पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१३६

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अवलं अक्लेद्य अदन काम न देना । (२) घर जाना । अक्ल उडाना = अक्ल तो सठिया गई है"--:( शब्द5 ) । ( १ ) हैरान करना । (२) हस्त करना। अक्ल उलटी विशेष--ऐसा कहते हैं कि साठ वर्ष बाद मनुष्य की वृद्धि होना = ( १ ) मूर्ख या नासमझ हो । ( २ ) कुछ की कुछ जीर्ण या बेकाम हो जाती है। समझना। अक्ल औधी होना = दे० 'अक्न उल्टी होना । अक्ल अवल से दूर होना = समझ या वृद्धि से बाहर हे ना। ‘अक्ल से का अघी = अत्यत मर्छ । अमल को काम न करना= समझ में बाहर होना = दे० 'अक्ल में दूर होना' । न अ न । वर्तव्य-ज्ञान छान्य होना। उ०- मद्दरी, हुजूर अवल यौ०–अवले इसान= मनुष्य की बुद्धि । अक्ले कुल =(१ ) नही काम करती' --फिमानाs, FT० ३, पृ० १ । अक्ल का देवदूत। फरिश्ता । ( २ ) मूर्ख । घामडे ( व्यग्य ) । अक्ले चवकर में आना=(१) घबराना । (२) विस्मित होना। सलीम = संतुलित वृद्धि । सद्बुद्धि । अमले हैवानी= पशुतुल्य अक्ल का चरने जाना = (१) समझ जाती रहना । ( २ ) बुद्धि । पशुवृद्धि। बदहवास होना । अक्ल का चिराग गुल होना = समझ में फर्क अवलमद् - वि० [अ० अषल+ फा० मद] बुद्धिमान् । चतुर । माना । अक्ल का दुश्मन = प्रत्यत मूर्ख । बुद्धिविरोधी काम सयाना । विज्ञ । समझदार। होशियार ।। करनेवाला । अक्ल का पुतला = बहुत बुद्धिमान या ज्ञ। नी । मुहा०—अवलमद की दुम = मूखं ( व्यग्य ) ।।। उ०-- वन, सारी बात यह है कि यह लोग अक्ल के पुतले हैं। अवलमदी--सच्चा स्त्री० [अ० अक्ल + फा०मदी ] बुद्धिमानी । कोई शं दुनिया के पर्दे पर ऐस नहीं जिससे यह वाकिफ न समझदारी । चतुराई । सयानापन । विज्ञता।। हों ।--फिसाना०, भा० ३, पृ० १७ । अक्ल का पूरा = बुद्ध । अवलम- वि० [सं० ] जो थका न हो। अक्लास । उ०--लाज का मूर्ख । ( न्यग्य ) । अक्ल का मारा = वहुत है। मुखं । अक्ल की अाज भूपण, मलम नारी की ।—तुलसी०, पृ० ५० । कोताही = बुद्धिहीनना । मूर्खता । अवलं की मार = बेवकूफी । अवलम’---सझा पुं० दलम् या घंकावट का अभाव [ को०]। अक्ल के घोड़े दौडाना an ( १ ) वहूत सोचना या विचार करना। -- (२) खयाली पुलाव पकाना। अयल के तोते उडना=हण अक्लोत --वि० [सं०] १ ज थका न हो। वलतिरहित। ठिकाने न रहना । घबरा जाना। अक्ल के पीछे लट्ठ लिए भाभी की अक्लत परिचय से प्राय एक सप्ताह बाद मैं ज्वरफिरना = वृद्धि विरोधं काम करना । अक्ल के बखिए उधेडना = मुदत हो गया' ।-• जिप्सी, पृ० ५५३।२। अग्लान', जो मुर अक्ल गंवा देना । अक्ल के होश उड़ना = दे० 'अक्ल के ततै | झाया न हो (को०)। उडदा' । ४०- और मुकाम वुलद इस व दर कि अचल के होश आवलका-सा स्त्री॰ [स] नील का पधा[को०]। उडते है ।