पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१६३

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अग्निमालि अग्निमर्थ १०२ अग्निमथ---मज्ञा पुं० [सं०] १. यज्ञ में अरणि का मथन करनेवाला ‘अग्निवर्च १--संज्ञा पुं० [ अग्निवर्चस् ] अग्नि वा तेज [को०)। याज्ञिक ब्राह्मण । २ अरणिमय न के अवसर पर प्रयक्त होने अग्निवर्च-वि० अग्नि की तरह दीप्त [को०] । वाले मुन्न । ३ अरणि का काट [को०] । अग्निवर्ण -सज्ञा पुं० [सं०] इक्ष्वाकुबशी य एक राजा जो रव के प्रपत्र अग्नुिमाद्य-सनी पु० [ स० अग्निमान्द्य ] मदाग्नि, जठराग्नि की तथा सुदर्शन के पुत्र थे । | कमी । पाचनशक्ति की कमी । भूख न लगने का रोग । । अग्निवर्ण-वि० अगि के रग का। अगरे के समान । रक्तवर्ण । लाल । अग्निमान -----सज्ञा पु० [सं०] विधिपूर्वक अग्नि रखनेवाला द्विज । अग्निवर्णा---पज्ञा स्त्री॰ [सं०] तीखी मदिरा । ते न मराव (को०)। अग्निहोत्री को । । अग्निवर्तक-- सज्ञा पुं॰ [सं०] पुराणों के अनुसार एक प्रकार का अग्निमान्–वि० अच्छी पचनशक्तिवाला [को०] । मे[को॰] । अग्निमारुति----संज्ञा पुं॰ [सं०] अगस्त्यमुनि का नाम । अग्निवर्धक--वि० [सं०] जठराग्नि को बढानेवाला। पाचन शक्ति को अग्निमित्र---राज्ञा पुं॰ [स०] शुग वशीय पुष्यमित्र का पुत्र । मलिव- । वढानेवाला (को०)। काग्निमित्र ने टक में इसकी कया है (को०] ।। अग्निवष---सज्ञा स्त्री० [सं०] १ युद्ध में अग्नेियःस्त्रो की वर्षा या अग्निमुख-मज्ञा पुं॰ [सं०] १ देवता । २. अग्निहोत्री (को०)। प्रयोग । २ 'भयकर धूप पुइना । ३ प्रैन । ४ ब्राह्मण। ५ चीते / पेड । ६ मिलावे का अग्निवल्लभ-सज्ञ। पुं० [सं०] १ साल का वृक्ष । साख का पेड़ ।' पेड । ७ वैद्यक में अजीर्ण नाशक चूर्ण का नाम जो । २ साल से निकली हुई गोद । राल । धूप । जवाखार, सज्जी, चित्रक, लवण आदि कई बेन्तुओं के मैले अग्निवासा--वि• [ स० अग्निवासस् ] अग्नि की तरह शुद्ध वा लेने से बनती हैं । ८ एक रस अवधि का नाम जिससे वातशूल | वस्त्रवाला [को०] । दूर होता है । ६ खटमल (को०) । अग्निवाह-सज्ञा पु० [सं०] १. बकरा । घाग। २ घूम्र [को॰] । अग्निमुखी-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ भल्लातक । भिलावाँ । २ गायत्री । अग्निवाह-वि० ज्वलनशील (पदार्थ) (को०)। को मर्न । ३ ब्राह्मण । ४ अग्नि प्रादि देवगण ! ५ पाक अग्निवाहन--संज्ञा पुं० [सं०] वर्करा । जग [को॰] । वाला [को॰] । अग्निविदु- मज्ञा पु० म०] चिनगारी । स्फुलिंग (को०] !, अनियत्र--सज्ञा पुं० [ स० अग्नियन्त्र] अग उगलनेवाला यन्न । । अग्निविद्---सी पुं० [सं० श्रग्निवित् ] अग्निहोत्री । निवि | बदूक [को०) ।। | अग्निबिद्-वि० अग्निहोत्र