पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१६५

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अन्य | १०४ अग्रभाग अग्य(+--वि० [सं० , पु० हिं० प्रग्य ] राम विरोधा विजय चह अग्रगामी दल-—सा पु० [सं०] [ अँ० फारवर्ड ब्लाक ] वह सस्था सठ ही बस अति अग्य -मान, ६३८३ ।। वा संघटन जिसकी स्थापना सुभाषचंद्र वसु ने कांग्रेस से सवअग्याँ!!~-सा भी• [ स० आज्ञा, ५ अग्या ] दे॰ 'आशा' । उ०-- विच्छेद करने के बाद की। अग्याँ भई रिमान नरें सू ।--पदमावत, पृ० ४६३ ।। अग्रजघा--सज्ञा स्त्री० [ स० अग्रजङघा ] जाँघ का अगला भाग [को०]।। अग्याँन --सा पुं० [म ० अज्ञान, अग्याँन, अगेयान] दे॰ अज्ञान'। अग्रज-सज्ञा पुं० [सं०] १ जो भाई पहले जन्मा हो। वेडा माई । उ०--जोवन गृन गवित सुनि सजनी तज्यो नाहि अग्याँन -- ज्येष्ठ भ्राता । अनुज का उलटा। उ०--अग्रज परतिग्या पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० १४८ । करी तुव उरु तोडन हेत ।--भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ११४ । अग्या--मज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'अग्य' । उ०--जो अग्या समित २५ नायक । नेता । अगुआ। ३०-सेना अग्रज हृत्य । स्वामि दीनी सु मानि लिय 1--मृ० रो०, ३१॥४८॥ पच भट थक्ष कुमारहि घात!--रामस्वयंवर (शब्द०)। अग्याकारिनि--वि० सी० [स० अाज्ञाकारिणी अादेश माननेवाली। ३ ब्राह्मण । । सेविकी। उ०---है तो तिहारी अग्याकारिनि साँचि वात मोसौं अग्रज'G ----वि० १ श्रेष्ठ। उत्तम। उ०—वैठे विशुद्ध गृह अंग्रज अग्न क्हा करी मद्दराज ।---नद० ग्र०, पृ० ३६८ । जाई। देखी वसंत ऋतु सुदर मोददाई ।--केशव (शब्द०)। अग्यात--क्रि० वि० [ स० अज्ञात, अग्यात ] दे० 'अज्ञात' । २ श्रा' पैदा होनेवाला । उ०—-रोवत ते घरजे सवै मोहन अग्यान--वि० दे० [हिं०] ‘प्रग्यान'। उ०—-मैं अग्यान अकुलाइ, अग्रज भाइ ।--सूर०, १०४५८६ । अधिक ले, जरत मभ इन नाय --सूर०, ११५४। । अग्रजन्मा--सझा पुं० [सं०] १ बड। 'माई । २ ब्राह्मण। ३ ब्रह्मा । अग्यारी+--- सपा प्री० । स० अग्नि + कारिकी, प्रा० अग्गिारिया = अग्रजा--सहा स्त्री० [सं०] वडी बहन'। उ०---प्रभु कहाँ, कहा किंतु होमहर्म ] १ अग्नि में घूप, गुड श्रादि सुगध द्रव्य देने की |, अंग्रजा, कि जिनके लिये था मुझे तजा ।--साकेत, पृ० ३१२।। क्रिया । धूपदान । २ अग्निकुड। अग्रजात--संज्ञा पुं० [सं०] १ ब्र ह्मण । २ चूड़ा भाई (को०)। अन्योन -उज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'अगवान' २। उ० --सुनि अावत अग्रजातक-सज्ञा पुं॰ [सं०] ब्राह्मण (को०] । दृहून, वरिय अग्यौन सलप बर -पृ० रा ०, १४:२२ । । अग्रजाति--सज्ञा पुं० [सं०] अग्र जातक । ब्राह्मण [को॰] । अग्र'-मक्ष। पुं० [ म०] १ अागे का भाग। अगला स्सिा । अगा। अग्रजिह्वा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] जीभ का अगला भाग [को०]। उ०--बहुरि वरि कप हल अग्र पर इझ धरि कटके को सकल अग्रणी -- वि० [म ०] अग प्रा । श्रेष्ठ । प्रधान । मुखिया । चाहत हुवायो ।