पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१५५

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अँगड़ा अंगह रखकर धृ खीचते हैं । निगाली । २ वैन सोचने की ढेकली अगान --सच्चा ९० ज्ञान का अभाव । अनाने । । की छोर पर लगी हुई पतली लकडी । ३ किमी बस, के अागे अगामे--क्रि० वि० [सं० अग्रिम, प्रा० ऋग्गम्मि ] अागे । का भाग । अगाडी । अगार--सच्चा पुं० [ ० अागार ! १ निवासस्थान । धाम । गृह । अगाड़ा'--सझा पुं० [हिं० अगाई, तुल० कु मा गाडा = खै। ] ३० --दुख अावत कछु अटक न मानन, भूनी देखि प्रगरि । क र! तरी । --सूर०, १०।३३८६) २ ढेर । 1णि । ममूह । अटाला । अगाडा -सज्ञा पुं० [ अग्र - हि० प्राडा (प्रत्य॰) । १ यात्री का उ०—-मीजि मीजि हाय धुने माय दसमाय तिय, तुलमी तिलो वह सामान जो पहले से अ.] के पड़ाव पर भेज दिया जाता न भयौ वाहिर अगार का ---1नी २०, पृ० १७३ ।। हैं। पेशखेमा । २ अागे का भाग या हिस्स।। अगार--सपा पुं० [सं० श्रग्र ] प्रागे का म्यान । अगला हिम्सा । अगाडा--वि० आगे का । आगेवाला ।। अग्रभाग। ३०--अरु जो तुमरे मन में यह बात तो काहे को अगाडी-क्रि० वि० [ मं० अग्न प्रा० अग्ग + हिं० प्राड़ी (प्रत्य॰)] मोहि अगर दयी |--सृजान०, पृ० ७१ । । १ अगे, जैसे-इम घर के अगाडी एक चौराहा मिलेगा अगार–क्रि० वि० अागे । अगाडी। पहले। प्रथम । उ०.-प्रीतम को (शब्द॰) । २ भविष्य म, जैसे---प्रभा से इसका ध्यान रखो अरु प्रानन को है। देखना है यब होत मागे । कैध चलेंगी नही तो अगाडी मुशरिद पडेगी (ब्द०)। ३ पूर्व । पहले, अगर सखी यहि देह से प्रान कि गेहू ते प्यारो |-कोई कवि जैसे-ग्रगाडी के लोग वडे सीधे सादे होते थे (शब्द॰) । ४ ( शब्द॰) । सामने । समक्ष, जैसे-उनके अगाडी यह वात न कहना स न अगार'–वि० [स० अग्रच? 1 अगुअा। नेता। मुखिया । ३०-३

