पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१३९

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ग्रंथायवृक्ष अँक्षरसंस्थाने अक्षयवृक्ष--सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'अक्षयवट' । - अक्षरजीवक---संज्ञा पुं० [सं०] लिखकर जीविका कमानेवाला व्यक्ति । अदाया----मजा ली० [रा०] एक पुण्य तिथि [को०]। लेखक । लिपिकार [को०)। अदायिणी--सज्ञा स्त्री० [स०] उमा ! पार्वती [को०] - - अक्षरजीविक---सज्ञा पुं० [सं०] अक्षरजवके । लेखक (को०] । अक्षयिणी--विर स्त्री० क्षय न होने वाली [को०] । अारजीवी--सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अक्षर जीवक' [को०)। अक्षयी--वि० [स०] जिभः1 नांश न हो । अनश्वर [को॰]।' अक्षरज्ञान--सज्ञा पुं० [स०] लिखने और पढ़ने की योग्यता । अक्षरदोध अधाय्य–वि० [स०] १ अक्ष प । अविनाशी । २ सदा बना रहनेवाला। (को०)। समाप्त न होनेवाला। अक्षारतूलिका--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] अक्षर जननी । लेखन [को॰] । अक्षय्यनवमी-- सज्ञा स्त्री० [स० दे० । 'अक्षयनवमी' [को०] । | अक्षारधाम--सज्ञा १० [सं०] १. मोक्ष । निर्वाणि । २ ब्रह्मलोक [क ०] । अक्षय्योदक--संज्ञा पुं० [सं०] श्राद्ध में पिरू दान के अनतर ब्राह्मण के अक्षरन्यास--सज्ञा पुं॰ [सं०] १ लेख । लिखावट । २ सत्र की एक हाथ पर ‘अक्षय्य हो' कहकर छोडा जानेवाला मधु-तिल-युक्त क्रिया जिसमें किसी मंत्र के एक एक अक्षर को पढकर हृदय, जल। नाक, कान, आंख आदि छुते हैं। ३ वर्ण । असर (को०) । अक्षर'--वि० [सं०] १ अच्यत । स्थिर। अविनाशी। नित्य । २. अक्षारपवित--संज्ञा स्त्री॰ [ स० अक्ष-पडित ] पक्ति नामक बदिक क्रियाशून्य [को०]। । । । । । | छद का एक भेद जिसके चार पदों के वणों का योग अक्षार-- संज्ञा पुं० १ अकारादि वर्ण । हेरफ। मनुष्य के मुख से निकली २० देता है। हुई ध्वनि के सूचित करने का संकेत या चिह्न। ' अक्षरपूजक--वि० स० [सं०] पुराण अ दि प्रार्चन धर्म ग्रंथों में लिखी क्रि० प्र०-~-जाना।--जोडना।-टटोलना।—पढ़ना ।--लिखना। व.तों को पूरी तौर से माननेवाला [को॰] । मुहा०—अक्षर घे टना = अक्षर लिखने का अभ्यास करना । अक्षर अक्षरबध--संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का वर्णवृत्त [को०]। | से भेंट न होना = अपढ रहना । मूर्ख रहना। , बिधना के अक्षर अक्षरभूमिका--सज्ञा सी० [सं०] लिखने की वस्तु । पटिया । पाटी = कर्मरेख । भाग । लिखन। । । [को०] । २ श्रोकार । ॐ । उ०—बिन अक्षर कोई न छूटे. अक्षर अगम अक्षरमाला--संज्ञा स्त्री० [सं०] वर्णमाला [को०]। अग,ध ।--कवीर सा०, पृ० ६६ ० । ३ . अात्मा। ४. ब्रह्म । अधारमुख–वि० [सं०] जो अक्षरी का अभ्यास करता हो । अक्षर चैतन्य पुरु५। ५ ।