पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१२६

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६५ अकस्मात । 7/०]। । अकल्क-वि० [सं०] [स्त्री० प्रकका ] १ बिना तलछट का । शुद्ध । अकस” (५ – सभा पुं० सि० प्रकाश नभ । आकाश । उ सकसे का २. पापरहित । निष्पाप [को॰] ।। जैतवार अकसे का वाई ।--रा० ९०, पृ० ६७ । . अकल्कक -वि० [सं०] ३० प्रकल्कुल' [को०] । | क्रि० प्र०--ठानना ।--दिलाना |--पडना |--माननी --रखना। अकॅल्कन--वि० [सं०] दे० 'अक्कल' [को॰] । यौ०--अकसदीयः । अकसदियता ।। अकल्कन--वि० [सं०] १ विनम्र । सरल । २ अहकारशून्य । दभ अकसना--क्रि० स० [हिं० अकस से नाम०] १ अकस रखना। । रहित । ३, ईमानदार [को॰] । वैर रखन। । शतृता रखना। २ लाँगडट रखना। बराबरी अकएकता--सच्चा स्त्री० [सं॰] ईमानदारी । शुद्धता [को०]। करना । आँट रखना । ३०-साहनि सौं अकसिबो हाथिन को अकल्का-सच्चा स्त्री० [सं०] ज्योत्सना । चांदनी । [को॰] । वकसिबो, राव भाव सिंह जू को सहज सुभाव है।---मतिराम अकल्प-वि० [सं०] १ जो नियम और प्रतिबंध का विषय न हो। | ग्र०, पृ० ४३५।। अनियत्रित । निबंध । २ दुर्बल । कमजोर । ३. जिसकी तुलना अकसमात--क्रि० वि० दे० 'अकस्मात्' । उ०—-(क) अॅसे मै इद्द न की जा सके 1 अतुल्ने य । ४ अयोग्य । अक्षम [को०] । 'मावई अकसमीत हुअ आइ |--पृ० ०, ६।२८ । (ख) जे ।। अकल्पनीय- वि [सं०] जिसकी वल्पना न की जा सके । कल्पना से द्रुम नभ सो बातें करें । ते तरु अकसमात भई परे ।--नद० परे । उ०---वियु ने अलौकिक कलान तै कलित वनि, रेल तार ग्र०, पृ० २७६ । काज़ क्यो अकल्पनीय कृते ।---रसक०, पृ० ३१६ । । अकसर"-- क्रि० वि० [१०] प्राय । वहुधा । अधिकतर। बहूत करके । विशेष करके उ०---बदन पर असर गाते, भौ मिहदी से अकल्पित--नि० [सं०] १ पल्परहित । अकल्पनीय । उ०--वीर गते हैं ।—भारतेन्दु ग्र०, भा० १, पृ० २४६ ।। कुल बाल हूँ न मरिहौं त्रिकाल महि, लेक प्रतिकूल की अकसर +--[ स० एक + सर (प्रत्य॰)] अकेले । बिना किसी को अकल्पित कुचाली को ।--२ सघ ०, पृ० ३२३ । २ प्रकृत्रिम ।। | साथ लिए । तनहा । उ---धनि सो जीव दग्ध इमि सहा । स्वाभाविक (को०) । ३ प्राकृनिक । नैसगिक (को०) । अवसर जरइ न दूमर कहा ।—जायसी (शब्द०) । अकल्मप---त्रि [स] पापरहित । निर्दोष । निर्विकान्। बेऐव ।। अकसर ७ -----वि० १ ला । एक की । उ०--करि पूजा मारीच तब अकल्य--व० [सं०] १ स्वस्छ । रुग्ण । २ सत्य ! सच को०)। सार इछी बात । कवन हेतु मन व्यग्र अति अकमर प्रायहू। अकल्याण--सूझा पुं० [स०] अमगल । अहिन ।। ताते ।