  • (शब्द ०)।

सि-सिनवार दे अवारिया अगार और खुटैग्ना जुझार वीर अगाड़ी --सक्षा पुं० १ किसी वस्तु के आगे का भाग । २ अँगरखे यो चाहर अपार ।--सुजान०, १० ६७ ।। कुरते के सामने का भाग । ३ घोड़े के गाव में बधी हुई दो अगारदाही--सच्चा पुं० [सं० श्रृंगारदाहिन् ] मकान को जलानेवाला रस्सिय जो इधर उधर दो बूंटो से बंधी रहती हैं । ४. सेना व्यक्ति [को॰] । का पहना, घावो । हन; जैसे--फी न वी अगाडी अधिी की अ ही aff ही अगारि-वि० [ स० अ = नहीं + अ० गार = गड्ढ़ा ] अगभीर । कम वि० [सं० ॐ = नहा + अ गार = गड्ढ़ा ] अर पिछाडी (शब्द॰) । | गहरा । उ०--दिन दिन सोर होई अगारि, अवहु नई यौ०--अगाडी पिछाडी आगे और पीछे का भाग । वरिपइ महीं भरि वारि।--विद्यापति, पृ० ५२६ ।। अगाइ-क्रि० वि० [ स० अग्र प्रा० अग्ग अग + हिं० द्धि (प्रत्य॰)] 17 अगारी-क्रि० वि० [हिं० दे० 'अगा।। उ०-- -देखो दीठि, उठाय " " दे० 'अगाडी' । कुंवर पुन भार अगारी । विति पोटति जाति नदी की मोर अगाता-वि० [सं०] अच्छा न गानेवाला (को०] । सिधा ।--बुद्ध च०, पृ० ७० ।। अगात्मजा--सच्चा स्त्री० [सं०] शैलपुत्री । पार्वती (को०] ।। अगारी--वि० [स० गारिन् ] मकान मालिक । मकानवाला [को॰] । अगाद--वि० दे० 'प्रगघि'। उ०—प्रावसनि वत अगदि भय ते अंगारू--त्रि ० वि० [हिं० श्रृंगार ] अागे । पहले प्रथम । उ०-ौ | निवलह द्रिग छिनके कर।--पृ० ० ६१५१२६५ । लो' चक्रधारी चक्र चाहत चलाइबो को, तो, लो' ग्राहे ग्रीवा पे अगाध'---वि० [सं०] १ अयाह । वहुत गहरा। अतल स्पर्श । ३०० - अगारू चक्र चलि गो -गग १० पृ० १ । जलधि अगाघ मौलि वह फेनू । सतत घरनि धरत सिर रेन । अगाव--सेवा पु० [ स ० अग्न] कख के उपर का पतला और नीरस मानस, १।१६७२. अपार । असीम् । अत्यत । वहुत । अधिक भाग जिसमे गई वहुत पास पास हती हैं। अगौरा। अघोरी। उ ---देखि मिटै अपराध अगाध निमज्जत सधु समाज भलो रे। प्रेगोरी । --तुलसी (शब्द०)। ३ जिसका कोई पार न पा सके। समझ अगास ---संज्ञा पुं० [२० अग्न; प्रा० अग्ग+ से (प्रत्य॰)] में न आने योग्य | दुध । उ०—–अगुन सगुन दुई ब्रह्म सरूपा । द्वार के अागे का चबूतरा।। अकथ अगाध अनादि अरूप --मानस, १ २३ । अगसि -सा पुं० [ स० अाकाश ] आकाश । उ०—ह सँग सविरे अगाध - सझा पुं० १ छेद । २ गड्ढा । ३. स्वाहाकार की पाँच के जैही। का यह सूर अजिर अपनी तनु तजि अगास पिय अग्नियों में से एक का नाम (को०]। भवन समैहौं। का यह व्रज वापी क्रीडा जल भजि नंदनद सवै अगाधजल-पह। पुं० [सं०] गहरा तालाब या झील । ह्रद [को॰] । सुख लेह ।--सूर० (शब्द॰) । अगाधरुधिर--सद्मा पु० [सं०] रुधिर का आधिक्य । अत्यधिक । अगासी+--सच्चा स्त्री० [हिं०] दे० 'अकासी' । उ०—-दीड वदर वने | रक्त को०] । मुछदर कूदै चढे अगासी ।-- भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ३३३ । अगाधसत्व-वि० [सं०] अत्यधिक पाक्तिसपन्न (को०] । अगाह --वि० [ स० अगाध, प्रा० प्रगाह ] १. अथाह । बहुत अगाधा-वि० स्त्री० [सं०] अत्यत । बहुत । अधिकं । ०-लाले गुलाल । गहरा । उ०---अब लई गए देइ अोहि सूरी । तेहि सौ अगाह |घलाघल में दृ ठाकर दै गई रूप अगाधा ।-पद्माकर (शब्द०) विया तुम्ह पूरी 1--पद्मावत, पृ० २९२ । २ अत्यत । बहुत । अगावित्व--सा पं० [५०] गांभीर्यं । गहराई [को०] उ०--जो जो सूने धुने सिर राजहि प्रीति अगाह --जायसी अगीन't--वि० [सं० प्रज्ञान] अनजान । अशान । नाममझ । उ० ५ ( शब्द०)। ३ गभीर । वितित । उदास । ३०----जयहि सुरुज बालक अगाने हुठी भीर की न माने वात, विना दिए मातु हाथ कह लागा राहू । तवहि कमल मन भयो अगाहू ---जायसी भोजन न पाइए 1---हनुमन्नाटक (शब्द॰) । (घाब्द॰) ।