पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१४०

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| अक्षरसमाम्नाय । अथावाप। अधारसमाम्नाय--पसा पुं० [सं०] 'अ' से 'ह' नाक के वर्षों का विशेप-यह अक्षसूक्त ऋग्वेद मडल १०, अध्याय ३ का ३४ व । समूहू। वर्णमाला [को॰] । | " । सूक्त हैं जिसमें ११४ ऋचाएं हैं। इनमें १, ७, ९ र १२ व अदाग--सा पुं० [ सं० प्रदाराङ्ग] १ लिखावट । लिप्ति । २. ० अदाङ्ग ] १ लिखावट । लिप्ति । २. ऋचा पा की स्तुतिपरक हैं अर, १३ वी कृति की स्तुति में लिखने का माधन । [क० ] ।। ।" हैं। शेप ऋचाप्रो में जुए का खेन और जुआडियों की स्थिति अथारा- संज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ भाया । २ शब्द [को०] । । । का अकन किया गया हैं । अक्षराक्षार---पा। पुं० [सं० 1 पान का एक प्रकार या प्रक्रिया (को०] अदासुन्न----सझा मुं० [सं०] १ रुद्राक्ष की माला । २ जपमाला अक्षाराज-सज्ञा पुं० [सं०] चूत क्रीडा में आसक्त व्यक्ति [को॰] । जिसमें गूथी जाय वह सूत (को॰) । अधाराम-“ममा १० [सं० अक्षरारम्भ 1 एक सस्कार जिसमें पहले अदासन--सका पुं० [सं०] भारत वर्ष का एक प्राचीन राजा जिसका पहले वालक क। अक्षर लिखना सिखाया जाता है किो०1।। नाम भन्युपनिपद् में आया हैं । अक्षरार्थ-- सज्ञा पुं० [सं०] वर्णो का अभिप्राय । शब्दों को भर्य । अदास्तुष-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बहेडा [को॰] । | वाच्यार्थ वा यायिक अर्थ [को॰] । अक्षहीन--वि० [ सं० ] देवरहित । अधा । अक्षारो'--वि० [सं० प्रकार है 1 अक्षरयन । वर्णवाली ३. अदाहृदय--सा पुं० [सं०] १ जुए के खेल की दक्षता । २ जाए। के भीतरी वार्ते या चालें [को० 11 है प्रहरी, दूजी नाडी । दोय पप पान अमन |--गोरख०, पृ. | अक्षहृदयज्ञ --वि० [ स०] जुए में पूरी तर से दक्ष [को॰] ।। २५१ ।। अक्षरी'--मल्ला स्त्री० [सं०] १ बरसात । वर्षा ऋतु (को०) । २ प्राति--सफा मौ० [सं० शान्ति ] १ ईष्र्या । हो । जलन ।

  • हदस 1२ दे० 'अक्षमा' (को०) ।। किसी शब्द के लिखने या उच्चारण करने में अक्षरो का क्रम ।

