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अग्निदाह १०६ । अग्निमणि -



अग्निदाह---संझा पुं० [सं०] १ अगि में जलाने की कार्य । भम्म २ रनै वशिष्ठ जी को पहले पहल सुनाया था। इसने इलयो की का कार्य । जलाना । भस्मीकर 1 ३ शवदाह । मुद जलान।। मस्या कोई १४,०००, कोई १५,००० अौर कई १६,००० अग्निदिव्य- सझा पुं० [ मुं०] अग्नि के प्रयोग द्वारा सत्यास-वे का मानते हैं। इसमें यद्यपि शिव का महात्म्यवरान प्रधान है | निर्णय । अग्निपरीक्षा [को० ]। पर कर्मकाड, राजनाति, धर्मशास्त्र, आयर्वेद, अयार, घ्द अग्निदीपक--वि० [सं०] जठराग्नि को उत्तेजित करनेवाला। पाचन शास्त्र, व्याकरण, तन्न अदि अनः फ्टवर विपद भी इसमे शक्ति बढानेवाला । नमलित हैं । अग्निदीपन-- सझा पुं० [सं०] १ अग्निवर्धन | जेठदाग्नि की वृद्धि) अग्निपूजक-सज्ञा पुं० [स०] अग्नि की पूजा करने वाला व्यक्ति, जाति पाचनशक्ति की वढतः । २ अग्निवर्धक श्रापध । पाचनशक्ति या धर्म । को बढानेवाली दवा । वह दवा जिसके खाने से भूख लगे । अग्निप्रणयन--संज्ञा पुं० [स०] दे॰ 'अग्निनयन' (क०11 अग्निदीप्ता---पच्चा स्री० [सं०] महाज्योतिष्मती । अग्निगर्भा (को०)। अग्निप्रतिष्ठा---संज्ञा स्त्री० [सं०] यज्ञ, विवाहादि धामिक अवमरी अग्निदूत---मंझा पुं० [सं०] १ यज्ञ मे अवाहित देवगण। २ यज्ञकार्य। पर कुड या वेदी पर अग्नि में रखने की क्रिया [३।० } } यजन [को॰] । अग्निप्रवेश---सज्ञा पुं० [सं०] १ शरीर त्याग की इच्छा से अग्नि अग्निदुषित--वि० [सं०] दाध । जला हुआ [को०] । में प्रवेश करना। २ किसी स्त्री का पति के शव पदि के अग्निदेव--सा पुं० [सं०] १ देवरूप में अग्नि को प्रधान माननेवाले साय चिता में प्रवेश करना [को॰] । अग्निपूजक । २ अग्नि [को०] । अग्निप्रस्तर--संज्ञा पुं० [सं०] अग्नि उत्पन्न करनेवाला पत्थर । वह अग्निदेवा--सच्चा स्त्री० [सं०] कृतिका नक्षत्र [को०] । | पत्थर जिससे प्राग निकले । चकमक पत्थर। अग्निद्वार--सम्रा पुं० [सं०] पृवंदक्षिण कोण में स्थित मकान का अग्निवाण---सज्ञाप० [म०1 एक प्रकार का प्रस्त्र । वह वाण जिसमें दरवाजा [को॰] । से अग्नि की वाला प्रकट हो। वह तर जिसमें ग्राम पी लपट अग्निधान--सज्ञा पुं० [सं०] अग्नि रखने का पवित्र स्थान [को॰] । निकले। भस्म करनेवाला वाण । , अग्निनक्षत्र--संज्ञा पुं० [सं०] कृत्तिका नाम का तृतीय नक्षत्र [को॰] । । विशेप--ऐसा कहा कहा जाता है यह बणि मन द्वारा चलाया अग्निनयन--सज्ञा पुं० [सं०] इवन की अग्नि को विधिपूर्वक सम्कार जाना था और इससे अग्नि की वप होने लगती थी । करना [को०] । अग्निवाब---संज्ञा