पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१३१

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अंकुंठान ७६ अकूहले अकुठाना --[ स० कुण्ठन ] शिथिल होना । सुस्त होना । उ०--का अकुशल--सम्रा पुं० [सं०] १ अमगन । अशुभ। बुराई । अहिछ । सी कहो कहे को भने अग अग अकुठाई |--घरनी० वा०, २ वु शब्द । अपशब्द (को॰) । पृ० ५। | अकुशल--वि० १, जो दक्ष न हो । अनिपुण । अनारी । २ भाग्यअकुताना--क्रि० प्र० दे० 'उकताना' । उ०---पलटू कौनो कछु कहे हीन । अभागा (को॰) । ३ अप्रिय (को०)। | तनिको ना अकुतहिं ।--पलटू०, भा० १, पृ० १२। अकुशलधर्म--सच्चा पुं० [सं०] वौद्ध धर्मानुसार प्राणिया को पाप अकुतोभय--वि० [सं०] जिसे किसी से अथवा कही भय न हो। | करने का भाव ।। निर्भय । निडर [को०]। अकुसेल--वि० दे० 'अकुशल-१' उ०— व या भाँति, चितरनि अकुत्सित--वि० [स०] जो निदित वा निम्न न हो [को० ] । ल लिखिदै मै अकुशल ।-रत्नाकर, भा० १, पृ० ३१ । अकुप्य---भद्मा पुं० [स०] १ जो धातु निम्न श्रेणी की न हो, सोना या अकुसद-वि० (म०] सूद न लेने वाली । नाभ न लेनवाला (को०]। चाँदी । २ कोई भी साधारण धातु, तौवा, पीतल अादि अकुसुम-वि० [सं०] पुष्पहीन । बिना फूल का [को०] । 1 को॰] । अकुह-सझा पु० [सं०] वह व्यदिन जो धोखा नहीं देती । ईमानदार अकुप्यक--सज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'अकुप्य' [ का० ]। व्यक्ति [को॰] । अकुमार-वि० [ सं०] जो कुमार या बालक न हो। वयस्क । अकुहक-वि० [सं०] दे० 'अनुह' [को०] । प्राप्तवय [को॰] । अकूज-वि० [स०] चुप । कृजन रहित । शात [को०] । अकुमार—सुद्धा पुं० इद्र [को॰] । अकूट--वि० [सं०] [स्त्री" अकूटा] १ जो प्राकृतिक हो । प्रकृत्रिम । अकुल-वि० [सं०] १ जिसको कुल में कोई न हो । कुलर हित । दिव्य । अलविकः । २०--इतर को देइ देव मरि गए । परिवारविहीन । उ०---निर्गुन निलज कुवेष के पालो । अकुल सनद अकूट मॅडप महँ भएऊ !--जायस ग्र० ( गुप्त ), १० अगेह दिगब६ व्यान्नी ।--मनिस, १७18 २ बुरे कुल का । २५० । २ जो व्यर्थ न हो अमोघ (शस्त्र) (को०) । ३ जो नी व कुल का । अकुलीन । उ०--अनुल कुलीन होत, पाँवर खोटा या नकली न हो ( सिफा) (को॰) । प्रवीन होत, दिन होत च के अवै चलते छत्र छाया के 1--देव, अक्त--वि० ( स० अ + हिं० फुतना जो कूता न जा सके । जिसकी (शब्द॰) । गिनतः या परिमाण न वदलाया जा सके । बेअदाज । अपरि अकुल’--सहा पुं० १ बरी कुल १ नं च बुल । बुरा खानदान । २. मित । अगणित । उ०--धन्य भूमि, व्रजवासी धनि धनि, परम तत्व | शिव । उ०---प्रकुल शनि पूरी मति होय |-- अानंद करत अकूत 1---सूर०, १०1३६ । प्राण ०, पृ० १८१ ।। अकूपार'--सध पुं० [सं०] १ समृद्र । २ वह कच्छप जो पृथ्वः | अकुलता---सज्ञा स्त्री॰ [सं०] कुल की निम्नता [को० ] । न चे माना जाता है । वही कछु ।३. पत्थर या चट्टान । अकुला--सही स्त्री० [सं०] गिरिजा। पावती [को० ]। ४ सूर्य (को॰) । अकुलात ५ --वि० [सं० झाकुल ] अकुलता से युक्त । व्याकुल । उ---- गज्जि भग्ग प्रथिरज चित्त कयौ अकुलात |--पृ० रा०, | अकुपार--वि० १. अच्छे परिणाम या फल से युक्त । शुभ परिणाम २७1१२७ । वाला (को०) । २ असीम । अपरिमित (को॰) । अकुलाना-- त्रि० प्र० स० आयु लन] १. क्वना । जल्दी करना । , अकूफ---७ सच्चः पृ॰ [अ० फूफ) ज्ञान। वृद्धि । समभ । उ०--तिल उतावला होना। इ०--- (क) चलते हैं, क्यो प्रवु लाते हो । । । में पास केहू नहि जना । कोई अकूफ ही सो पहचानः । (शब्द॰) । (ख) पुनि मुनि मुनि उव सहि अबुलाई। --मान्स, ' सत० दरिया, पृ० ४१ । १ १३५ । २ घडना । च्यवि ल है ना। ६० या वैचन अकूर--सच्चा पु० दे० 'अकुर' । उ०-पुनि य कृर नाही करे। होना । दुखी होना । उ--(क ) अतिसं देखि ६म के ग्लानी । प्रेम हिलूर वरपाशी --सुदर० ग्र०, भा० १, पृ० २४१ । परम सभीत धरा कुलानी |--मानस, ११८३ । ( ख ) इन अकूर्च--वि० [सं०] १ कपट य! घं खा न करनेवालः । अर पटी । दुखिया अँखियन का सुख सिरजाई नहि । देखें वने न देखते २ गजा । खल्वाट। ३. जिसे दाढी नै ह' (को॰] । अनदेखे अकुलाहि ।-विहारी २०, दो ६६३ । ३, बिह्वल अकूर्च-- सच्चा १० बुद्ध [को॰] । होना। मग्न होना। लीन होना।' अवैग में अपना । उ०-- अकुल--वि० [सं० अ + फूल] १ जिस कि नारी या मोर छोर ने दोलि गुरु भसुर समाज सो मिलन चले, जानि वडे माग । हो । ३०-- अकुल पूल बन्ने प्रात, अब तक तो है वह अनुराग अकुलाने हैं ।--तुलसी ग्र०, पृ०, २९६ । । । अती !---लहर, ए० १३ । २ अनत । इसी म । -- स पी में अकूलिनी -वि० सी० [स० अकुलीना ] जी कुलवती न हो। कुलटा। हो गयी अकूल का, भूल गया निज सीमा --अनामिको, व्यभिचारिणी। | पृ.० ६६ । अकुलीन--वि० [स०] १ बुरे कुल का । नीच कुल को। तुच्छ वश में अकूवार--सच्ची पुं० , वि० [सं०] ३० ‘अकूपार' [को॰] । उत्पन्न । कमीना। क्षुद्र । उ०—कोऊ कही कुलटा कुलीन अकु- अकूहल@--वि० [देश॰] घहुत अधिक । असस्य । उ०-~-खेलते लीन कही कोऊ कहाँ रकिनि कलकिनी कुनारो ही।---जमा हँसत करत कौतूहल । जुरे लोग जहें तहाँ अकूहल -- घुरी, पृ० ३१४ । २, धरती से असरद। मपयव (को॰) । (अन्य ) ।