पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१४४

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अखाड़िया अखरा’----वि० [सं० अ = नहीं +खा = सच्चा] जो खरा अखाँगना'७--त्रि० स० [हिं० खरना ] मारना । उ०—-है या सच्चा न हो। झूठा । कुत्रम । चनावटी । उ०-~~-वार पदमाकर अखाँग्यो तुम लकति ।--पदमाकर ग्र०, पृ० २४८ । बिलासिनी ती के जपे अखरा अखरा नखरा अपरा के । --- अखाँगना” (७ --क्रि० स० [सं० अ = नहीं + हिं० खाँग = कमी, त्रुटि पद्माकर ( शब्द॰) । चुटि न करना। कोताही या कमी न करना । उ०—हमहूँ। अखरा --संधर पुं० [सं० अक्षर ] दणं । अक्षर । इरफ । उ० कलकपति द्वैवाई अखाँग्यो है ।--पदमाकर ग्र०, पृ० ३८८ । (क)--जीते कौन, कौन अखरा की रेफ, केक, वह कह र अखा+--- सच्चा पुं० [हिं०] दे० 'प्राखा' । मीत खै कहा कहि शाप दम् ।-भिखारी० अ०, भा॰ २, अखाज--वि० [हिं०] दे० 'अखाद्य' । उ०--गम्य अगम्य विचार न पृ० १९६ । ( ख ) रसवं न कवितन' को रस ज्यो खरान के कही, खाज अखाज नही चित धरही |--कवर सा०, १० ऊपर हूँ झलके --काई कवि (शब्द॰) । ४६४।। अखरो+--सधा पुं० { देश ० ] विना कुटे हुए जी का भूसमिला अखाड-- संज्ञा पुं० दे० 'अखाड' । उ०--छुई धटि मोहहि नर प्राटा जिप गरीव लेग खाते हैं । राजा । इद्र अखाड अाइ जनु सजा ।—जायसी ग्रं०, अखरावट-सच्चा १० [ स० अक्षरावलि , अक्षरावर्त ] १ वर्णमाला। पृ० ४७ ।। अक्षरसमूह । २ घणनुग्राम के आधार पर निर्मित पद्यसमई, अखाड़ा--संज्ञा पुं० [सं० अावाट; प्रा०खाय ]१. वह स्थान जैसे जायसी का अखरवट । जो मल्लयद के लिये बना हो । कुश्ती लटने या व सरत करने अखरावटीg:--सच्चा स्त्री० [हिं० अखरोट +ई (प्रत्य॰)] दे० के लिये वनाई हुई चोखूटी जगह जहाँ की मिट्टी खोदकर ‘अक्षरौटी'–१ । ४०--पटिन पढ़ प्रखरोटी टूटा जोरे मुलायम कर दी जाती हैं । मलशाला । उ०—'चौदह देखि --जायस ग्र०, ३०३ । पद्रह साल के लड़के अखाडा गोड चुके थे छप्पर की थूनियाँ अखरावल--सझा स्त्री॰ [ स० अक्षरावलि ] अक्षरपक्ति । उ०-- पर्व डे हुए बैठक कर रहे थे' |--काले०, पृ० ३ । २ साधुओं प्रकटित पृथिमी पृथु मुख पवज अखराबलि मिसि थाइ एकत्र । की सांप्रदायिक मडली । जमायत, जसे---निरजनी अखाडा, वेनि०, ६० २९३ । निर्वाणी अखाडा, पचायती, अखाड़ा । ३ साधु के रहने का अखरोट'G-सक्षा पुं० [हिं०] ६० अरावट'- १ । ३०--पुण जै, स्थान । सतो का अड्डा । ४ तमाशा दिखानेवालों और गाने सुध अक्षराट पिण अं दस देय अगाध ---रघु० ९०, पृ० १३ । घजाने वाली की मसली । जमरपत । जमावडी । दल, जैसे---- अखरोट:--संक्षा पुं० [ स० अक्षोट, प्रा०' श्रवणोद्ध] एन वहुँत ऊँचा 'प्राज पटेबाजों के दो अखाड़े निकले' ( शब्द० ) । ५ सभा पेड जो