पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१६४

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অলিঙ্গি १०३ अग्न्युपस्थान अग्निशिख--संज्ञा पुं० [सं० ] १ कुसुम' या चर्दै का पेड़ । २. कुकुम । अग्निसात्--वि० [सं० ] भाग में जलाया हुअा। भस्म किया हुश्रा। केमर । ३ सोना । ४ दपक । ५ वाण । तीर । ६. अग्नि- क्रि० प्र०—करना ।--होना । वाण (को०)। अग्निसार--संज्ञा पुं० [सं० ] नेत्रों के लिये आयुर्वेदकथित एक श्रौपघ । ' अग्निशिखा--सधा स्त्री० [सं० १ १ अग्नि की ज्वाला । आग की लपट । रमाजन (को०) ।। उ०--अग्निशिखा बुझ गई जागने पर जैसे सुख सपने ।-- अग्निसुत--संज्ञा पुं० [सं० ] कातिकेय (को०) । कामायनी पृ० १३८२ कलिया या करियारी नामक पौधा अग्निसूनुसती पुं० [सं० ] कार्तिकेय (को०] । जिसकी जड में विप होता है । अग्निमेवन--सज्ञा पुं० [ मं० ) आग तापना । अग्निशुद्धि-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ अग्नि से पवित्र करने की क्रिया। अग्निस्तंभ--सद्मा पुं० [स० अग्निस्तम ] १. अग्नि के प्रभाव को रोकने अग झुलकर किसी वस्तु को शुद्ध करना । २ अग्निपरीक्षा । | का कार्य । २ अग्निप्रभाव रोकने वाले मन । ३ अग्नि-प्रभावअग्निशेखर--संज्ञा पुं० [सं०] १ कुसुम या बरे का पेड़ । २ केसर । निरोधक चूर्ण या लेप (को०] । । ३ जागली वृक्ष। ४ सोना । स्वर्ण (को॰] । अग्निस्तभन—सझा पुं० [स० अग्निस्तम्भ ! दे० 'अग्निस्तभ' (को०] । अग्निश्री--वि० [सं०] अग्नि की तरह दीप्त या शोभ वाना [को०]। अग्निस्तोक---पुं० [सं० ] स्फुलिंग। चिनगारी (को०)। अग्निप्टुत् --सज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का यज्ञ जो एक दिन में पूरा अग्निहोत्र--संज्ञा पुं० [सं०] वेदोक्त मन्नो से अग्नि में आहुति देने की होना है। यह अग्निष्टोम का ही सक्षेप है । | क्रिया। एक यज्ञ । उ०—जलने लगा निरतर उनका अग्निहोत्र अग्निष्टोम-- संज्ञा पुं० [सं०] एक यज्ञ जो ज्योतिप्टोम नामक यज्ञ का शागर के तीर |--कामायनी, पृ० ३१ । रूपांतर है। | अग्निहोत्री - वि सङ्घा पुं० { सं० अग्निहोत्रिन्] अग्निहोत्र करने विशेष--इसका फल वसत है। इसके करने का अधिकार अग्नि | वाला । सबैरे सध्या अग्नि में वेदोक्न विधि में हवन करनेहोत्री ब्राह्मण को है। द्रव्य इमका सोम है । देवता इसके इद्र वाला। हरिन । और वायु श्रादि है और इसमें ऋत्विजो की संख्या १६ है। अग्निहोत्री---सद्या स्त्री० यज्ञप्रयुक्न गाय [को०] । यह यज्ञ पाँच दिन में समाप्त होता है। अग्नीध्र--सधा पुं० [सं०] १ यज्ञ में ऋf बकविशेष जिसका काम अग्निष्ठ --संज्ञा पुं० [सं०] १ रमोईघ । २ अँगीठ [को०]। अग्नि की रक्षा करना है । २ स्वायभुव मनु के पुत्र एक राजा अग्निप्वात्ता--सज्ञा पुं० [स०] १ पिनरो वा एक भेद । २ अग्नि, का नाम । ३ मनु के पन्न राजा प्रियव्रत का बेटा । 