काण । ६ जल । ७ धर्म । ८ तपस्या । सीखनेवाला । । ६ मोक्ष। १० अपामार्ग । चिचहा । ११ शिव (को॰) । अक्षरमुख’----सज्ञा पु० १ शिप्य। छात्र । २, अक्षरों का प्रारभ अर्थात् १२ विष्ण (को० ) । १३ जीव (को०) '१४ परमात्मा 'अ' (को०)। (को०)। १५ खड्ग ( कॉ० ) । १६ स्वर (को०)। चर (को०)। अक्षारमुष्टिका---संज्ञा स्त्री० [सं०] चौसठ कला अक्षरमष्टिका-मञ्च में से एक कला । १७ घाब्द ( क ) । १८ समय का एक परि मुष्टिका के विशेष प्रकार से अक्षरों को जानने की कला । का पाँचवां हिस्सा ( क ) । । । ।।" उँगलियो के सकेत द्वारा भावव्यजनों की पद्धति । उ---'अक्षरे अक्षरक- सज्ञा पु० [सं०] अक्षर । स्वर [को॰] । मुष्टिका देशभाषा ज्ञान दोहृदण' |---वर्ण०, पृ० २० ॥ अधारकर--सज्ञा पृ० स०] एक प्रकार का धार्मिक ध्यान [को०)। अक्षरयोजना --सज्ञा स्त्री० [स०] वण की योजना। अरविन्यास अक्षारक्रम-- संज्ञा पुं० [सं०] अक्षरों का अनुक्रम। वर्णानुक्रम [को०]। अक्षरगणित---संज्ञा पुं० [सं०] बीजगणित [को॰] । अक्षरवजित--वि० [सं०] १. अपढ । निरक्षर । २. परमात्मा का एक अारचचु--संज्ञा पुं० [स० अक्षरचञ्चु साफ और स्पष्ट लिखनेवाला विशेषण [को०]। व्यक्ति 1 सुलेखक [को॰] । अक्षरविन्यास--सज्ञा पुं० [सं०] १ लिपि। लिखावट । २. हिज्जे । अक्षारचट्टी---वि० [सं० अक्षर+ देश० चट्टे = चाटना] अक्षर चार मे घ र्णविन्यास । वर्ण श्रम [को०]।।। वाला । कोरी पढा लिखा । पठित मूर्ख। उ०--‘तब रूपचंद नदो अक्षरवृत्त--सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'वर्णवृत्त' [को॰] । ने अपने मन में विचार, जो यह बात परमानंद सोनी कहा अक्षारयनित--सज्ञा स्त्री० [सं०] अ६/र को स्पष्ट उच्चारण [को०] जाने ? यह तो अदरचट्टा है' ।--दो स वविन०, भा० १, अक्षरश –क्रि० वि० [सं०] अरि अवार। एक 'एक प्रहार । लमज व 1 • पृ० १६० ।। लपज । सपूर्णतया। विलकुल । सबै । उ०--‘उसका कहना अक्षारचण-संज्ञा पु० [सं०] सुलेखकः [को०]। प्रदारश सत्य है ( शब्द०)। अक्षारचन--सज्ञा पु० दे० 'अक्षरचण' [को०]। । । अक्षरशत्रु--सज्ञा पुं॰ [सं०] निरक्षर या मूर्ख व्यक्ति । अनपढ़ और अधारचुच---संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अझरचचु [को॰] । । । जाहिल आदमी ।। अक्षरच्युतक--सज्ञा पुं० [सं०] किसी अक्षर को हटा देने से भिन्न अर्थ अक्षरशत्रु--वि० जिन्हें अक्षर का ज्ञान न हो। निरधार। अक्षर | देनेवाला अक्षरों का एक प्रकार व खेल को०] 1.... - शून्य । उ०—हमारी सर्गत धारणतु अपढ़ ६. त्ति यो वे हाथ अक्षरछदै--सज्ञा पुं० [सं० अक्षर छन्द) बणिक छद। वर्णवृत्त (को०)। में चला गया ।-सपूर्णा० अभि० ग्र० पृ० २३२।। | , अारजननी-संज्ञा स्त्री० [सं०] लेखनी । ,कलम (को०)। । अक्षरसस्थान--सज्ञा पुं० [स०] लिखावट । लिंघन । लि [को॰] ।

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