पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१५०

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अगम - अगर मानस, ११३८। ७ विशाल । वडा। उ०—कैसे बचे अगम त में अगमासी(---संश्वा मी० [हिं०] दे० 'श्रमवासी' । तर मुव चूमन यह कहि पछिमावति ।-सूर०, १०।३६० । अगमी-वि० [हिं० 1 ३० गमी' । उ०-ना मै पडित पट्टि गुणि ८. जिसे वश में न किया जा सके । सुदृढ । उ०-.-लका वमत जानी ना कुछ ज्ञान विचारा । ना मै अगमी जातिग जान ना दैत्य अरु दानव उनके अगम मरीर !-- सूर०, ६८६ । मुझ प सिंगारा -दादू०, पृ० ५६६ । अगम --सच्चा पुं० [सं० ग्राम ] १ शास्त्र । ' प्रागम । उ०-- अगमैया+--वि• { सं० अगम्य ] बुद्धि से परे । न जानने योग्य । तुलमी महेम को प्रभाव भाव ही सुगम, निगम अगम को अज्ञेय । दुर्बोध । ज्ञ०--ब्रज मै को उज्य यह मैयो । सग जानिदो गहनु हैं ।--तुलमी ग्र०, पृ० २३७ ।। सजा सच कहत परसपर इनके गुन अगमैया -सूर०. यौ०--'अगम निगम = गम निगम । उ०- -चितयो चित्त दुज १०१८२८ । | राज तव अगम निगम करि कळूटयः ।--पृ० रा०, ३।२०। अगम्य--वि० [सं०] १ न जाने योग्य । २ जहाँ कोई जा न सके । २ श्रामम् । अवाई । उ०--देखी माई स्याम सुरछि अव प्रावै । पहुँच के बाहर। अवघट । गहन । ३ विकट । कठिन । मुशदादुर मोर कोकिला बोल पावम अगम जनावै ।--सूर०, किन्न । ४ अपार। बहुत । अत्यत । ५ जिसमे बुद्धि में १०॥३३१२ । पहुंचे । बुद्धि के बाहर । अमेय । दुवघ। उ०—गम्य अगम्य अगम--सज्ञा पु० [सं०] १ वृक्ष । २. पर्वत [को०] । अश दो रई । तीन देव वहाँ लगि कई !--वबीर साँ०, अगम--वि० १, न चलनेवाला 1 चलने के अयोग्य । अगता । २. पृ० ६ ०६ । ६ अथाह । वहुत गहरा । ७ जिससे विपय भोग * अजगम 1 स्थावर (को॰) । अनुचित हो कि० ।। अगमति ॥ --वि० [सं० श्रम+अति ] वहून विशाल । अत्यत अगम्यगा--संज्ञा स्त्री० [सं० 1 वह स्त्री जिसने वर्जित या अपात्र पुरुष अगम । उ०—-मोहन, मुर्छन, चमकरन पट अगमति देह से सप्रयोग किया हो | को० ]। | वढाउँ ।---सूर०, १०.४६ । अगम्यरूप-वि० [सं॰] जिसकी स्थिति या रूप वोध से परे अगमन'--मदा पुं० [सं०] गति या गमन का अभाव । न चलना [को॰] । हो [को॰] । अगमन-क्रि० वि० [सं० अग्रवान् ] १ अागे । पहले ! प्रयम । अगम्या-वि० स्त्री० [सं०] न गमन करने योग्य । मैथुन के अयोग्य । उ०—-(क) नाम न जाने गाँव का भला मारग जाय । काल्ह अगम्या ---सन्ना श्री० १ न गमन करने योग्य स्त्री । वह स्त्र जिसके साथ गईगा कटवा अगमन केस न कराये ।--*वीर सा०, पृ० सभोग करना निषिद्ध है, जैसे---गुरुपत्नी, राजपत्नी, सीतेली ७३ । (ख) तब ग्रगमन वै गोश मिला । तुइ राजा ले चल माँ, माँ, कन्या, पतोहू, साम, गर्भवती स्त्री, वहिन, सती, सगे वादिलो ।