हिमालय पर भुटान से लेकर कश्मर और अफगानि दरवार। मजलिस । ६ रगभूमि । रगशाल) परियो का स्तान तक होता है ।। अखाडा 1 नृत्यशाला । उ०--लडते हैं परयो से कुश्ती पहलविशेष---खासियों की पहाहि यों तथा अन्य स्थानों पर भी यह बाने इश्क हैं, हमको नासिख राजा इंदर का अखाडा चाहिए । नगाया जाता हैं। इसकी नम ही बहुत ही अच्छी, मजवत और --*विता को०, भी ० ४, पृ० ३५४ । ७ अाँगने | मैंदान । भूरे रंग की ह ती है और उसपर बहुत सुंदर धारियाँ पडी मुहा०-- अखाडा उखाड़ना = अखाड़े के काम में लोगों द्वारा रुचि होती है। इसकी मेज, कुरसी, बदूक नै कुदे, सद्दक आदि न लेनी । अखाडा न जमना । अखादा गरम होना=अखाड़े में घनते हैं। इसकी छाल रेगन और दवा के काम में भी अप्तिी काफी ल गौ का आना या भीडभाड हाना। अखाडा जमना= है। इसका फल अँटकार, बहेडे के समान होता है। सूखने | १ अखाड़े का वाम ठीक ढ़ग से होना । २. अखाड़े में शामिल पर इसको छिलको बहुत बडा हो जाता हैं जिसके भीतर से होने वाले और दर्शको की चहल पहल होना। ३. विसी जगह टेढा मेडा गूदा व मीठी गरी निकलती हैं। गृदे मे से तैल भी बहुत से अदमियो का इव ट्री हाना। ४. विसी मजलिम, सभा बहुत निकलता हैं । इठल अरि पत्तियो को गाय वैल खाते हैं । या गोष्ठी में चहल पहल रहना। अखाडा न लगना = अखाडे अखरोट बहुत गर्म होता है । । का काम न होनी । अखाडा वद रहना । उ०---‘और लडको अखरोट जगली--सङ्घ चुं० [हिं० ] जायफल । को समझा दिया कि कोई अवै तो वह दे कि अखाड़ा ने अखरोटी-सच्चा स्त्री॰ [हिं० ] दे॰ 'अखावटी' । लगेगा' ।--काले०, पृ० २७ । अखाडा निकलना = अखाड़े से अखर्व-वि० [सं०] १. जो छोटा न हो। वही । लवा। २. जो सबद्ध लोगो के सामूहिक रूप से निकलना । अखाडा बदनी = क्षुद्रं या वीना न हो (को०) । चुनौती देना। ललकारना । खासा लगना = दे० 'अखाडा पखव--सा स्री० [ सै• ] एक प्रकार का पौधा [को०) । जमुना'। अखाड़े का जबान = कुपती या कसरत से पुष्ट शरीर अखल--संज्ञा पुं० [सं० ] गुणी एवं अच्छा वैद्य या डाक्टर [को०) । है। पक्ति । अखड़ेि में ना = लड़ने के लिये सामने माना। अखलाक---सबा पु० [अ० अखलाफ J१ सदाचार) उत्तम प्राचार। अखा में उतरना= दे० 'अखाड़े में माना' । २. सुजनता । शिष्टता [को॰] । | अखाडिया'-- वि० [हिं० अखाड़ा + इयो (प्रत्य॰)] १ अखाड़े के अखलि-विर [ देश० असलिय ! • कुल व्याकुल । उ॰--- कामो मे सधा हुअ । दुगनी पहलवान । २. कैथल जाइ मअपने दुतिया है कुल उधरन धीर, उनमन मनद अखलि सरीर |--- में ही लहनेवाला । दंगल में न १ नेयाला । ३. किसी विषय गोरख०, पृ० १८१ ।' के ज्ञान मे बेजोड़े। प्रसव--साम • [ सं० मत ] चार्वती' ( दि० )।' भखाड़िया-संवा पु०' झरती लड़नेवाला पहलवान । '