पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१४८

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बिगड़ मगत अगडवगड)---वि० [सं० प्रकृत+विकृत, प्रा० अकड़+विकड, अगर अगत-अव्य० [सं० अग्रत , प्रा० अग्गत ! मागे चलो। हाथियो विकड] अड वः। वे सिर पैर का । ऊलजलूल । क्रमविहीन । को आगे वाढाने के लिये भवनो द्वारा प्रयुक्त शब्द । महावत अगड़बगड-.-सज्ञा पुं० १ अडबड बात । थे सिर पैर की बात । । लोग हाथी को आगे बढ़ाने के लिये प्रगत', 'अगत' कहते हैं। प्रलाप । २ अडबड काम । प्रथं का कार्य । अनुपयोगी कार्य। अगत --स्त्री० [स० प्रगति ] बुरी गति । दुर्दशा। दुर्गति । उ०--'वह टूकान पर नहीं वैठता, दिन रति अगडबगड़ उ०--मन प्रकार सुख शक्र लख जन रामा हरि विन अगत ।-- किया करता है ( शब्द०)।। राम० घर्म, पृ० २४५ । अगडम वगडम+--दि० [हिं०] दे॰ 'अगडवगड' ।। अगता--वि० [स० अप्रत ] १ मागे स्थित । अगाड । उ०—-बाएँ अगडम वगडम--सला पुं० [सं० प्रकृतम् + विकृतम् प्रयवा अनु० ] सो सहने पीछे सोइ अगता । अर्घ उर्ध सम घटत न बढता |--- १ दे० 'अगउद"ड' । २ टूटे फूटे सामान और काठकवाड भीबा श०, मा० ३, पृ० १२ । २ अग्रिम । पेशगी । का ढेर । अगता-सा पुं० [फा० अति ] बवियों किया हुआ घोडा [को०] । अगड़ा -सा पुं० [सं० प्रकरण अथवा देश० ] ज्वार वजिरा आदि । अगति--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ वृरी गति । दुर्गति । दुर्दशा । दुरवस्था । उ०---ऋघि सिधि विधि चारि सुगति जो विन गत अगति। | अनाजो की बात जिसमे से दाना झाड़ लिया गया हो । | 'खुखडी । अखरा । --तुलसी ग्र० पृ० ३६० । कि० प्र०—१ रन। |--होना। अगडा--वि० [सं० अग्र, प्रा० अग्ला ] दे॰ 'अगरा', 'अगला' । २ गति का उलटा। मरने के पीछे शव की दाह अादि त्रियों का अगडी-सृज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'अगरी ३' ।। यथाविधि न होना। मृत्यु के पीछे की दुरी दशा। मोक्ष की अंगण--सज्ञा पुं० [सं० ] अणुभ गण । बुश गण । अप्राप्ति । बधन । नरक। उ०—-काल कर्म गति प्रगति जीव विशेप--पिंगल या छदशास्त्र में तीन तीन अक्षरों के जो आठ की मद हरि हाथ तुम्हारे ।---तुल मो (शब्द॰) । गणे माने गए हैं, उनमें से चार अर्यात्---गण, रगण, सगण क्रि० प्र०—करना उ०--कहो तो मारि सहारि निशाचर रावण और तगण अशुभ माने गए हैं और प्रगण कहलाते हैं । इनको कगै प्रगति को।--सूर (शब्द॰) । कविता के श्रादि में रखना बरा समझा जाता। पर यह गणा ३ स्थिर या अचल पदार्थ । के शव के अनुसार २८ वयं गण का दीप मात्रिक छदो में ही माना जाता है, बर्ण वृत्ती विषय हैं। इनमें से जो स्थिर या अचल ही उनकी प्रगति में नहीं। उ०---इहाँ प्रयोजन गण, अंगण और द्विगण को। सच्चा दी है, यथा-- अगति f धु गिरि ताल तक वापी काहि ।--छद ०, पृ० ११२ । । कूप वखानि |--केशव (शब्द०)। उ०—कालीं राखौं थिर अगणत --वि० [हिं०] दे॰ अगणित । उ०--हैक बिदर पैदा हुवै । । वपु, वापी कूप सर सम, हरि विनु कन्हें बहू वासर | अगणत मिलिया अम |--वाँकी ० ग्र०, भा० २, पृ० ८५ । तत मैं 1-~-वे शव ( शब्द०)। ४ गति को प्रभाव । अगणन-वि० [सं०] असख्य । अनगिनत। उ०—-प्रलय के समय में स्थिरता। उ० --न तो प्रगति ही हैं न गति अाज किसी भी जव ज्ञान-ज्ञेय-ज्ञाता-लय होता है अगणन ब्रह्माड ग्रास करके । अर, इस जीवन के बाद में ही एक झकझोर ।---स केत, |-अनामिका, पृ० १०१ । पृ० २८ ६ ५ पहुंच या सहायता की कमी (को०)। ६ अगणनीय--वि० [सं०] १ गिनने योग्य । सामान्य । २ अन पूर्णता का अभाव या कमी (को०)। अगति –वि. १ जिसको गति न हो । निरुपाय । अगतिक । इ०-- गिनती । असख्य । वेशुमार। इस पिती ही की चिता के पाम, मुझ प्रगति को भी मिले अगणित--वि० [सं० 1 १ जिसकी गणना न हो। अनगिनत । चिरवास |---साकेत, पृ० २०० । २ विनों सहायता का । प्रसस्य। बेशुमार। बहुत । बेहिसाब । अनेक । उ०—ऐसे असहाय (को॰) । ही अगणित रत्न से तुम्हें जगत में पाया है 1--साकेत, पृ० , पृ० । प्रगतिक--वि० [सं०] १ जिसकी कही गति या पैठ न हो। जिसे ३७० । २ जो गिना न गया हो । जो गिनती मे न अाया हो। कही ठिकाना न हो । बेठिकाना । अशरण । अनाथ । निग(को०) । ३ स्पेक्षित । तुच्छ (को०)। श्रय । ३०--अगतिक की गति दीनदयाल |--कोई कवि अगणित प्रतियात--वि० [८] सूचना न प्राप्त होने के कारण या | - (शब्द॰) । ३ मरने पर जिसकी अत्येरिट क्रिया आदि न ध्यान आकृष्ट न होने के कारण वापस [को० }। शालबज_e, f झa 1 लज्जा का ध्यान न रखनेवाली। अगतिकगति--वि० [सं०] गतिहीन या निरुपायों को अय। अगरण निर्लज्ज [को॰] ।। शरण (भगवान्) [को॰] । अगण्य --वि० [सं० १ १ न गिनने योग्य । सामान्य । तुच्छ । २ अगतिमय-[ वि० सं० प्रगति + मय ] गतिहीन । जह। उ० ---२ असप । वेश मार। उ०——गजे गगनागण में ये अगष्य गान। - पुरातन अमृत गतिमय माह मग्घ जर्जर अवसाट । कामायनी, पृ० १८ ।। --गीतका, पृ० ८७। । अगत –निं० [स० प्रगति] जहाँ गति न हो । अगम्य । उ०—-(क) अगतो.'--वि० [सं० प्रगति] १. जो गनि या मोक्ष का अधिकारी न उनकी मेहर से ३ मिल सच जो अगत गाई जिनन ।-संत हो । दुरी गतिवाला। २ पापी । कुमार्गी । दुराचारी । तुरसी०, पृ० ४३ । कुकर्मी। ३ दे० 'प्रगति' ।