। वो 3 अंग प्रपट उ पैंग नेता |--विश्राममाग (द०)। -~* ,* * * - } ** १ ] नि ? 77 दिनप्रा प्रघट-० [H ०१= नहीं 4- पट = हिसा १ ज न पटें । जो मम न है । न कुनै पो । अक्षय । ३०-०-माटी मिर्स ने गगन 3-...' । ५। [; ; ;, ४, 2। : ।। । दिलाई। अमट र २६ न जाई -दादू०, पृ० ५७ । २ । मुम भाव रहे। एकरस स्थिर । उ०—-(क) गिरी या