अक्षाश--सा पुं० [सं॰ ] १ भूगल पर उत्तरी, श्रीर दक्षिणी ध्रय हिज्जे । से होती हुई एक रेखा मान कर उसके ३६० भाग किए गए अरेखा--सहा झी० [ स० ] वह सीवी रेखा जो किसी गोले पदार्थ हैं । इन ३६० अशो पर से होती हुई ३६० रेखाएँ पूर्व पश्चिम के भीतर केंद्र से होती हुई दोनों पृष्ठ पर लब रूप में गिरे । भूमध्य रेखा के समानांतर मानी गई हैं जिनको अक्षाश कहते घुरी की रेखा ।। है । अक्षांश की गिनती विपुवन् या भमध्यरेखा से की जाती | अहीरोटी-सी स्त्री० [सं० अारावर्तन, प्रा० अवखरावनुन ] १ हैं । २ वह कोण जहाँ पर क्षितिज का तल पृथ्व के अक्ष से वर्णमाला । २ लेख लिपि का ढग । अछटी । ३ सितार कटता हैं । ३ भूमध्यरेखा और किस नियत स्थान बैच पर गीत निकालने या बोल जाने की क्रिया । में याम्योत्तर का पूर्ण झुकाव या अतर । ४ विधी नक्षत्र का अदार्य-- वि० [स०] वर्ण या अक्षर से सव६ को०] ।। क्रानिवृत्त के उत्तर या दक्षिण की भोर का कोणातर । ५ अक्षये--मज्ञा पुं० मि का एक भेद |को०] । कोई स्थान जो अक्षाशो के समानांतर पर स्थित हो । अक्षवती--सच्चा नी० [ स० ] चूत क्रीडा । पामो का खेल [को०]। अक्षाग्र–सवार पुं० [ स०] घुरा या धुरे को सिरा [ क० } । अक्षवाट--सझा पुं० [सं०] १ जुआ खेलने का स्थान । पासे को अक्षाग्रकील---सा स्त्री॰ [ से० ] १ जुए और लट्टे को जोडनेवाली फलक 1 चतगृह । जुखाना।२ वह वस्तु जिसपर पासा खुट। २ पहिए के रोकने के लिये लगाई हुई बूंटी या खेला जाय (को०) । ३ कुश्ती लड़ने की जगह । अखाडा । कील [को॰] । अदावाम--सज्ञा पुं० [सं०] वेईमान जुआर्ड। वह जो छूतकर्म मे । अक्षाग्रकीलक--- संज्ञा पुं॰ [सं०] दे॰ 'अक्षाल' [को॰] । कपट करे [को॰] । अधार'----वि० [ 8 ] झारशून्य । जिसमे धार न हैं। । अक्षार--सुधा पुं० प्राकृतिक लवण या नमक [को०] । अक्षविक्षप—सधा पुं० [ स० अदा+विक्षप] कटाक्ष । अपांग दृष्टि अक्षालवण-संवा पुं॰ [ स०] १२ वह लेवण जिसमें क्षार न हो । [को०] । वह लवण जो ट्टिी से न निकला हो । प्राविद्-- वि० [सं०] [स्त्री० अक्षाधेत्री ] १ जुआ खेलने के ढग विशेष---कोई सेंधा और समुद्री लवण को अक्षार लवण को जाननेवाला । द्यूतकुशल । २ व्यवहारकुशल [को० ] । मानते हैं और प्रतादि में उसव” शाह्य समझते हैं । अवविद्या--सच्चा स्त्री० [ स० ) १ द्यूतकला। २ जुश्री [को०] । २ वह हविय भोजन जिसमे नमक न हो अंदर जो प्रशोच और अक्षवृत्त--सच्ची पुं० [ स० ] राशिचक्र रूपी कोण विहीन क्षेत्र [को०] । यज्ञ में काम आता हो, जैसे- दूध, घी, चावल, तिन, मुंग अक्षावृत्त --वि० १ जुमा खेलने का दी। द्यूतासक्त । २ जुए के जो अादि । | समय घटित [को॰] । अक्षावपन---सी पुं० [सं०] वह फलक जिसपर पासा फेंक) अधाशाला--सा ही० स०] चूतत्र डागृह । जखिाना (को॰] । जाय [को॰] । अशालिक--संज्ञा पुं० [सं०] ज़ाघर का प्रधान अधिकारी [को०] । अक्षावली-सच्चा सौ• [में ] रुद्राक्ष क जपमाला | को०1। । शैशाली--सी पुं० [सं०] दे० ' अक्षशालिक' (को०] । अक्षावाप--संडा पुं० [सं०] १ जुझारी । जुमा वेनवाला । २ ग्राशौडमा पुं० [सं० अक्षाशौण्ड ] ३० ‘अक्षकुशल [को० ] । चतगृह का स्वामी या निरक्षर, । ३ चूत मा निरीक्षण अामूवत--संज्ञा पुं० [सं०]ऋग्वेद के अतर्गत अक्ष या धून सर्वधी करनेवाला सरकारी कर्मचारी | फो०]। ४ श्राप पप फा सूक्त [को० ] '। गणनाध्यक्ष --हिंदु० स०, पृ० १०५ । --- ----