पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१३३

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अकोप अकृश कृपान, प्रलायक जहँ जहैं चितहि डोलाव" |--तुलसी ग्र०, अकेला--सया पुं० निराला । एकति । मृन्य स्थान । निर्जन रूपान; पृ० ५४७ ।। जैसे--‘वह तुम्हें अकेले में प वेगा तो जरूर मारेगा' (शब्द॰) । अकृश- वि० [ स०] कृश रिति । स्वम्य । भरातूरा । ३०-- अकेली--विः स्त्री० १ दे० 'अवे ला-१' । ७०--अवेली भूलि परी जःवन मे पुलकित प्रणय सदृश, यौवन की पहली कति अःश । वन म' हि । —सूर०, १०।११०४।२ केवल । मिर्फ । मात्र । --झरना, पृ० १० । उ०----इद्वि न सहित चित्त ह ले गई ग्ही अकेली हुमही --- अकृशलक्ष्मी--वि० [सं०] प्रभृत लक्ष्मीवाल । समृद्ध। सपन्न । सूर०, १०।२०६६ ।। | वैभवशाली [को॰] । मुहा०—अकेली लकडी भी नहीं जलती = अवै ले कोई भी काम नहीं अकृशलक्ष्मी-.. मझा मी० अत्यधिक समृद्धि या ऐश्वर्य [को॰] । हो सकता। अकृषीवल--वि० [सं०] जो खेतिहर न हो । गैर किस न । फुप केतर । यो०--अकेली कहानी = कि पक्ष की अोर से बि सी ऐसे समय में ही [ का० 1।। गई वान जब उसको काटनेवाला दूसरे पक्ष को कोई न हो । अकृप्ट --वि० म०] १ जो जुता न हो । जे खींचा न गया हो । जो | जोता न गया हो [को० ] ।। एकतरफा वात । एउपक्षीय वार्ता, जैसे- -'अनी बहानी अकृष्ट--सज्ञा पुं॰ वह भूमि जी जोती न जाती हो । परती भूमि गृड से मःठी' (ब्द०) । अकेली दुकेली = दे० 'अकेला दुकेला', [को॰] । जैसे-- कोई वैन। दूकेली मवारी मिले तो वैठा लेना (शब्द॰) अकृष्टपच्य--वि० [स०][ स्त्री० अकृप्टपच्या] विना जती हुई भूमि में अकेली जान = दे० के ना दम' । पैदा होने प्रौर पक जाने वाला। जो बिना ज ते पैदा हो। अकेले---क्रि० वि० [हिं० अकेला ] १ किमी साथी के दिन । उ० -Fसले दो प्रकार की थी, वृष्टपच्य जो खेत से • त्पन्न एकाकी । आप ही अाप । तनहा। उ०~-अदेखें अकेले विते हो, प्रकृष्टपच्य जैसे नीवार आदि जगलं धान्य 1---णिनि ०, दिन & । ए, चार गई चित सो कढि मोऊ |--कुर० प०७ । पृ० २०५ । | २ मात्र । सिर्फ । वेदन, जैसे---'-केले चिटठा रखने में काम अकृष्ट पच्य–वि० [स०] १ ( विशेषत भूमि ) जर विना ज ते हुए। न चलेगा' (शब्द॰) । घान्य, फल आदि पैदा करे । २ अत्यधिक उपज व ल । बहुत यौ०-. अकेले अकेले = अग अग । उ:-- विना समजबद्ध हुए उपजाऊ [को०] । देश की दशा रुघान व 1 घ्य* वे ले में ले १८ य होग' -- अकृष्टरोही--वि० [सं०] अकृट या परत भूमि में रवत उगने या प्रेमघन्० म० २, प० २७१। प्रदेले दम = दे० 'अवै ल दम', प्रकृति होनेवाला [को०] । जमे --'म तो ये दम्, चाटे जहाँ रहे" (शब्द०) । अकेले अकृष्ण १-४० [सं०] १ जा पृरण या काला न हो । श्वेत । सफेद दुकेले = दे० अवेली दुवे ला'। इ० -किंतु जहाँ अकेने दुकेले २ शुद्ध । निर्मल [को०] । । य। थोड़े आदमी क ई नया धध। अभिनयार करते : ' -- मकृष्णर--सश्चः पुं० निष्कलक चाँद [को॰] । भा० इ० रू०, पृ० १०३१ । अकृष्णकर्मा- वि० [सं० ] काली ( पाप ) कर्म न करनेवाला । ' अकेश-वि० [सं०] १ विना नेश वा । केशरहित । २ अल्पकेश । . निर्दोष । निरपराध । निप्प । पुण्यत्मिा [क ०] । | थोडे केशव ला । ३ वरे या अमूद बालों वाला [को॰] । अकेर न--वि० स ० | विन। घरवार का । खान इदंश । बेठिकना । अकेहरा--वि० दे० 'एबहरा' । । अकेतु-वि० [१०] १ जिस क क ई चिह्न न हो । प्राकरिशुन्य । २. अकैतव'-- सच्चा पुं० [सं०] कपट वा अमाव । निष्कपटता । सिधाई । | अपरिचय 1 जिसकी पहचान न हो सके [को०] । अकैतव ---वि० कपट हि । सघ । छलहीन [को० ]।। अकेले--छि ० दे० 'अकेला' । ३० ---रिपु तेर्स अवै ल अपि लघु अकैया--सज्ञा पुं० [म० क्ष = प्रा० अवख, अबफ, हि० अ +4 करि गनिग्न न तोहू !- मानस, १५१७० ।। अकेला'.-fa ० [ स० एफल, प्रा० अयफेल्लय, एफल्लय][ी० अर्व ली] (प्रय०) ] वल्तु ।दने के लिये थैला या टोकरा । खरजी । गान । कज़ावा । जिसके साथ कोई न है। विना साथ का। दुकेले का उलटा । अकोट(G_-वि० [स कोटि कर हो । अमध्य । ०-बाजे तदल एकाको । तनहा, जैसे-'वह अकेला अादमी इतनी चीज , अकोट जझाऊ। चदा कप सब राजा राऊ ।--जायसः कैसे ले जायेगा' (शब्द॰) । उ० –में अकेला, देखता हूँ आ है। ( शब्द० )। मेरे दिवस की साप वेला ।--अणिमा, पृ० २० । अकोट--सह पुं० [सं०] पाँ, पल का वक्ष या सुपारी [को०]। महा०-- अकेला चना फल नहीं फोडता = एकाका या अवेले दर, क्ति अकोढ़ ई-- सः मीर स ० प ठोर = सरल, + ई (हि० प्र . ) द्वारा बड़ा काम न होना । अकेला हंसता केला न रोता- भूमि जो सीने में बहन जल्दी भर जाती हैं। वह भमि जिसमें एकाकी या र न्हा किसी प्रकार दात न बन पडेन।। पानी ठहरा रहता है । ३ अद्वितीय ! यब त । निराला, जैसे--'वह इस हुनर मे अकोतरसौ(५---वि० स० एकोत्तरशत) नौ के ऊपर । एक सा अकेला है ।'--( शन्द्र ) । - एकः । उ०—खंड खाँई जो खडे खडे । बरी अकोत र सौ कह यौ6--अकेला दम = एक ही प्र णी । विलकुल एकाकी । जैसे--- हुडे - जायसी (शब्द॰) । 'हमारा तो माघेला ६ म है, जब तक ज ते हैं खर्च कते है ।'-- अकोतरसौ(५--सझा १० एक स क की सया--१०१ । (शब्द०)। प्रबे ला दु केली = (१) एक या दो । इक्का दुक्का । अकोप-- सच्चा पुं० [सं०] १ कप का प्रेमाव । प्रसन्नता । खः । (२) एकाकी । २ राजा दशरथ के अाट मत्रियों में से एक । । F