30-- विद्यत् अादि विद्या का जानना। प्रियव्रत के अग्नीध्र सू भयो |--सू-० ५।२।४ । दे० प्राग्नी प्र', अग्निसकाश---वि० [ स ० | अग्नितुल्य वर्ण या दीप्तिवाला [को॰] । अग्नीय -वि० [सं०] १. अनि की समीपवर्ती । २ अग्निसवधी । अग्निसदीपन--वि० [स०] ३० ‘अग्निदर्घक' (को०]। | अग्नि का कौ० ।। अग्निसंभव--वि० [स०] अग्नि द्वारा उत्पन्न [को॰] । अग्न्यगार-मल्ल पुं० [सं०] यज्ञाग्नि को रखने का स्थान । अग्निहोत्र अनिसभव--संज्ञा पुं० १ स्वर्ण । २ अरण्य कुसुम । ३' वतिकेय । की गृह [ को०] ४ भोज्य पदार्थ या भोजन का रस [को॰] । अग्न्यस्त्र---मल्ल पुं० [सं० अग्नि+अस्त्र] । मत्र द्वारा फेका जानेवाला अग्निसंस्कार--सज्ञा पुं० [म०] १, 1ग का व्यवहार' । अाग जलाना। स्त्र जिससे भाग निकले । अग्निघटित अस्त्र । आग्नेयास्त्र । २ तपाना। तप्त करना । ३ शुद्धि के लिये अग्नि स्पर्श कराने ' २ वह अस्त्र जो अ‘ग से चलाया जाय, जैसे बदक । का विधान 1४ मृतक के शव को भस्म करने के लिये उसपर अग्न्यागार--सी पुं० [सं०] दे० 'अग्न्यगार' [को० ।। अग्नि रखने की क्रिया। दहिकर्म । ५ श्राद्ध में पिंड रखने की अग्न्याधान--मेशा पुं० [4] १ अग्नि की विधानपूर्वक स्थापना । वेदी पर आग की चिनगारी घुमाने की रीति या क्रिया ।। . २ अग्निहोत्र । । अग्निसहिता--सज्ञा स्त्री० [सं०] अग्निवेश ऋषि द्वारा प्रणीन चिकित्सा । अग्न्यालय–सधा पुं० [सं०] दे० 'अग्न्यागार' [को॰] । । संवधी एक ग्रथ को०] । अग्न्याशय--सचा पुं० [स०] जठराग्नि का स्थान । पक्वाशय । अग्निसखा--सा पुं० [सं०] दे॰ 'अग्निहाय' ।। अग्न्याहित--सज्ञा पुं० [म०] अहिताग्नि! अग्निहोत्री [को॰] । अग्निसहाय--संज्ञा पुं० [सं०] १ जमली कवतर ( क्योकि उसके मास अग्न्युत्पात--सझा पुं० [सि ०] १ आकाशीय अग्नि द्वारा उपद्रव । से जठाराग्नि तीव्र होती हैं ) । २ वायु । हवा । ३ धुश्राँ विशेष--नक्षत्र, उल्का, वज्र या पत्थर, बिजली पौर तारा के रूप ०] । मे यह पांच प्रकार का होता है । अग्निसाक्षिक--वि० [सं०] १ जिसके साक्ष अग्नि हो । २ जिसकी २ अग्निकांड 1 आग लगना [को०] । प्रतिज्ञा शनि को साक्षी देकर की गई हो । जो अग्नि देवता अग्न्युत्सादी-वि० [सं०] जो अग्निहोत्र या यज्ञ की अग्नि को बुझ के सामने संपादित हो । जाने देता है [को०]। विशष--जो बात अग्नि के सामने उसको माझी मानकर कही जाती अग्न्यूद्धार--संहा पुं० [सं०] हारणिमंघन हैं रा अाग उत्पन्न करने के हैं वह वहूत पक्की रामझी जाती है और उसका पालन धर्म- कार्य [को०)।' विचार से प्रत्यत आवश्यक होता है। विवाह में चर कन्या की अग्न्यपस्थान--सपा q० [सं०] १. अग्नि की पूजा या प्रार्थना । २ जो प्रतिज्ञाएं होती है | अग्नि को साक्षी देकर की जाती है । अग्निपूजा में प्रयुक्त होनेवाले मत [को॰] । | |१