--सूर० (शब्द०)। ३. सिर । नोक उ०-- जैमें जवे के अग्र ग्रोस कने प्राण रहत ऐसे अवधिहि के तट 1-- अग्रणी-मज्ञा पुं० १ प्रधान पुरुष । मुखिया । अग् प्र । २. वह्नि। सूर (शब्द०) । ३ स्मृति के अनुसार अन्न की शिक्षा का एक अग्नि [को॰] । परिमाण जो मोर के ४८ अटो के बराबर होता है। ४ शृग। अग्रत --क्रि० वि० [स०] अागे से । पहले से ।। शिखर (को०)। ५ श्रेष्ठता। उत्कर्ष (को०)। ६. आलंदन । अग्रदानी--सझा पुं० [सं०] वह पतित ब्राह्मण जो प्रेते या मृतक के अवलयन (को०) । ७ प्रारभ । शुरुअात (को०)। ६. | निमित्त दिए हुए तिल आदि के दान को ग्रहण करे। समूह । म ड (को०)। ६ पल नाम की एक तौल (को॰) । | अग्रदूत-सुज्ञा पुं० [सं०] वह दूत जो किसी के आने की सूचना प्राने१० अपने बग बी जाति का सर्वोत्तम पदार्थ (को०)। ११. वाले व्यक्ति के पूर्व ही पहुँच कर दे। उ०—-मैं ही वसत का। सूर्य का घेरा या मइल (को०)। ग्रे दूत ।--अपरा, पृ० २६ ।। अग्र--क्रि० वि० अागे । उ०—चली अग्र करि प्रिय सखि सोई ।। | अग्रनख–सधा पुं० [स०) नख का अगला भाग (को०]। प्रीत पुरातन ल न कोई ।--तुलसी० (शब्द॰) । अग्ननिरूपण--मज्ञा पुं० [म०] भविष्य या भावी का कथन [को॰] । अग?--वि० १ अगन्ना। प्र यम । २ श्रेष्ठ । उत्तम । ३ प्रधान । अग्ननी--वि० [हिं० दे० 'अग्रणी' । उ०—-वीटन को नायक | मुख्य ! ४ अधिक। ज्यादा । [को०]। सहायक वरूथिनी को अनज = २गि वर अग्रनी बनायी है । अगकर--सज्ञा पुं० मि०] १ हाथ का अगला भाग। २ हाथ की दीन० ग्र०, पृ० १३४ । इंगनियाँ। ३ मूर्य की प्रथम किरण । प्राण (को०]। अग्रपर्णी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] ऋजलोमा। केवच [को०]। अग्रकाय ---मा पुं० [स०] शरीर का अगला भाग (को॰] । अग्रपा--वि० [म०] सबसे प्रथम पानेवाला [को॰] । अग्रग--मा १० [सं०] अगुप्र । नेता को०]। अग्रपाद--संज्ञा पुं० [सं०] पैर का अगला हिस्सा, अंगूठा [को०] । अग्रगण्य--वि• [१०] जिसकी गिनती पहले हुई। प्रधान । मुखिया । अग्रपूजा--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ सबसे पहले पूजन । सर्वप्रथम अर्चना । श्रेष्ठ । दहा ।। २. सबसे अधिक पूज्यनीय मान्यता [को०]। अग्रगामी'----सुखा पुं० [स० अग्रगामिन् ] वह जो प्रागे चले। प्रधान अग्रवीज--संज्ञा पुं० [सं०] १ वह वक्ष जिम्की हाल काटकर लेगाने व्यदिन । अग्रसर । अगअः । नैना । से लग जाय। पेड जिसकी कलम लगे । २. कलम । । अग्रगामी'- वि० [ी० ऋग्रेनागिनी ] आगे चलनेवाल।। अगुआ। अग्रवीज-वि० कलम से होनेaना [को॰] । , अग्रभाग--संज्ञा पुं० [सं०] १ उ०---हे मदा तुम तो अनुगामी, अाज अग्रगामी न बनो।-- भागे का भाग। अगला हि माकेत, पृ० ३६६ । सिरा । नोक । छोर। ३ श्राद्ध ग्रादि मे पहले दिया जानेवाला द्रव्य [को॰] । ४. शेष अंश या भाग [को०] ।