---फिसाना०, भा० ३, पृ० ३१३ । अक्ल को | अविलन्न-वि॰ [ सं० ] जो गीला 'या'नम न हो (को०] । 'रोना = नासमझी पर अफस स ६ रना। उ०-- अभेल का तो अविलनबत्नी--सं। पुं० [सं० 1 एक नेतर'गु (जसमें पल दिपक हुस्नअारा रो चुकी' ।--फसाना० म ० ३, पृ० ३२० । जाती है। अक्ल खर्च करना = सोचने समझने की कोशिश करना। प्रवल अलिप्ट-- वि० [सं०] १ विना गलेश वा । कप्टरहित । २ सान। सहज । श्रासन । सरले । सीधा ।३. दिवादरहित । निविवाद गुम होना = ह शवमा जाते रहना। अयल गद्दी मे होना = बेवकूफ या बमअचल होनी । असल छू जाना = थोडी सी समझ (को०) । ४ वलातिरहित । जिसे यव नि न हों (को०)। होना । प्रवल जाती रहना = दे० 'क्ल जाना। अक्ल जाना = अविलप्टकम-वि० [सं०] जो कार्य करते हर न हो, (१) समझ न रहना। (२) घरी जाना । अक्ल टिझाने अविलप्टकारी--वि० [सं०] | जी० अक्लिष्टबारिणी 1 दे० 'अलिप्ट. रहना होगहवास दुरुस्त होना। ३०-- अब मैं, उसकी कर्मा' [को॰] । समझा कि वहन अग्रल ठिपने वि सकी है' |--फिसाना, अविलप्ट वर्ण-- वि० [सं०] जो संदेहास्पद न हो । प्रामाणिक * ० ३, पृ० ३२० | प्रवल ठिकाने न ना= हेश दुरुस्त न | [ को०] रहना । अक्ल ठीक करना = शक्ति या नीति ६ रा नि सी । अविलटव्रत-[ से'] जो व्रत ६ रने में न थके [को०। । गव तं इन। प्रवल दग होना = दे० 'अल हैरान होना' । अबली--विः [अ०] १ पल की । बुद्धिमगत । २. वृद्धि सवधी उ०-- '६गम' अदल देग है। --पिसाना ०, भा० ३, पृ० ५। मुहा०-६ली गद्दा या रद्दा गाना = टव ल से बात करना। अवल देना = सीख देना समझाना बुझना। अयल दौंडाना = सोच विचार करना । जुगत वैठ ना। अगले पर झाड, फेरना == अवलव- वि० [सं०] १ ज न क या नामदं न हो। ३. जों बोयर या यु में द्दिमचाला न हो। ३ १९६। 1 जो झूठा न नासमझी का व्यवहार करना । अक्ल पर पत्थर पडना = निहायत धेअक्ल है। ना । अक्ल पर पर्दा पाना= समझ जाती। हो [ को ]। :: रहना। इ०--पूछा जो उनसे पापको पर्दा, वो क्या हुअा, कहने अनलीव-क्रि० वि निर्भयतापूर्वक [को० ।। लगी कि अप्रल १ मद के पड़ गयी |--कविता को०, भा० ४, अवलेद'--वि० [ से० ] जो अर्द्र या गीला न हो। ३, अलिप्त १० ६४१ । अक्ल भिडाना= दे० 'अक्ल दौडाना'। अक्ल ( ला० ) । ६०-'अरूप अश, वर्णनाभ द में रखने पर भी पूर्ववत मारी जाना = बुद्धि का देकार होना । प्रवल रफूचक्कर होना= अक्लेद रहा ।--प्रबध०, पृ० १६४ । अक्ल व दाम न करना । अक्ल लडाना = दे० 'पल देना । अवलेद-संवा ई० गलपन यो द्विता के अE a [ फो० ॥ मत सठियाना= वद्धि भ्रष्ट हो जाना, जैसे-'इस वुड्ढे फ अफ्लेद्य--वि० [सं० ] जो भिगोया जा सके । मो०]