आदि की क्रिया का ज्ञाता [को०] । अग्नियान---सज्ञा पुं० [सं०] विमान । व्योमयान। वायुयान (को॰] । अनि || अग्निविद्या--सच्चा स्त्री० [सं०] प्रात काल और सायकल मों द्वारा अग्नियुग---सज्ञा पुं॰ [सं०] ज्योतिष मे पाँच पाँच वर्ष के जो बारह अग्नि की उपासना की विधि । अग्निहोत्र । युग माने गए हैं। उनमें से एक । इस युग के वर्षों के नाम यौ०----पंचाग्निविद्या = छादोग्य उपनिषद में सूर्य, बादल, पृन्त्री | क्रम से चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव श्रीर व्यय है। पुरुष और स्त्री सवधी विज्ञान को 'पचाग्निदिद्या' कहा है। अग्नियोजन--सज्ञा पुं॰ [ सं०] यज्ञये अग्नि प्रकट करने की । अग्निविश्वरूप-सज्ञा पुं० [सं०] वृहत्सहिता के अनुसार केतु ताराम कार्य को०] ।। का एक भेद । ये ज्वाला की माला से युक्त और सख्या में १२ अग्निरक्षण-सज्ञा पुं॰ [सं०] दे० 'अग्न्याधान' (को०] ।। कहे गए हैं। अग्निरजा--संज्ञा पुं० [सं०] १ वरवहूटी कीडा । २. स्वर्ण (को०] अग्निविसर्प----सुशा प० [सं०] शोध या फोड़े के कारण होनबाला अग्निरहस्य---सज्ञा पुं० [सं०] १ अकल्प की उपासना को बतानेवाली जलन या दर्द (फो०)। शास्त्र या ग्रंथ । २ शतपय ब्राह्मण को दशम काड (को॰] । अग्हिवीर्य-सज्ञा पृ० [ स०] १ अग्नितुल्य पराक्रम । ३ । अग्निरुहा–सज्ञा स्त्री० [म०] मसिरोहिणी नामक लता [को॰] । | कौ] । अनिरूप--वि० [पुं०] अग्नितुल्य तेजोमय स्वरूपवाला [को०]। अग्निरेता--संज्ञा पुं० [ स० अग्निरेतस ] अग्नि का रेतसे या तेज । अग्निवेश-----सज्ञा पू० [सं०] अायुर्वेद के प्राचार्य एक प्राचीन मूपि का | सोना [को०] । नाम जो अग्नि के पुत्र कहे जाते हैं। अग्निरोहिणी-सज्ञा स्त्री० [सं०] वैद्यक मतानुसार एक रोग जिसमें अग्निव्रत-सज्ञा पुं० [सं०] वेद की एक ऋचा का नाम । अग्नि के समान झलकते हुए फफोले पहते हैं और रोगी को अग्निशरण---संज्ञा पु० [सं०] अग्निशाला [को॰] । दाह और ज्वर होता है। अग्निशर्मा-वि० [सं०] वहूत शीघ्र उत्तेजित होनेवाला [को॰] । अग्निलग---सज्ञा पुं० [स० अग्निलिङ्ग अग की लपट की रगत । अग्निशर्मा.---सज्ञा पु० एक ऋषि [को०]। और झुकाव देखकर शुभाशुभ फल वैत लाने की विद्या । । अग्निलोक-संज्ञा पुं० [सं०] अग्नि द्वारा अधिष्ठित मैरु पर्वत के शृग । अग्निशाल---सज्ञा पुं० [१०] अग्निशाला (क) ०]। के नीचे का लोक को०] । अग्निशाला--संज्ञा स्त्री० [सं०] वह घर जिसमें अग्निहोत्र या हवन अग्निवश-सज्ञा पुं० [सं०] अग्निकुल। करने की अग्नि स्थापित हो । उ--देखते थे अग्निशाला में | अनिवधू-सज्ञा स्त्री० [सं०] अग्नि की स्त्री स्त्रीह [को॰] । कुतूहलयुक्त --कामायनी, पृ० ८३ । ।