पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१३०

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अकिचनती अंकुटिलती । || ऋकिचनता - सच्चा स्त्री० [म० अकिञ्चनता] १ दरिद्रता। गरीवी । विशेष--इसपर मुहर भी खोदी जाती है। यह बबई, बांदा और निर्धनता । उ०--हरिघ कैसे किचनतो तृनावली- मैं लसति खभात से अता है । इसकी कई विस्मै यमन और बगदाद से हरीतिमा विभूतिवती महती। स क० पृ० ३३१ । २ परि | भी आती है। ग्रह का त्याग जर योग का एक यम है । अकीदत--सज्ञा स्त्री० [अ० अकीदत ] श्रद्धा । शास्था । ७०-- अकिंचनत्व--सज्ञा पुं० [सं० अकिञ्चनत्व] १ निर्धन- । गरीबी २ ‘मनाना ने ऋष्ण से अपनी अकीदत का इजहार किया था।--- अपरिग्रह (जैन) [ को ० ] । । . गादान, १० २५ । । । । अकिचिज्ज्ञ--वि० [सं० अकिञ्चिन] जो कुछ न जानता हो । ज्ञान अकीदतमद--वि[ अ० अकीदत + फा० मद ] श्रद्धावान् । श्रद्धाशुन्य [को॰] । युक्त । श्रद्धालु [ को० ]।। अकचितकर--वि० [सं० प्रकिञ्चित्कर) १ जिसका किया कुछ न हो। अकीदा--संज्ञा पुं० [अ० अकीदह, ] श्रद्धः । विश्वास । उ०--दर्द असमर्थ । २ तुच्छ । अशक्त 1 ३०-- जो अकिंचित कर था वह दिवाने वावरे अलमरून फकीरा। एक अक दा ले रहे ऐसे मन भी अपरूप हो गय।।'--टैगोर०, पृ० २४। घी ---मलूक ० पृ० ४ । अकि --ग्रव्य [हिं० कि) या । अथवा। कि । ३०--(क) पानक शब्द अकीधा--वि० [सं० अकृत ] विना किया हु म । न किया हुआ । विनाशक अकि राघव की धरी तवर है ।--श्री भक्त०, उ० --जिम सिणगार अकीधे मोहति प्र) अ,गमि जाणिये। पृ० ५७६ । (ख) अागि जरा अकि पानी परी अव कैसी करौ प्रिया ।--वेल टू ० २२८ ।। हिय की विधि धीरौं ।--धनानद, पृ० १२७ ।। अकीन--सा पुं० [अ० यकीन) विश्वास । श्रद्धा । उ०--- अकितव--वि० [सं०] १ ज जुम्रारी न हो (को०) 1 - निश्छल ।। अकीन इमान जौहर जाहीर दोजक सवाल ना डारियै रे ।| सरल [को॰] । सं० दरिया, पp ६६ ।। अकिति--पच्चा स्त्री० [4० प्रकीति) अपयश । अति 1 30-म अकीरति सच्चा स्त्री० दे० 'अकीति' । नन 22 mfsf| किन हदढदि वे * fe* --पa Ta, अकीति- या स्त्री० [सं०] अयण । अपयश । वदनामी । ६१५१५६२ ।। अकीतिकर्--वि० [सं०] अकति करनेवाला। अपयश देनेवाला । अकिनG--सच्चा दे० 'यकीन' । ३०--प्रारति वुद अकिन जब वारा। वदनाम करनेवाला । अपयश का भागी बनाने वाला। जिससे सुरति विसुरति गयो सेव भारा |--गुलाल०, पृ० १२६ ।। वदनामी हो। अकिल---सझा जी० दे० 'अक्ल' । उ०--(क) अकिल प्रारसी लै के । अकीति--सा स्त्री० [सं०] दे॰ 'अर्काति' ।। सजनी पिया को रूप निहार हो ।