पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१४२

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अक्षोभ ६१ अखंडित | = शरदर१ अक्षोभ---संज्ञा पुं० [सं०] १ क्षोभ का अभाव। अनुढेग । शाति । सदा स्वच्छद रहें ।--प्रेम०, पृ० ३२ । ३ निर्विघ्न । बेरोक । दृढता। धीरता। स्थिरता । २ हाथी घाँधने का खूटा । उ०---रावन क्रोध अनल' निज स्वसि समीर प्रचड । जरत अक्षोभ--वि० १ सोभरहित । चचलत से रहित । उद्वेगशून्य । २. विभीषन राखेउ दीन्हेउ राज अखड |---मानस, ५/४६। | शात । स्थिर गर्भ र। । यौ॰—अखंड ऐश्वर्य । अखड़ कीर्ति । अखड पुण्य । अखंड अक्षोभ्यवि० [सं० ] धीर । शात । गभीर [को०] । प्रताप । अखड यश । अखंड राज्य । अखंड वृष्टि ।। अक्षोभ्य--सच्चा पु० १ तत्रोक्त एक ऋपि। २ बुद्ध का एक नाम । अंखड द्वादशी---सद्या स्त्री॰ [ स० प्रखण्डद्वादशी ] अगहन सुदी द्वादशी। ३ बद्धो के मुत से एक बहुत बड़ी संख्या (को०] । ' मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की वाहवी तिथि [को॰] । अक्षयकवच-सझा पुं० [सं० 1 तत्रशास्त्रोक्त एक प्रकार का अखडधार--संज्ञा पुं० [सं० अखण्डघार ] न टूटनेवाली धार । झडी । | कवच (को० । लगातार वृष्टि । उ०-- सलिल अखडघार घर टूटत किए इद्र अक्षौरिम--सझा पुं० [सं०] ज्यौनिप शास्त्रोक्त वे नक्षत्र जिनमे क्षौर मन सादर }--सूर० १०८५८ । कर्म वर्जित है [को॰] । अखडन--वि० [सं० अखण्डन] १ खडित न होनेवाला । अखडनीय। अक्षौहिणी--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ पूरी चतुरगिनी सेना। सेना २ समग्र । पूर्ण । ३ अखडित। अविच्छिन्न [को॰] । का एक परिमाण । सेना की एक नियमित संख्या 1 इसमें अखड़न’---सच्चा पुं० १ विरोध का अभाव । अविरोध । २ कॉल । १०९३५० पैदल, ६५६१० घोडे, २१८७० रय और २१८७० समय । ३ परमात्मा । ४ खहन न करना [को॰] । हाथी होते थे। २ ग्यारह की सरया ।--भा० प्रा० लि. अखडेनोय--वि० [सं० अखण्डनीय ] १ जिसके टुकड़े न हो सके। पृ० १२० ।। जिसका खंड न हो सके । जो काटा न जा सके । २ जिसके अक्ष्ण-वि० [सं०] अखड | व्यापक [को०)। - विरुद्ध ने कहा जा सके । पुष्ट। अकाट्य । अक्ष्ण-सञ्ज्ञा पुं० काल। समय [को० ]। | अखडपाठ---सज्ञा पुं० [सं० अखण्ड+पाठ] वह पाठ जो विना क्रम अवस--सज्ञा पुं० [अ०1१ प्रतिबिंब । छाया । परछाईं। इo --- टूटे लगातार चले ।। नाजुक हैं, न खिचवाऊँगा तस्वीर में उसकी । चेहरा न ही अखडर-~-सझी पुं० [सं० शाखण्डल ] इद्र । सुरपति । उ०--नंहि अक्स के बदले उतर थाए ।--कविता कौe, भा० ४, सुमत कैमास राय गोयद अखडर ।-पृ० रा०, ६६। २३८ । पृ० ६६२ ।। अंखडल -वि० [सं० अखण्ड + हिं० ले (प्रत्य०) ] १ अखड। कि० प्र --आना |--डालना ।--पड़ना ।—लेना । अट्ट । अविच्छिन्न । उ०--मन नखत मंडल में अखडल पूर्ण २ तसवीर । चित्र । । उ०—ाईनए दिल में हैं तेरा अक्स । चंद्र सुहाय }--रघुनाथ (शब्द०) २ समूचा । सपूर्ण । दिन रात मैं तुझको देखता हूँ।---शेर०, 'मा० १, पृ० ३०६ । पूरा । उ०—-तवा सो तपत धरा मडल अखडल औ मारत क्रि० प्र०——उतारना ।--खींचना । । मडल हवा सो होत भोर तें।---बेनी ( शब्द )। - ३. फोटो [को॰] । अखडलq--सा पु० [सं० श्राखण्डल; प्रा० अखडल] इंद्र । अक्सर--क्रि० [अ०] वि० दे० 'कसर' । उ०—अाँखों में अक्सर उनकी सुरपति । उ०—जाय बृजमडल के बीच मैं अखडल ह्वाँ मरजी " असू निकल गए हैं । क्या इया भरे गुलिस्ताँ सावन में जल गए। तिहारी मानि रह्यो वहु भाँति हैं ।-दीन० ग्र०, पृ० ६० । - हैं।--शेर०, भा० ४, १८२ । अंखड सौभाग्य---सज्ञा पुं० [सं० अखंड-+सौभाग्य ] जीवन पर्यंत अक्सी-वि० [फा०] १ प्रतिबिंब या छाया सबघी। २. अक्स। स्त्रियों के अविधवा होने का सौभाग्य । जीवन पर्यंत अविधवा सवघी । अक्स से दना | को०)। रहने की स्थिति [को०]। अक्सी तसवीर--सपा पुं० [फा० 1 फोटो । अलोक चिन्न । अखंड सौभाग्यवती--वि० [स० अखण्ड + सौभाग्यवती] जीवन पर्यंत अक्सीर'--वि० [अ० ] अव्यर्थ । अकसर । ३०-----जाहिद शरावे | सुहागिनी रहनेवाली [को॰] ।