—मानस, ३ १८ । अकल्याण-वि ० १ कल्याण रहित । अशुभ । २ असुदर (को०)। अकसरुग्राः-- वि० [हिं० अक्सर ] अकेला। बिना साथ का। अकव--वि० [सं०] १ अवर्णनीय । २ अतुच्छ । ३ प्रवृपण । जो अकसवा-- सझा पुं० [हिं० प्रकास ] दे॰ 'आकाश' । उ०—–ना इव कृपण न हो (को०] । | धरती न पौन अकसवा --कवीर श०, मा० १, पृ० ४७ ।। अकवच-व० [सं०] विना कवच की। केवचरहित [को०)। अकसी----वि० [हिं० अकस] अकस रखनेवाला। वैरी। । अकवन 1--सम्रा पुं० [हिं० आक] आक का पेड । मदार। अकसीर१----संज्ञा स्त्री० [अ० इसीर ] १ वह रस या भस्म जो धातु अकवाम--सज्ञा पुं० [अ० अकवानी कौम का बहुवचन 1 जातियाँ । को सोना या चौदी बना दे । रसायन। कीमिया । उ०—हमसे उ.-.-'दोनो अकवाम मिस्ल शीर व शकर के मिल जाये |-- हो जरो सीम की तदबीर सो क्या खाक ? दुनियाँ में बडी चीज प्रेमघन०, भा० २, ५० ६० ।। है अकसीर सो क्या खाक ।-कविता क०, भा० ४, पृ० ४४ । अकवार+--- साना सी दे० ' अंकार' । उ०--धरमदास से छुटल भव २ - वह अवधि जो प्रत्येक रोग फो नष्ट करे । बहू औषधि ' सागर, सच सों मॅटि अव वार हो ।--घरम० शब्दा०, पृ० ५१। जिसके खाने से मनुष्य कभी बीमार न हो। उ०-अगर अकअकवारि--वि० [स०] दे॰ 'अक्वारी' (को॰] । सीर बिन रोगी दर्द व वढू न जायेगा --संत तुरसी०, पृ० ३३। अकवारी--वि० [सं०] १ निस्वार्थ । स्वार्थ ही न। २ , अकृपण । अकसर’---वि० अध्ययं । अत्यंत गुणकारी । अत्यंत लाभकारी । | जी के जूस न हो । ३ जिसे शतू तुच्छ न समझे । ४ प्रवल अकसरगर--- वि० [हिं० अकसीर+फा० गर] की मिया वन्नेवाला। नुवाला [को०]। | रसायनी [को॰] । अकवि--वि० [स०] जो दुद्धिमान या सुबुद्ध न हो । मूर्ख [को०] । अकस्मात्–त्रि० वि० [स०] १. अचानक । एक्वारगी । यकायक । कस'---सद्मा पुं० [अ० अक्स] १ वैर । अदावत । विरघ । शत्रुता । । | ७०-- सत्व उत्नना चाहते हैं, कुभा में अब स्मात् जल बढ़ जाता , उ6--काम को लोई के देखाइयत अखि मोहि, ए मान है, वे बहते हुए दिख ई देते हैं ।--कद ०, पृ० १०७ । २. अक्स कीबे को प्राप् प्राहि को।--तुलसी ग्र०, पृ० २२२ । स योगवश । दैवयोग से । उ e-महादेवी ! आज मैंने अपने २ लाँग टाँट । होड । स्पर्धा । उ --हानि लाई अनछु उछाहू हृदय छे मार्मिक रहस्य का अकस्मात् उद्घाटन कर दिया है । वाहुवन कहि बदी वोले विरद प्रकस उपजाइकै --तुलसी --स्कद०, पृ० २८ । ग्र०, पृ० ३ १२ । ३ ईष्य । दाह । उ०—मोर मुक् ट की चद्रि- अकस्मात--क्रि० वि० [ स ० अप स्मात् ] १ प्रचोदया । अनायास । कन् यो राजत नंद नद। मन मसि सेखर की अक्स किय एक बारगी । यायके । सहसा । तरक्षण । वैठे बिठाए । सेख र सतबद ।--विहारी र०, दो० ४१६ ॥ अचक । अतर्षित । अनचित्ते में। २ दैवात् । दैवयोग से । सयोगवश । हठात् । अापसे आप ! अकारण।