-जायसी (शब्द०) । ( ग ) पग पग मग अंगमन भाई की स्त्री, भाजी, भतीजी, चेली, शिष्य की स्त्री, भाजे परत चरन अरुनदुनि झलि । ठीर ठर लखियत उठे दुपहन्यिा की स्त्री, भतीजे की स्त्री, इत्यादि। २. अत्यज स्त्री । अत्यजा खें फूलि ।--विहारी र०, दो० ४६० । २ आगे से । पहले से । (को॰) । उ०—पिय आगम् ते अगमनहि करि वैठी तिय मान 1-पद्मा- अगम्यागमन-सच्चा पुं० [सं०] अगम्या स्त्री से सुवास । उस स्त्री कर (शब्द) । के मयि मैथुन जिसके साथ सभोग का निषेध हैं। अगम्यागमनीय--वि० [सं०] अगम्यागमन से सबंधित [को०] । अगमना)---क्रि० अ० [हिं० ] दे० 'ग्रागग्ना' । अगम्यागामी-चि० अगम्या स्त्री के साथ सहवास करनेवाला [को०] । अगमनीया--वि० सी० [सं० ] न गमन करने योग्य (स्त्री) । जिस । अगयार----वि० [अ० गैर का वहुं० ३०] पराया । गैर । उ०-हो यार । स्त्री के साथ सभोग करने का निषेध हो । अगम्या। वहीं उसको जो इस जग में सबसे अगर वने ।--'मारतेंदु अगमने ---क्रि० वि० [ f६० ] दे० अगमन' । उ०--पढि हुत' पर्यक ग्र॰, भा॰ २, पृ० ५६५ । परम रुचि रुक्मिणि चमर दुलावति तीर । उठि अकुलाइ अर्गमनै लीन मिलत नैन भरि अाए नीर ।--सूर (शब्द०)। अगर'-सधा पु० [सं० अगरु] एक पेड जिम लकडी सुगधित होती हैं । ऊद 1 उ०-चेन अगर सुगध र घृत विधि करि चिता अगमनोG)---क्रि० वि० [ हि०] दे॰ 'अगमन' । उ ---निसिचर सनम बनायो ।--सूर०, ६५०! । कसान राम-मर उरि उडि परत जरत पल जैहैं। रावन गरि विशेष—यह पैड भूटान, सामं, पूर्वी बंगाल, सासिया और पग्विार अगमती जमपुर जात वहून मकुचहैं ।—तुलसी । मतंबान की पहाडियों में होता है। इसकी ऊँचाई ६० से १०० ग्र ०,१० ३६३ ।। फुट और घेरा ५ से ८ फुट तक होता है । जब यह २० वर्ष ग्रगमानी -- सम्रा पुं० [सं० अग्र+मानी] भगुर ।नायक | मरदार । उ०--(क) है यह तेरे पुत्र की ल अगमानी भूप । नाम जासु का होता है तब इसकी लवही अगर के लिये काटी जाती है । पर कोई कोई कहते हैं कि इसकी लकर्ड ५०-६० वर्ष के दुप्पत है की रवि जासु अनुप ।---शकुंतला, पृ० १४८ । (ख) पहनै नही पतः । पहले तो इमकी लकडी बहुत सागरण जत्यो गयो न इद्र पै वल सौ जो रिपु बस । रन अगभाना पीले रंग की घर गधरहित होती है, पर कुछ दिनों में धड तुम किए करन ताहि विध्वस |--कुतला, पृ० १२६ } और घाखाओं में जगह जगह एक प्रकार का रम पा जाता हैं अगमानीg-मक्षा सौ० [हिं० ] दे॰ 'अगवानी'। इe---जवती जिस कारण उन स्थानों की लकडियाँ मारी हो जाती है । करने आइया हम भी यह जानी, बीवी साहब सगले हुवे प्रगमानी |---सुजान०, पृ० ६६ । इन स्थानों से लकड़ियाँ घाट ली जाती हैं और अगर के नाम अत्र+मानी] भग.. क) है यह १२