  • ब की तासीर कुछ न पूछ । अक्सीर हैं जो हुल्फ के नीचे अखड़ा द्वादशी--सन श्री० [ स० अखण्टा द्वादशी ] अगहन सुदी द्वादशी उतर गई।--कविता को०, भा० ४, पृ० ५५५ ।

दे० 'अखडद्वादशी [को॰] । अवसीर--सच्चा पुं० कीमिया । अक्सीर । एक देवा [को०]। अखडानद-वि० [सं० अखंड + आनद ] पूर्ण मानदस्वरूप । oअखग--वि० [सं० अखण्ड ] न खंगनेवाला । न चुकनेवाला । कम । जदपि अखडानद नदनदन ईश्वर हरि ।--नद० प्र०, पृ० ४६ । न होनेवाला । अविनाशी । अखडित--वि० [ स० अखण्डित ] जिसके टुकड़े न हो । विभागअखड--वि० [सं० अखण्ड ] १ जिसके खह या टुकडे न हो। अटूट। . रहित । अविच्छिन्न । उ०—सोइ सर्वज्ञ तशे सीइ पडित । अविच्छिन्न । सपूर्ण । समूचा । पूरा। उ०--ज्ञान अखडे एक ।। सोई गुन गृह विज्ञान अखडित । --मानस, ७१४६। २ सपूर्ण । सीतावर । मायावस्य जीव सचराचर --मानस, ७/७६। २ समूचा । पूरा । परिपूर्ण । उ०—-वे हरि सकल टीर के धासी । जिसका क्रम या सिलसिला न टूटे । जो बीच में न रुके । पूरन' ब्रह्म यखडित मडित पडित मुनिन विलासी । लगातार । अनवरत । ०--जहां अखड शांति रहती है वहाँ ---सूर०, १० १३०६६ । जिसमे कोई रुकावट न हो। बाधा रहित । निविघ्न, जैसे--उसका व्रत अखंडित रहा (शब्द॰) । ११