पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१६१

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n | विचात निह [स०] १ अग्निकीट १०० अग्निदान अग्निकोट--सच्चा पुं० [सं०] समदर नाम का कीडा जिसका निवास अग्निचितू--सा पुं० [सं०] अग्निहोत्री । अग्नि में माना जाता है। | अग्निचूड---सज्ञा पुं॰ [सं०] अग्नि के समान लाल शिखावा ना पक्षी । अग्निकुड-- सच्चा-धु- [ सं० अग्निकुण्ड] अग्निहोत्र के लिये निर्मित कुक्कुट । अरुणचूड [को॰] । | कुड [को०]।। अग्निज-वि० [सं०] १ अनि से उत्पन्न । २. अग्नि को उत्पन्न | करनेवाला। ३ अग्निसदीपक । पाचक ।। अग्निकुक्कुट--संज्ञा पुं० [सं०] जलता हुआ तृण या पयाल का पूला । लूकारी । लुक । | अग्निज-सज्ञा पुं० १ अग्निजर वृक्ष । समुद्रफन को पेड। २ अग्निकुमार--सच्ची पुं० [सं०] १ कार्तिकेय । पडानन। २ अाय वंद। कार्तिकेय का नाम (को०) ४, सोना । स्वर्ण (को०)। के अनुसार एक रस जो विभिन्न अनुपानी के साथ देने से अग्निजन्मा--संज्ञा पुं०, वि० [सं०] ६० + अग्निज' (को०] । अरुचि, मदाग्नि, श्वास, कास, कफ, प्रमेह आदि रोगों को दूर अग्निजति--सझा पुं०, वि० [म० दे० 'अग्निज़' (को०] । करता है। अग्निजार-सफा पुं०, वि० [स] समुद्र फल का पेडे । अग्निकुल-सज्ञा पुं० [स०] क्षत्रियो का एक कुल या वशविशेप। अग्निजाल--सझा पुं० [स०] ३० ‘अग्निज्वाल' [को॰] । विशेष--ऐसी कथा है कि ऋषियो के तप में जब दैत्य विघ्न अग्निजित्-सज्ञा पुं० [म०] ईश्वर [को॰] । डालने लगे तब उन्होंने वशिष्ठ की अध्यक्षता में शाबू पर्वत । अग्निजिह्वसज्ञा पुं॰ [सं०] १ देवता । अमर । २ विष्णु' [को०]। पर एक यज्ञ किया। उस यज्ञकुछ से एक एक करके चार पुरुप उत्पन्न हुए जिनसे चार वश चले अर्थात् प्रमार, परिहार, अग्निजि ह्व--वि० अग्नि के समान जीभवाला [को॰] । घालुक्य या सोलकी अोर चौहान । इन चार क्षत्रियों का कुल अग्निजि ह्वा--सज्ञा स्त्री॰ [स] १ आग की लपट । २. अग्नि देवता अग्निकुल कहलाता है। विशेष--मुड्कोपनपद् में इनके नाम ये दिए हैं--कात्री, कराली, अग्निकेतु--सी पुं० [स०] १ शिव का एक नाम । ३ रावण की सेना का एक राक्षस । ३ घूम्र । घुश्री [को०)। मनोजवा, लोहिता, घमवर्णा, स्फलिगिनी और विश्वरूपी । अग्निकोण--सच्चा पुं० [सं०] पूर्व और दक्षिण का कोना । वृहत्सहित मे अतिम दो मामा के स्थान में उग्रा और प्रदीप्ती ३ कलियारी विप । लागली । नाम दिए हैं। अग्निक्रिया-सच्चा स्त्री० [सं०] १ शव को अग्नि में दाह । मुर्दा । जलाना । २ अग्निहोत्र या अग्निकर्म [को०] । अग्निजीवी---सच्ची पुं० [सं०] अाग के सहारे काम करनेवाले अग्निक्रीडा---सच्च