पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१४९

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अगती 'अगम अगनत)---वि० [हिं०] दे॰ 'अगणित' । । ग्रगती--सबा पुं० पापी मनुष्य। कुकर्मी या कुमार्गी व्यक्ति । पातकी २ मनुष्य । उ० (क) जय जय जय जय माधव बेनी । जगहित अगनि --सच्चा श्री० [स० अग्नि ] दे० ‘अग्नि' । उ०---अगनि तें प्रगट करी करुनामय अगलिन को गति देनी ।—सूर० ६।११ । | " दीपक अनगन बरै । वहुरि अनि सव तिन मैं रै ---नद० अ०, (ख) देखि गति गोपिका की मूलि जाति निज गति अगतिन प ० १४४ । कैसे ध” परम गति देते हैं ।--केशव (शब्द॰) । अगनिउG)---सझा पुं० [सं० आग्नेय आग्नेय कोण दक्षिण पूर्व को अगती--सझा स्त्री० चकवंड । ददिमर्दन । दद्रुध्न । चक्रमर्द । । कन्।ि उ०--ती जे एकादसि अगनिउ मोर। चोथ दुदसि अगती **--वि० जी० [ स० अग्रत ] अगाऊ । पेशगी । - ।। नैऋत बौर ।--जायसी (शब्द॰) । अगती--क्रि० वि० अाग से । पहले से । अगनित(५)---वि० [हिं० } दे० 'अगणित' । उ०—उमा महेस विवाह अगतीक-वि० [सं० ] १ जिसपर चलना ।। अनुचित हो । कुपथ । बराती । ते जलचर अगनित वहु भाँती :- मानस, पृ० २६ ।। ।। कुमार्ग । २ दे० 'अगतिक' [को०]। अगनिया --वि० [ अगणित, प्रा० अगणिय } १० 'अगणित' । अगत्तर+--वि० [ स ० अग्रतर ] आनेवाला। । । १) उ०---वरी, वरा, वेसन वहु भाँतिनि, व्यंजन विविध अंगअगत्ती+--सच्चा पुं० [ स० अतीक ] शरारती । नटखट। । नियाः।--सूर०, १०२३८ ।। अगत्या--क्रि० वि० [सं०] १ आगे से । भविष्य में । २ भागे चलकर। अगनी --सभ्रा स्त्री० [स० अग्नि] दे॰ 'अग्नि' । ३०-स्रवननि बचन पीछे से । अ7 में। अकस्मात् । सहसा । ' सुनत भइ उनके ज्यौ घृत नाए अगनी ।---सूर०, १०४१२५-1 अंगदकार--- सच्चा ५० [ म० अगदार ] वैद्य । चिकित्सक [को०]। अगनी--सच्चा स्त्री० [सं० अग्र ] घाई के माथे पर की भरी या घूमे अगद'---वि० [स०] १ नारोग । चगः । स्वस्थ । २ न बोलने या | हुए बाले।। - कहनेवाला (को०) । ३ न्याय द्वारा मुक्त । अभियोगमुक्त। अगनी --वि० [ स० अगणित ] अनगिनत । असध्य । - (को०)। ४ व्याधिरहित । निकटक । निर्दोष । उ०--रीझि अगनू -सज्ञा, स्त्री॰ [स ० आग्नेय ] अग्निकोण । उ०—-तीज एकादसि दिय। गुरु जाहि अगद वृ दे बन पद कौं ।---अजमाधुरी०, अनू मारी । चौथ दुग्रादश नैऋत वारी ---जायसी (शब्द०) । प० २५२।। अगनेउ---सच्चा पुं० [सं० आग्नेय, अप० प्रगनेउ ] अग्नेिय दिशा । अगद--सा पुं० १ ५ श्चि ) दवा। २ स्वास्थ्य । रोग का अभाव, अग्निको । १३०-छ5ए नैत देछिन सतें । इसे जाय (को०)। ३ अष्टांग प्रायुर्वेद में एक अग । अगद तत्र (को०)। . अगनेउ सो अटें ।--जायसी ( शब्द०)। अगदतत्र-- स प ० ( स ० अगदलत ] प्रायवंद के प्राट अगो मे से एक अगनेत(9)--सज्ञा पुं० [ स ० ग्नेय 1 आग्नेय दिगा। अग्निकोण । जिसमें सर्प, विच्छ आदि के विप से पीडित मनुष्योक, चिकित्सा उ०-- भोम . काल पच्छिम बुछ नैरिता । दच्छिन गुरु शुक्र का विधान है। अगनेता--जायसी (शब्द॰) । । " अगदराज-सज्ञा प ० [सं०] १ औषधियों का राजा । चद्रमा ! ३०-- अगनेव(५'- वि० [ सं ० अग्नेिय ] अग्नि सवधी । उ०---सीत । भीत एकादश अध्याय यह अगदराज की धार' । पाने करहु नर चित्त . प्रदीत बास अगनेव कोण किय ।--पृ० रा०, ६३ । १९६० । ६ मिट रग ससार }--नद० ग्र०, पृ० २५६।२ उत्तम या अगवानपु---संज्ञा पुं० हिं० ] दे॰ 'अग्निदणि । उ०—-इज्ज़ि गहर अव्ययं प्रौषधि (को॰) ।