---बीर श०, पृ० १३५ । अकुठ-वि० [ मै० अकुण्ठ ]१ जा कुठिन या गुठला न हो। तेज । चोखा । २ तीव्र । तीक्ष्ण । खरा। उ०.--गएउ गरुड जह (ख) “मियाँ साहब ने उत्तर दिया, भाई वात तो सच हैं, खुदा वसई भुसुही। मति अकुठ हरि भगति अखडीं ।-तुलसी ने हमें भी अकिल दी है' --'भारतेंदु ग्र, भा॰ २, पृ॰ ६७७ । यौ०–अकिल जीरन = बुद्धि का अजीर्ण । बुद्धिहीनता । उ०-- . (शब्द०)। ३. उत्तम । श्रेष्ठ । उ०—जीवत ही वित्रिलोक चूरन खाते लाला लोग, जिनको अविल अजान रोग --- जीवत हो शिवलोक जीधत वैकुंठ लोक जो अकुठ गायो हैं ।--सुदर० प्र०, ४० २, पृ० ६२३ । ४ कार्यः म । शक्तिभारतेंदु ग्र०, मा० २, पृ० ६६३।। शाली (को०)। ५ नवीन । शाश्वत । नित्य ( को०) अकिलदाढ--सज्ञ) स्त्री० [हिं० अकिल + दाढ] बह दी। जो मनुष्यो । • के वयस्क होने पर ३२ दाँतो के अतिरिक्त निकलता है ।। अकुठधिष्ण्य--सा पुं० [सं० अकुण्ठधिष्ण्य ] नित्य निवास । स्वर्ग | [को: । । विशेप--कते हैं इस दाँत के निकराने पर मनुष्य का लरकपन । " : अकृठि---वि० [सं० अकुण्ठ ] दे॰ 'अकुठ'। | जाता रहता है और वह मुमझदार हो जाता है । ) - | अकुठित--वि० [ स० अकुण्ठित ] १ जो कुठित न हो। तेज । उ०-- अकिलवहार--सद्मा मुं० [अ० अकोलकुल वह ] वैजयती का पौधा । परम प्रकृति विरोधिनी सकठता की, कुलिस सी कठिन या दाना कठोरता मैं डाली है ।---रमक०, पृ० ३१३ । २. जिसे टला अकिलवान -वि० [ हि० अकिल+वान ] बुद्धिमान् । अवे नवाला ।। न जा सके। अटल ।। ३०--हैं दानव दल अनमद । उa--सखा दरद को री हरी हरी को दरद खास । दहन खेल खंडन ए । अरि-कुल मदा अलिवान गर्ने गर्न वाल किं दास ।--भिखारी ०, कठ-कुठार प्रकुठित अत धरे ।-- । पारिजात, पृ०- ७ । । भा० २, पृ० '२०७ ।। अकिला--वि० [स्त्री० अक्लिो ] दे॰ 'अकेला १' । उ०—(को०) । अकूचना)---क्रि० प्र० [सं० फुञ्चन] अकुचना कुचित होना । सकुचित अक्लेि चूमत तर अस अवे --नद० ग्र० पृ० १४० । (ख) होना । ३०---काहे कौ' पीय सकुचत हो । अव ऐस जिनि काम अविली वन घन बसि न हेराई ।-नद० ग्र०' पृ० १४० । '... फेरी कहु जो प्रति है। जिय अकुवत हो ।—सूर०, १०।२७३२। अकिल्विप’---वि० [सं०] १ पपशुन्य । निष्पाप । पवित्र । २ निर्मल। अकुटिल-नि० [सं०] १. जो कुटिल या टेढ़ा न हो। सीधा | सरल । । ..", २ साफ दिल का । निष्कपट । निश्छल । भोला भाला। अकिल्विष’--सझा पु० पापशून्य मनुष्य । शुद्ध प्राणी ।" । सीधा साधा। अकीक--सम्रा पुं० [अ०अफीक ] एक प्रकार का प्रायः लाल बहुमूल्य अकुटिलती--सा भी० [सं०] १ कुटिलता का अभाव । सिधाई । २. पत्थर या नगीना। सपिन् । निष्कपटता ।