पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१४७

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अख्तरमा अधिता अख्तरशुमार--सया पुं० [फा० अख्तरमार 1 नक्षत्रों की विद्या का (को०)। ६ जलपाने (को०) । ७ नात या सख्या वा वाचक जानकार । ज्योतिपी [ वो०]।। शब्द (को॰) । अख्तरशुमोरी--सक्षा मी० [फा० अस्तरशुमारी] १ नक्षत्रगणना अग’ -वि० [ म० श्री ] अनजान अन । मृद ।। की विद्या। म,ग्य जानने की विद्या २ असमान से तारों अग'७---सपा पुं० [ स० अङ्ग ] शरीर। अग (दि०)। को गिन गिनकर रात काटना । बेचैनी से रात काटना ! अग'+--सच्चा पुं० [म० अग्र, प्रा० अग्ग] नु के मिरे पर का पतला *०-- वे उसने तोहेकर मोती के सुमरने मुझसे गिनवाएँ । भाग जिसमें गांठ बहुत afस पास होती हैं और जिमका रस फीका होता है। अगर । दिखाया स्ल में आलम नया अख्तरशुमारी की। -पोर०, | अग६ (७--क्रि० वि० [हिं० ] दे॰ भागे'। उ०—-मवन नवे मत अद मा० १, पृ० २१७ । वरप दस तोय मत्त अगे । इन प्रविष्ट वसन नरिंद राजत सयल अख्तावर--सच्चा पुं० [फा० भारतावर (प्रत्य०) ] वह घोडा जिसे ।

