पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१३४

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अकोपन अक्खरिका अकोपन--वि० पुं० [सं०] [स्त्री० अकोपना] क्रोध से . रहिन ।। गुजान०, पृ० १८ । २. प्राक । मदार । उ०—दहिसी गात अक्रोधी [को० ] ।। कुवरियाँ, थल जाली बलि अफ !--ढोला०, दू० २८६ ।। अकोप्यापणयात्रा--सज्ञा स्त्री० [सं०] सिक्को का चलन । सिक्के के अवक--सला पुं० [सं०] घर का कोना [को०]। | चलने में किसी प्रकार की रुकावट न होना। अक्क--सच्चा स्त्री॰ [स] प्रका (माँ) का सवोधन रूप, जैसे-- अकोविद --वि० दे० 'अकोविद' । ३०---अशे अकोविद अघ अभागी । ‘है अक्क ।' काई विपय मुकुर मन लागी !--मानस, ११११५ । अक्का-सा स्त्री॰ [सं०] माता । म ।। अक्का-सभी स्त्री० [देश॰] वहन [को०]। अकोर--सा पुं० [ मै० क्रोड, प्रा० कोड>हि० अकोर अथवा अक्कास--संज्ञा पुं० [अ० ] चित्रकार । फोटोग्राफर [को॰] । है, अक्रोड, प्रा6 में ककोड, अकोर> हि० अंकोर, अकोर ] अक्कासी१- वि० [अ० 1 चित्रकारी। चित्र उतारना [को० 1।। १ अलिगन । अंकवार। उ०--पान करत कहूँ तप्ति न मानत । अक्कासी-सम्रा सी० ] [ हिं० अफास ] यह हाल जो नीचे झुकी हुई पल कनि देत अकोर |--- सूर०, १० । १७६१ । २ भेट । हो । ३०--अक्कामी अाती हुई देखकर, रामलाल वोले एक नजर । उपहार । ३०---मात्रा प्रान अकोर देकर सतगुरु पूरा । डडे से टेककर |--कुकुर०, पृ० ५५॥ ---कवीर श०, भा० ३, पृ० ३७ | ३ रिश्वत । धूस । अकित्त--सझा स्त्री॰ [ स० अकीति ] अकीति । अपयश । उ०--- उ०-- फूले फिरत दिखावत औरन निडर 'मये दे हँसनि अकोर।। अक्कित राह पच्छे फिरग । चक्र तेग सद्धिय सुबुधि -- ---सूर० ( राघा० ), २१३१ । पृ० रा०, २५॥ ३३५।। रिना--क्रि० स० [हिं० प्रकार से नाम० ! अलिगन करना । अक्किल+---सच्चा सौ० [अ० अक्ल, हिं० अकिल ] } 'अवल' । उ०—-मौन भली कहि कौन सके घन प्रानद जन सु नाक उ०-- मेदीं बिटिया के कुछ प्रक्किल नहीं है । वडी सीधी है । मकोरे । रीझ विलोइए डारति है हिय, मोहति टोहति थारी --दहकत०, पृ० ७६ । प्रकारे ।--घनात द, पृ० ५७ ।। अक्के दुक्के--क्रि० वि० दे० 'इक्के दुषके" ।। अकोरी –सच्चा स्त्री० दे० 'अॅकवरी' । ३०-यहि ते जो नेक लव- अक्ख(1--सझा ली० [सं० अक्ष; प्रा० अवख ] छ । नेन्न । उ:-- धियः । गत सोई जो ममति अकोरी |---सूर० (रधा०), जो कोई मेरे बच्चे को तक्के । उसकी फुटे दोनों अक्के ३३४५ ।। ( शब्द॰) । अकोल(पु–सम्रा पुं० [हिं० अकोर 1 भेट । नजर | उपहार । उ॰—- अक्खड वि० [सं० अक्षर = ने टलनेवाला । इटा रहनेवाली, प्रा० अछे रग मै रग या दह्यो प्रान अकोल --सतवान, भा०१, अक्खड ] १ न मुनेवाला । भडनेवाला किसी का कहना | पृ० १४० ।। न माननेवाला । उग्र । उद्धत | उच्छृखल। २. बिगडैल । झगअकोला--संज्ञा पुं० [सं० श्रोल ] अॅकोल का पेर।। दालू । ३ नि शक । निर्भय। वेडर। उ०--‘यही बनारसी अकोला’- सज्ञा पुं० [सं० अग्न, प्रा० अगर, मकर >हिं० अकोर अथवा गई और अक्खडो की बोली ठोलियाँ उडती' ।—प्रेमघन, सं० कोटि प्रा० कोर> हि० अकोर, अकोला ] *ख के सिरे पर . भा॰ २, पृ० ११४ । ४. असम्य । अशिप्टे। दुश्कील । ५ को पत्ती । अँगारी , अकोला । अगलः । गैडा । बजट । अनगढ । जड मूखं । ६. जिसे कुछ कहने या पारने अकोविद---वि० [रा०] जा जानकार न हो । मूर्ख । अज्ञानी । में संकोच न हो। स्पष्ट वक्ता । खः । अनाडी ।। अक्खड़पन—संज्ञा पुं० [हिं० अक्खड + पन (प्रत्य॰)] १ अक्खड अकोसनाg--क्रि० स० [सं० प्रक्रिोएशन, प्रा० अवक स ] बुरा होने का भाव । अशिष्टता । असभ्यता । दु शीलसी । उच्छभला कहना। गालियाँ देना । कोसना। खलता । २ जडता। उजड्डपन । अनगढपना । ३ उग्रता । अका --संज्ञा पुं० [सं० अर्फ, प्रा० अवह + अ ( वा ) वडाई । उध्दतपन । कलहप्रियता । ४ नि शकत । निर्भयता । (प्रत्य॰)] १ मदार। अाक । २ ललरी । धर्ट । की । स्पष्टवादिता। खेपन । अकौटा-सा पुं० [सं० प्रक्ष, प्रा० अमख, अवक, अ बु अवखना - क्रि० स० [सं० प्रष्टियान, प्रा० अक्खाया, पं० श्राख़ ना] ब्रटन = घूमना ] डड। जिस पर गड री घूमती है । घुरो । पहना । बोलना । उ०-जो उपजे यहि बार मोई प्रभु पापन अकटिल्य--सच्चा पुं० [सं० 1 कुटिलता का अभाव । निष्कपटता । । अखिय--हम्मीर रा०, पृ० ६४ ।। | सिघाई । सरलता ।। अवखर---सज्ञा पुं॰ [ स० अक्षर; प्रा० अक्र ] अक्षर। इरफ । अकोता- सच्चा पुं० [हिं० उकवत ] दे॰ 'उकवत' । वर्ण । उ०—अबखर आवै जाय अखर को ताहि ठिकाना |-- अकौवा--मः पु० [हिं० अकौवा ] 'अफी' । अकौशल -संज्ञा पुं० [सं० 1 कुशलतः यी दक्षता को भाव । अद पलटू० १० ११० । । अवखरिका --सा मी० [स० अक्षरिका ] एक प्रकार की कीट या क्षत [को॰] । अक्क"0- संज्ञा प० [स० अर्व प्र० प्रक] १. सूर्य । रवि । उ०-~ रोल । उ०---‘वौद्धो के 'शील’ प्रथ मे वौद्ध साधुओं के लिये गतिधार धीर वह चली सेन, रज र जित अवर अक ऐन । जिम जिन बातों का निषेध किया गया है, उनमें प्रसारिका । १० नामक खेल भी शामिल है' !--भा० प्रा० लि०, पृ० ४।। 1 == = = 1 । ।