स्त्री० [स०] आतशबाजी ।। जैसे -नुहार, सुनार अादि । , अग्निज्वाल-सच्ची पुं० [सं०] शिब 1 कर [को०] । अग्निगर्भ'--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ सूर्यकांत मणि । २. सूर्यमुखी शीशा। तशी शशा। ३. शमी वृक्ष । ४. अग्निजा' या गजपिप्पली अग्निज्वाला--सज्ञी वी० [सं०] १ आग की लपट । उ० --इहा का पौधा [को०]।। अग्निज्वाला सी मागे जलती है उल्लास भरी ।—कामायनी, अग्निगर्भ--वि० जिसके भीतर अग्नि हो । जो अग्नि उत्पन्न करे, पृ० १८१ । २ धव को पेड जिसमें लाल फूल लगते हैं । ३. * जैसे अग्निगर्भ पर्वत् । जलपिप्पली का पेडे ।। अग्निगर्भ पर्वत---सज्ञा पुं० [सं०] ज्वालामुखी पहाड । अग्निझाल--संज्ञा पुं० [सं० अग्नि + ज्यालु प्रा० झाल] जलपिप्पली ।। अग्निगर्भा--ना बी० [सं०] १ शमी वृक्ष । २. पृथिवी । धरा । का पेड । ३ महाज्योतिष्मती नाम की लता [को०]।। अग्नितु डावटी--सज्ञा स्त्री० [स० अग्निहुण्डावटी] बैद्यक के अनुसार अग्निगृह--सा पुं० [स०] वह गृह जहाँ हृदन की अग्नि रखी रहती । अजीर्ण दूर करनेवाली गोली। हो [को० ]।। अग्निघृत--संज्ञा पुं० [सं०] अग्नि उद्दीपन करने के लिये निर्मित एक । अग्नितेजा--वि० [सं०] अन्तितुल्य तेजवाना [को०] । | प्रकार का घृत [को॰] । अग्नित्रय--सज्ञा पुं० [सं०] विधिपूर्वक स्थापित गार्हपत्य, भावनीय अग्निचक्र--सच्ची पुं० [सं०] १ योग में शरीर के भीतर माने हए छ अर' दक्षिण नामक अग्नि [को०1। | चो में से एक। अग्निनेता--सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'अग्नित्रय' [को॰] । विशेष--इसका स्थान भौहों का मध्य, रग बिजली का सा और अग्निदेड---सज्ञा पुं॰ [स० अनिदण्ड] आग मे जलाने का दद्ध । देवता परमात्मा माने गए हैं। इस चक्र में जिस कमल की अग्निद—सज्ञा पुं० [सं०] आग लगानेवाला । भावना की गई है उसके दलो ( पखुडियो ) की संख्या दो अग्निदग्ध-वि० [सं०] चिताग्नि में सविधि जलाया हुआ.[को०]। और उनके अक्षर 'ह' और 'क्ष' है। अग्निदग्ध--सज्ञा पुं० पितृगणो को एक वर्ग [को॰] । ३. अग्नि का चक्र या गोला । उ०—विमल व्योम में देव दिवाकर अग्निदमनी--मज्ञा ० [सं०] गनियारी क्षेप । एक प्रकार का सुप अग्निचक्र से फिरते हैं।- --कानन०, पृ० २४ ।। | जिसे दमनी कहते है। अग्निचय--सच्चा पुं० [सं०] दे॰ 'अग्निचयन' [को०]। अग्निदाता--संज्ञा पुं० [सं०] चिता पर शव को अग्नि देनेवाला या अग्निचयन--संज्ञा पुं० [सं०] १. यशार्थ अग्नि को रखना। अग्न्या- दाइकृत्य करनेवाला व्यक्ति [को०]। ध्यान। २. अग्न्याध्यान कार्य में प्रयुक्त होनेवाले मन [को०]। अग्निदान--संज्ञा पुं० [स०] चिता में अग्नि लगाने का कार्य [को०)। 1। ।