पुं० [सं० अग्नि + वायु, प्रा० बाव] १ घोडा और अग्निनिर्यास--संज्ञा पुं॰ [सं०] अग्निजार वृक्ष [को०] । चौपायो का एक रोग जिसमें उनके शरीर पर छोटे अबिले अग्निने-सज्ञा पुं॰ [सं०] देवगण [को॰] । निकलते हैं और फूट फूटकर फैलते हैं। यह रोग अधिकतर | अग्निपक्व--वि० [सं०] अग्नि पर पकाया हुया [को॰] । घोडो को ही होता है। २ मनुष्य का एक चर्मरजिममै अग्निपरिक्रिया--सज्ञा स्त्री॰ [स०] अग्नि में हवन और उसकी सुरक्षा शारीर पर बडे बडे लाल चकते या ददोरे निकल आते हैं। करना [को॰] । पित्ती । जुडपित्ती । ददरा । ३ अग्नि की ज्वाला या लपट । अग्निपरिग्रह-सज्ञा पुं० [म० ] अग्निहोत्र लेना [को॰] । उ०--पुडीर चद जनु अग्निवाब |--पृ० रा०, ८१४ । अग्निपरिधान--संज्ञा पुं॰ [सं०] यज्ञ की अग्नि के परदे से ग्रावृत्त अग्निवाहु-सज्ञ पू० [सं०] १ धूम्र । धुम्राँ। २ प्रयम मनु के करना या घेरना [को०] । पुत्र [को॰] । अग्निपरीक्षा--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ जलती हुई अाग द्वारा परीक्षा यी मानवीज-सज्ञा पुं० [सं०] १ सोना । जौच 1 जलती हुई आग पर चलाकर अथवा जनता हुआ पानी, विशेष--मनु श्रादि प्राचीन ग्रयं मे सोने की उत्पत्ति अग्नि के सयोग से लिखी हैं । तेल या लोहा फुलाकर विसी व्यक्ति के दपी या निर्दोष होने की जाँच। २. अग्नि का बीजाक्षर [को॰] । विशेप-प्राचीन काल में जव मिस व्यक्ति पर किसी अपराध को अग्निम--सज्ञी पु० सि०] १. अग्निसदघा नक्षत्र। छत्तिका । २. संदेह होता था तब यह देखने के लिये कि वह यथार्थ में दोषी सौन। स्वर्ण (को॰] । है या नहीं, लोग उसे आग पर चलने को कहते थे, पायवा अग्निभ-वि० अग्नि की तरह दीप्त [को॰] । उसके ऊपर जलती हुया तेल या जल डालते थे । उनी अग्निभू-सज्ञा पुं० [स० कार्तिकेय ।। विश्वास था कि यदि वह निरपराध होगा तो उसे कुछ च न अग्निभूति---मज्ञा पुं० [सं०] अतिम जैन तीर्थयार के शिष्य [को॰] । अावेगी। ' अग्निमय-सज्ञा पुं॰ [सं० अग्निमय १ अरणी वृक्ष जिस लडी २ भयप्रदायक एव कठिन परीक्षा । ३ सोने, चाँदी आदि धातुग्री व परस्पर घिसने से आग बहुत जल्द निलती हैं। २ अरणी की अग मे तपा कर परख । नामक यज्ञ जिसमें यज्ञ के लिये भाग निकल जाती है। अग्निपर्वत--सज्ञा पुं॰ [सं०] ज्वालामुखी पर्वत [को॰] । अग्निमधन--संज्ञा पुं॰ [सं० अग्निमन्धन] दे० 'अग्निमथ' (०] । अग्निपुराण -संज्ञा पुं॰ [सं०] १८ पुराणों में से एक है। अग्निमणि---संज्ञा पु सि०] १ सूर्यकांत मणि। एक बहुमूल्य पत्यर। विशेष—इसका नाम अग्निपुराण इस कारण है कि इसे अग्नि ने २ सूर्यमुखी शीगा । प्राप्त शा। ||* |