पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१२३

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अर्कवैकें अकरम अकवक --सच्चा पु० [हिं० अनु० अक + वंक = धसंबद्ध चकना] मिरी ग्र०, मा० 5, पृ० १० ! ४ ग्रिहित । [ क्रि० अकयफोन ] १ निरर्थक चाक । अमक्ष प्रताप । निप्रिय । । अड व ड । अनाप शनाप । ३०----मे मछु अब के बयन अवार---रमा १० [में प्रापर) १ जाने । प्रा फट । नमः । हैं अज हुरि, तैसई जनि ।। मूत्र पाहू को निरसी राशि । । ---- १२ मे १ ज १ र म' ।---भूप जाय 1---केशव ( शव्द०) । २ बवडाइट । चिता । घर का । ग्र०, T० १० ।। खटको । उ०----इद्र जू के प्रवचन, धना ज ६ घमापक, अवरकर---स ० ( १० ग्राम पम ] ए । । शम ज़ के सवपक, केसोदाम को कई । जय जय मृगया अपि । ६ दत्त ॥ जग्नि में इन इन्।ि । इ उद्ध लोक को राम के कुमार चढे, व तच गोलाहन होत पुट श्री रामपि अंध है। -गग पुर में गुरु मान। लोक है !--केशव (शब्द॰) । ३ हो वश । छ7को ? - ८ । १।। म ने हैन३ । । पजा । अबकी बाकी । चतुराई । सुध । उ०---सत्र पर होत । पर्या -- प्र नम् । । परजासन परम दीन, ऋचव के मूनि जान गईन सीन है - अकरन-रखा १० | 4: शार्ग } १० 'प्रादा । ३०० चरणवद्रिका (शब्द॰) । निया 27 मन म पनी धु ३ ४ र । दृढ fठ दर अकवक-वि० [सं० अवाक् “वरका । चकित । निम्तव्ध, जैसे-- वाले रवि तेज ज ज ।--- 1, १० १, | "यह वृत्तात मुन वह अनाव रह गधा' (श-द॰) । अकवकाना--क्रि० प्र० [हिं० अफवदा से नाम ० १ धकिन होना । अकरना-५ कि० म ० [ f२० प्रश्न १ नम० } {चना मचा है न । घरन् । उ०—-() मरतकात तन, घया- अगरी र]। सानः । ३ । धकीत उर, असे बात 5व ठ है । सूर उपेग मुत बोलत नाही अकरग'--पु० [३०] १. में 7 7 * 'n : " होना । अति दिदै लै गाढे ।--सू' ( शन्द०) । (त्र) 'मेमरी - में 7 फम रहिन हन । में : अभय। बवा गई, कन सी ऐसे वात वम मुह में निपल, जिनसे विप--- * *न। र ३ 7 दि " जा पर बीसी के जी को प्राघात पहुँच है।--नई पौध, पृ० ६६ । फिर में सपा व दिशा frt हु में भगवान ११ *ते हैं। अकवत---सफ श्री० दे० 'प्राकउत' । उ०—-अव वति अलह सी जानि और इन रु २ नही । । सुक सो बोलना -गुलाल ९, पृ० ६२ । ३ ६ २fन । दर। परम) मा । अकवर१--वि० [अ०] श्रेष्ठतम [को॰] । प्रकरण---fa० १. न करने में । 5 । ३. इ स को अकवर--सभा पुं० मुगल सम्राट् अव व जिसने भारत में १५५५ अकरण ५--वि[ में प्रारम | विना करे । अपराग ई० से १६०५ ई० तक शासन किया । म्यद । अकवरी-सृश, झी० [१० अश्वर-+ फ० ई० (प्रत्य०}} १ एयः अकरणि-ग' भी० [सं०] १ नंदिर । मम । पर। फलाहारी मिठाई । तैपुर अर थाली अरुई की के साथ २ अक्रोश वि । इए [ को० ] । फेंटनर उमकी टिकिया बनाव र, घी में तल २ चमनी में रणयि-- वि० [सं० ] न करने योग्य । न मरने नाप । ने पाग देते है । कहीं कहीं इसे चाटे से भी बनाया जाता है । | अयय ।। २ एक प्रकार की लव डी पर की कशि जिमया व्यवहार अकरन'G-वि० [सं० फरिण 1 दिनों में दिए । बैसवय । ३०-- पज ब में बहुत है । हारनपुर के परिपनों में भी इमरा फर गुटार मैं अन कोही ! आगे अपराधं। गुरुद्राही ।-- चलन है । तुलसे ( माइ० ) । अकवरी--वि० अप वर मधी । अकरन --वि० [सं० - फर = पर्म ] न बने यं । जिसकी यौ०--अकवरी अग्रफी = सोने का एक पुराना सिक्का जिसका। परन्। यठिन यो असभव हो । ३०---दयानिधि तेरो नति खि मुल्य पहले १६ रुपए था, पर अव २५ रपए हो गया है । न पूरै । धर्म अधर्म अधर्म, धर्म र अर रन रन करे - | अकबरी मौहर =१ एकाक्ष व्यक्ति । एक ख का अादमी । सूर०, ११०४ । २ अकवरो असरफ । अकरता -क्रि० अ० दे० ' असे ना' । ३०-भियावाद मापजस अकवार---सज्ञा पुं० दे० 'अख़वार' । उ०—-घालदेव भी अकवार सुनि सुनि मूहि परि अरती ।--सूर०, १०।२०३ ।। | पढता है' ।--में ० ०, पृ० २५४ । अकरनीय७---वि० दे० 'मवरणीय' । । अकवाल--संज्ञा पुं० दे० 'इकवाल' । अकरव--सा पुं० [अ० अफरय } १ घाई। जिसके मुंह पर अकर--वि० [सं०] १ हस्तरहिन । घिना हाथ को । उ---अकर सफेद ए होते हैं । अर उन सफेद रो के बीच बीच में दूसरे कहावत धनुख घरे देखियत परम कृपाल १ कृपान कर पति रग के भी रोएँ होते हैं । यह घोडा ऐवै समझा जाता है । है |-केशव ग्र०, 'म) ० १, १० १५१ । २ विना कर या । २ विच्छ (को०) । ३ वृश्चिक राशि (को०)। महसून का । जिसका महसूल ने लगता हो । ३. दुष्कर । न अकरम --से। पुं० दे० ' अकम १' । उ०—अकरम करम करे करने योग्य । कठिन । विकट । उ०---भारथ अकरे करतूतन मन अपह पीछे जिव दुख पावै ।--कवीर श०, भा॰ १, निहारि लही, या घनस्याम लाल होते बाजमाये री । पु० २६ । फर " १

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