पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१५७

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अगियानी ६६ अगुग्न ना ।। अगियाना-क्रि० अ० [हिं० अगिया से नाम०] जल उठना । गरमानी। विशेष---गो गत्ते पान के प्रकार के गर उगवे फुध बरे हुई। जलने या दाह से युक्त होना, जैसे--चलते चुनते ठमका पैर | है 137न केय की तरह का है। प्रतिर । युः पिटी फन अगिया गया (शब्द०)। नगता है जिम है। गत 1 छोटे छंटे दाने ग्ने । अगिया बैताल-- स’ पुं० [ स० अग्नि हि० अगिया + सं० चैताल] १ अगीठा' (५)---गधा पुं० | १० ऋत्र --प्ट | ग्रामें ग माग विक्रमादित्य के दो वैतालों में से एक। २ एक घल्पित बैदाल अगिटि-- मी पुं० [हिं० प ग = ऋगे प्रया १० अप्र, ५० प्रति+ जिसके सवध में अनेक प्रकार की कथाएँ प्रचलित है । कहते हैं हि० इz] अ । भाप । अगाडा । प्रा । न-- यह वही दुप्ट था और बडे आश्चर्यजनक कृत्य करता था ३ मुद्दे मगन मून न पत्र है मैन । मन अपन नीट है । से लुके या लपट निकाल्नेवाला मृत । उल्कामु प्रेत। ४ दलदल बाटि मिधा । ३१ गए । २ नमाय निहादिति या तराई मे इधर उधर घृपते हुए फोमफरस व अश जो दूर से ।--निद्रा० ० भ० १ १० ९८ । जनते हुए लुक के समान जान पहने हैं। ये भी पग वरि- अगीठी:-.-मी मी० ३० श्रृंगा ' । १०-~-मन , पाठी स्तनों में भी अँधेरी रात में दिखाई देते है । ५ वह निमा तार विन गईर ।। |--ग:०, पृ० १२ । स्वभाव बहुन क्रोध प्रो र चिडचिडा हो । क्रोधी व्यक्ति । अगीत'.--१० [1० अ.] प्रागै । अभी । ४०--प्राई अगियार}--वि० [हिं० भाग +इयार (प्रत्य०) ] ( लकडी, कोयना, | अगीन पर्छ । 'टा गाई नर के पूछन । कडा खादि ) जिस की प्राग बहुत देर तर ठहरे या तेज हो । | -- ९, १० १ ।। अगियार--मज्ञा पुं० दे० 'अभियरी' । अगीत--वि० [म० अ० । गत ] गीत । न गया दृप्रा । ३०अगियर 1ि-सल्ला स्त्री० [हिं० ग+इयारो (प्रप०)] वह पदार्य च। एक अट में। प्रfr। सुनि पी ६ वप्नि में इन |-- वस्तु जो अग्नि में वायु को सुगति करने के लिये डाली जाय । परन १० २ ।। धूप देने की वस्तु।। अगीतपट्टीत--त्रि दि० ( ० अप्रत्र पर जात् ] मार्ग पर पीले । अगियासनं--संज्ञा पुं० [हि० अगिया + सन] १. एक प्रकार का मन अर। प्रने पसे । --हट व मिति त र की जाति का पौधा । २ एक कीटा जिनके छु जाने में प्रार मिति २t या माँ पर है । यः इन। बिनती तुम में जलन होती है । ३ एव चर्म रोग जिममे झाते हुए फफोले । मोहरि अ: प्रगत ही। 7 घेर। |-- ९, १० ७ । निकलते है । अगीतपछीत.- पूँe आगे १ भाग पड़ी ना भए । मुगअगिर--सधा पुं० [ म०] १ सूर्य । - अग्नि। ३ स्वर्ग । ४ एक था। पिव ।। राक्षस [को॰] । अगीहूq--वि० [नः पगृह गहन • प्रह। ३०-प्रम अगिरी--संज्ञा स्त्री॰ [ स० अग्र= धागे ] मकान के प्रागे का भाग ।। नीयत नी ! घर वरि हात ग३ -२० , द्वार। उ०--तुलसी सेब जाति चवि छाए । बरसाने मनमोहन | ६१५१०७१ ।। प्राए । चारि टुन्नारे उन्नत भरे। करिव र वह झूमत मतवारे । अगुठित--वि०-- २० + गठित = वित्त ] घनायत्त । पुरा हुप्रा । इमि दैखत अगिरी छवि छाए । अत पुर महं माधव पाए - उ०—भान पी नार। उसी सः ग्राऊ ठिा, भारत की गोपाल ० (शब्द०)। मानयना नव ग्रा।। ३ मटिन -- पर, पृ० १.६ । अगिरीव स्---वि० [ में०] १ स्वर्ग में निवास करनेवाला (देवादि) । अगु--'--सैन्ना ५० { ग० ] १ राहु ग्रह । ३. प्रत त प्रभाव । २ शोर गुल करने पर भी न रुकनेवाला [को॰] । अधार (को०) ।। अगिला+-- वि० [हिं०] दे॰ 'गना'। अगु?--वि० १ जिते राम गम न हो। मोहन । २ गरीब ।३. अगिलाई--सहा स्त्री॰ [ स० अग्नि + हि० लाय= लपट ] अग्नि को , दुष्ट । ६६भश फा०] । ज्वाला । अाग की लपट । उ०—जारति अग अन" की अगुशा-- रैमा पु० [२० प्र +६० ३ ( प्रन्य० )]{ कि० अगुप्रचनि जोन्ह नहीं सु नई अगिलाई ।--घनानंद पृ० ६४) अनि।। सच्चा अगुअाई, गुग्रानी ११. अग• । मागे चलनेअगिवण --वि० [सं० अग्र + वान्। प्रधान । मुख्य । अगुप्रा उ० --- चना व्यदिन । असणी । २ भूपिया। प्रधान । नायकः । तेहि लेबोदर बीनहूँ । चउसठ जोगिनि का अनिवाँण -वी० सरदार । नेता । पथप्रदर। मार्ग दानेपान।। रहनमा । रासो, पृ० ३।। उ०--ततख ने बोला सुप्रा नपा । अगुफा गाई पथ जै। देश । अगिवान--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अगवान -२ । उ०---प्रदर सयुत - जाय मी , पृ० ५७ । ४. विवाह के बावर्चत 'चतान । | बोल मुक्केि मत्नी अगिवान ।-पृ० १०, १२६७ । वाला। विवाद टी करनैदान।। घटक । फोती। ५. अगिहर+--सज्ञा स्त्री० [सं० अग्नि + गह, प्रा० अग्नि +हुर] अनि का अगा। आने का माग । अगाई-सज्ञा स्त्री० [सं० अग्र, प्रा० अ + प्राई (प्रत्य॰)] १• निवास । चिता । उ० --विनति को महिलालनिरे मोहि अग्रणी होने की क्रिया । अग्रसरतः । ३ प्रधानता। सरदारी । देहे अगिर साजि ।-विद्यापति, पृ० १५८।। ३ मार्ग प्रदर्शन । रहनुमाई । उ०--क्दैि उ निपादनाथ प्रगअगिहाना+--सझा पु० [सं० अिग्निधान, अग्न्याधान ] वह स्थान जहाँ आई । मातु पालय चन --मानम, २॥२१२। अाग जलाई जाती हो । अाग रखने का स्थान। अगुञाना'---क्रि० स० [हि० 'अगुमा' से नाम० ] [ सज्ञा अगुवानी ] ऋगीठा-सज्ञा पुं॰ [देश०] एक प्रकार का पौधा मा करना । अगा चनाना । सूरदार नियत करना ।