नीसान अग्नि गबन बिछुट्टिय |---१० रा०, १।६२६।। " अगदवेद--सज्ञी प० [सं०] अयुवद [को॰] । । ..""' - अगम-वि० [सं० अगम्य) १ जहाँ कोई जा न सके। न जाने योग्य। अगदित--वि० [सं०] न कही हु । अकथित [को०)। । -

पहुँच के व हर । दुर्गम । अवघट। गहुन। उ०--(क) अब अगन" ---सज्ञा स्त्री॰ [स० अग्नि] १ दे० 'अग्नि'। उ०—इम लगन - अपने यदुकुल समेत लै दूरि सिधारे ज़ीति जवन । अगम से पथ ऊपर आविया म झ अगन लागो मेह-रघु० रू०, पृ० ३७ । दूर दक्षिण दिमि तह सुनियत सखि सिधु लवन ।—सूर २ अगिन नाम की एक चिडिया। उ०--गन से मेरे पुलकित (शब्द॰) । (ख) है, आगे पवत की पोट । विषम पहार अगम प्रण, सहस्री स स स्वरों में चूक तुम्हारा करते हैं अाह्वान । सुठि घाट ---जायसी (शब्द॰) । २ विकट । कठिन । मुश-~-पल्लव, १० १६ । किल। उ० -एक लालसा बडि उर माही। सुगम अगम कहि अगन --सज्ञा पुं० [स० अगण] दे॰ 'अगण' । उ०--मन यम शभ । जात सो नाही 1-तुलसी (शब्द॰) । ३ न मिलने योग्य । चारि है २ स ज त अगनी चारि-भिखारी 'ग्रं०, ० १ दुर्लभ । अलभ्य । उ०—-सुनु मुर्नसवर दरसन तोरे। अगम ने * पृ० १७०) । । कछु प्रर्त ति मन मोरे। --तुलसी (शब्द०)। ४ अपार । अगन’ -- संज्ञा पुं० [स० अङ्गण] दे॰ 'आँगन'।। अत्यत । बहुत । उ०--समुझि अव निरखि जानकी मोहि । अगन --वि० [सं० अगण्य, प्रा० अगन्न ] असख्य । बेशुमार) दडो भाग गुनि अगम दसानन सिव बर दीन तोहि ।--सूर ०१ उ०----(क) साँव को लक्षमना सहित ल्याए बहुरि दियौ ६।७७५५ में जानने योग्य । वुद्धि के परे। दुध । उ०—-अविदाइज अगन गन न जाईं।--सुर०, १०1४२०६। (ख) ससि गत गति कछु कहते न वै । सब विधि अगम विचारहि तातं अखड मडल जु गगन मैं । राजत भयौ नक्षत्र अगन'मैं।-- {। सूर सगुन लेला पद गावै । --सूर०, ११६। ६ वहुत गहरा। नद० ग्र०, पृ० २९२ । । । - 'अथाह । उ०---'यहाँ पर नदी में अगम जल है (शब्द॰) । १० ।५---सज्ञा पुं॰ [हिं०] दे० 'अगनेत' । ।। ३०----तिन कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ । ।।