पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१२९

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अकिंचन। अकाल अकाल--वि• १ जो काला न हो। श्वैत । २ अवसर का । अकाश -सद्मा पु० दे० 'अकीय' । उ०--हरि कर तू गमने महि । । असामयिक [को॰] । माही । मैं प्रकाश हूँ चलीं तहाँही --राममा०, पृ० ८५६ । अकालकुसुम--[सं०] १ विना समय या ऋतु में फूला हुया फून । अकास-- सझा पु० दे० 'आकाश' । उ०—रामचरन अवलवन बिन उ०--'भयदायक खेल के प्रिय वानी । जिमि अकाल के कुसुम परमारय को शास) चाहत वारिद वुद गहि तुलसी चढन भवानी ।- मानस, ३।१८।। झकास ---स० सप्तक, पृ० ४। विशेष—यह दुर्भिक्ष या उपद्रव सूचक समझा जाता है। मुहा०--प्रकाश गहना = अनहोनी या प्रमभव बात करना । उ०-~ २ असमय में किसी वस्तु की प्राप्ति या दिखाई पडनर वातनि गहौ अकास, सुनहि न अवै माँग । बोन) तो कछु न (लाक्ष०) । ३ बेसमय की चीज ।। अवै तातै मौन गहिये [---सुर (राध।०), १२७३ । अनास अकाल कुष्माड--- सम्रा पुं० [सं० अकाल कुष्माण्ड] १ असमय या बेमौ बाँधना= असभव काम करने की कोशिश करना। सम का कुम्हह।। २ वह कुम्हडा जो चलिदान के काम में। अकासकृत--सज्ञा पुं० [सं० प्रकश + कृत ] वि नली ( अनेका० )। आए । ३ बेकार वस्तु । ४ व्यर्थ या निरर्थक जन्म [को॰] । अकासदीया---सा पुं० [स० ऑफ दीपक वह दीपक या लालटेन जो अकाल कूष्मा--संज्ञा पुं० [सं० अकालकूष्माण्ड] दे॰ 'अकाल कुष्मांड' । बाँस के ऊपर प्रकाश में लटकाया जाता है । अकाशदीप । [को॰] । अकालज--वि० [सं०] दे॰ 'अकालजात [को० ]। “अकासनदी -संवा स्त्री० दे० 'प्रकाशनदी' । उ०---उछनै जल उच्च अकालजलद--सज्ञा पुं० [सं०] असामयिक मेघ। असमय के बादल । प्रकास चढ़ जल जार दिसा दिदिमान मर्दै । जनु मिंधु अवास३०-सुखदेव चौबे ने अकालजलद की तरह उसके संयम के नदी अरि कै, वहू भांति मनावत प परिव ।-राम ब०, दिन को मलिन कर दिया था 1---तितली, पृ० १५३ ।। पृ० १०६ । अकालजलदोदय-सझा पुं० [सं०] १ असमय मेवों का छा जाना । अकासनीम--सधा पुं० [सं० श्राफाशनिम्च] एक पेड़ जिसकी पत्तियाँ २ कुहरा [को॰] । बहुत सुंदर होती हैं। उ०—कुहरी झीना अोर महीन, झर झर अकालजात---वि० [सं०] जो नियत समय पर उत्पन्न न हो [ को०)। पडे अकासनीम ।---हरी घास०, १० । अकालज्ञ--वि० [सं०] काल या समय के ज्ञान से रहित । कालज्ञान | अकीसवानीG-सा औ० दे० 'आकाशवाणी' । उ॰—-१९सन विहीन [को॰] । जवह लोग महिपाला । मैं अक्सवानी तेहि काली । . अकालपक्व--वि० [सं०] समय से पूर्व पका हुया [को०] --मानस, १।१७३ ।। • अकालपुरुष- सज्ञा पुं० [ स० अकाल + पुरुप ] परमात्मा। ईश्वर अकासवल-सच्चा भी० [सं० घाफाश + चेरिल अवरलि । अमर* ( सिख )। वेल । अकादौर ।। अकालभृत्--सया पुं० [सं०] स्मृति के अनुसार १५ दासों में से एक। अकासवादी(५ --सी स्त्री० दे० प्रकासवान'। इe----दस हुयी दास बनाने के लिये जिसकी रक्षा दुभक्ष में की गई हो । अकाल सुविहान साहि गौरी मुख किन्न । वर अकासवादी तार में मिला हुआ दास ।। चवकोद सदिलो --१० रा०,२७११२५ । । । , अकालमूत- -सज्ञा स्त्री० [सं०] पुरुष जिसकी स्थापना वाल या समय अकासी-सधा स्त्री॰ [स० प्रकाश] १. चील नामक पक्षी । | में न हो सके । नित्य । अविनाशी । यौ--- धौरी अकासी या सफेद प्रकासी = एक प्रकार की चील जिसे अकालमृत्यु--सज्ञा स्त्री [सं० ] वैसमय की मृत्य । ठीक समय से क्षेमकरी भी कहते हैं। इसका सिर सफेद और शेप सारे अग •हले की मृत्यु ! थाही अवस्था का मरना। अनायस मृत्यु । लाल होते हैं इसका दर्शन शुभ माना गया है। उ०--बएँ असामयिक मृत्यु । उ०-~-अकाल मृत्यु सो मरे । अनेक नर्क मों अकासी धीरी अाई 1-जायसी ( शब्द०)। । । परं ।-रोम च०, पृ० १६६ २ ताड के वृक्ष या फल व रस । ताडी। अकालमेघोदय-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] दे॰ 'कालजलदोदय' [को॰] । ग्रेकाह -वि० दे० 'अकाथ"। उ०—कबहूँ यो वियोग विया को अकालवृद्ध---वि० [सं०] समय से पूर्व वृद्ध होनेवाली [को०]। सहै जउ जोगिन हैं। क अकाह-सी है।--गपुर०, पृ० १० ।। अकालवेला--संज्ञा स्त्री० [सं०] १, उचित या नियत समय का अभाव । मेकिचन-- वि० [स० अकिञ्चन] १ जिसके पास कुछ न हो । निर्धन । - २ बुरा समय [को॰] । धनहीन । दीन । कगाल । दरिद्र । गरीव । मुर्हताज । उ०--देख अकालसह-वि० [सं०] १ जो देर या विलब न सह सके । अधीर । अकिंचन जगत लूटता तेरी छवि माली झाली --कामायनी, १० . २ जो अधिक समय तक अाक्रमण न सह सके [को० ]। ४० । २ अावश्यकता से अधिक धन का समहू न ने बोला । अकानिक---वि० [सं०] असामयिक । विना समय का । बेमौके का। परिग्रहत्यागौ। ३. जिसे भोगने के लिये कुछ कर्म न रह अकाली--सल्ला पुं० [सं० अकाल + ई (प्रत्य०) ] नानकपथी साघु गए हों। कर्मशून्य ।। जो सिर में चक्र के साथ काले रंग की पगडी बाँधे रहते हैं। अकिंचन--सज्ञा पुं० १ “निर्धन । मनुष्य । गरीवादमी। दद्धि अकालोत्पन्न--वि० [सं०] जो समय से पूर्व उत्पन्न हुआ हो [को० ]।। मनुष्य । २. जैन मत के अनुसार परिग्रह का त्याग या ममता • अकाल्य--वि० [सं०] असामयिक । असमय का [को०]। से निवृत्ति जो दस प्रकार के साधु धर्मों में से एक है। ३ बई . अकाव--सा पुं० [स० अर्क, प्रा० अक्क] कि । मदार। वस्तु जिसका कुछ मूल्य न हो (को०) ।। । । | "