जुग |---१० २, १।४७२।। जन्म से ही अडकोश की कोही न ही या गृत्रिम उपाय से नष्ट पता

अगइं+----वि० [ स० अग्रिम ] अगली । घागे । अग्रिम् । ३०.. कर दी गई हो। राजा पाहूयो न्नाया है। व लाई । अगः बात यह समझाय }--२ विशेष -जन्म से नपुसक घोडा ऐबी समझा जाता है । वी० गसा, पृ० ८६ ।। अख्तियार---सझा पुं० [हिं०] दे० 'इम्तियार' । उ०--कुछ हाथ उठा औगई–समा पुं० 1 देश० ] चन्नत जाति एक पेड। के माँग न कुछ हाथ उठा के देख। फिर अख्तियार खतिरे । विशेप---यह अवध, बगाल, मध्यप्रदेश और मद्रास में बहुतायत से बेमुद्दा के देखे ।—शेर० भा० ४, पृ० ५८ ।। होता है। इसकी लकर्ड भीतर मफेद लिए हुए लाल रंग की अख्त्यारपु–सुझा पुं० [हिं०] दे॰ 'इख्तियार' । ६०---कीजे क्या हाली होते हैं और जहाज तथा मकानों में लगता है। इसका कोयना न कीजे सादगी गर अख्यार । बलिना अाए न जब रगीं घयानो भी बहुत अच्छा होता है। इसके पत्ते में दो पुट लवे होते हैं और की तरह।--कविता को०, भा० ४, पृ० ५६६ ।। पत्तन का भी काम देते है। इसकी कली और कच्चे फलों की अख्यात-- वि० [सं०] १ अप्रसिद्ध । अज्ञात । २ जिसे कोई जानता । तरकारी भी बनती है। | न हो । अविदित । ३ अख्यातियुक्त । अप्रतिष्ठित | को० ]। अगच्छ--वि० [सं०] जा न चल । अगमनशील [को॰] । अख्याति--सच्चा स्त्री० [सं०] अप्रसिद्धि । प्रसिद्धि का अभाव [को॰] । अगच्छ’--सम्रा पु० दक्ष । पेड [को० ] अगज---वि० [सं०] पर्वत में उत्पन्न होनेवाल।। २. वृक्ष से उत्पन्न अख्यातिकर--वि॰ [ स० ] १ अपमानकर। अप्रसिद्धि करनेवाला ।। (को०) । ३ पर्वत पर घूमनेवाला । गिरिचर (को॰) । अकोतकर । वदनामीं फैलानेवाला ।। अगज--सभा पुं० १ शिलाजीत । २ हार्य । अख्यान--सुझा पुं० [स० श्राख्यान; प्रा० अक्खाण] दे 'स्यान' । अगजq-- सा पुं० [अ० गश ] पवेत रग के सिरवाला मश्वं । उ० --अव अख्यान वखानहू भूवन सिह चौहान --रामसिक०, उ०--अवलक अमर अगज सिराजः । चौघर चल समुंद सब । १० ६६६ । ताजी ।--पदमावत, पृ० ५१६ । अख्यायिका--सच्चा स्त्री० [सं० प्रात्यायिका ] दे॰ 'छायायिका' । भगजग-सज्ञा पुं० [सं० अग - जग 1 चराचर । जड चेतन । उ•-- अगज---वि० [सं० = नहीं +गञ्ज] न जीवा जानेवाला। मगजन उनका कण कण उनके । पल भर वे निर्मम हो । झरते अपराजेय । उ०—-पत्रह सद्दस पसयान साहि। मेगन मग नित लोचन मेरे हो -यामा, पृ० १८१ । को सुकै गाईि।--पृ० रा०, १३।१६ । अगजा--ससी० [सं० अग = पर्वत + जा = पु] हिमालय की पुही, अगड-सा पुं० [ स० अगण्ड] विना हाथ पैर का कवघ। धड । पार्वती [को॰] । जिसके हाथ पैर कट गए हो । | अगट-सा पु० [देश ०] चिक या मास बेचनेवाले की दुकान। अगतG:--क्रि० वि० [ स० अग्रत प्रा० अरगत > प्रगत ] सामने। अगट -क्रि० स० [ स० एकन, एफस्य, प्रा० एकट्ट] इकट्टा होना । एकत्र होना । जुमा हाना। गे। उ०—-मेल्हन उजर पहुँच्यो हुरत रनथभ कोट देख्यो मगड(६ –सद्मा पु० [ ४० अर्गल, प्रा० अग्गल ] सिक्कड जिसमे हाथी अगत |--हम्मीर०, पृ० १७ ।। अगता--वि० [सं० अगन्ता] चलने या गमन न करनेवाला [को०]। वधेि जाते हैं । ३०--चिहूँ और हरपी छुटे, पर अगड सुमार। अगता--वि० [सं० अग्र + गता] १. आगे बढा हुमा । अगाडी । | गोला लगै गिलोल गुरु छुटै न तो इमर |--पृ० रा०, ६।३२५।। २ पेशगी । अगता । अग्निम् । | अगड(--सद्मा पु० [हिं० अकड़ या अ० मा० अगड ] अकड ! ऐंठे । अगध-वि० [सं० अगन्ध ] गधरहित । गधहीन [ को०] । दर्प। उ०--सोभ मान जग पर किए सरज। सिवा खुमाने । अग’- वि० [स०] १. न चलनवाला। अचर। स्थावर, उ०—-तव । । अच। स्यावर, उ०—तव साहिन सो विनु र अगड विनु गुमान को दान । । विपम माया बस सुरसुर नाग नर अग जग हुरे ।---मानस, ' भषण ( शब्द०)। ।। ७।१३ । २ टेढा चलने वाला । ३ पहुँच के बाहर । [को०)। अगड़धत्त-वि० [हिं०] दे॰ 'अगडधत्ता'। अग–सम्रा पुं० १ पेह । वृक्ष । २ पर्वत । पहाड । उ०—-गए पूरि सर अगड़धत्ता--वि० [ देशी] १. लवा तहगा । ॐघो। २ प्रष्ठ । बढ़ घूरि भूरि भय पग थल जलधि समान --तुलसी ग्र०, पृ० चढ़ा। इ०---एक पेड़ अगडधत्ती। जिसमे जड न पसा - ३८१ । ३, पत्थर (को०)। ४.वुन । पदिप (को०) । ५. सूर्य पहेली [ उत्तर-अमरबेल ।] ला।