पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१२२

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अर्कड़ना ६१ अंकपट - || अकडना’---क्रि० अ० [देश॰] १ शैखी करना । घमड दिखाना । अकथनीय–वि० [सं०] न कहे जाने योग्य । जो वाहने मे * ॥ अभिमान करना, जैसे-वह इतने ही में प्रवडा जाता है। | मके । अनिर्वचनी । अवर्णनीय, । बर्णन के बाहर । जिसका ( याद० ) । २ ढिठाई करना । ३ है करना । जिद दर्णन न हो सके । उ०—एहि बिधि दुखित प्रजेसवुमारी । करना । अहेना । जैसे---सब जगह अकडना ठीक कनीय दस्त दुव भार --मानम, २।६० ।। नहीं, दूसरे की बात भी माननी चाहिए ( शब्द०)। अकथह----माझा पुं० [सं०] १. 'अवार्डम' [को० ] । ४ फिर पडनी । मिजाज व लना । चिटकन जैसे--तुम तो अकथहq--वि० ३० अकथ' । उ०---नानक गुर मिन अकयह क य । जरा सी बात पर अकड़ जाते है ( शब्द० ) । -प्राण ०, पृ० ५३ । ' अकडफा--वि० [हिं० अकड +फो= फफकारना ऐठ श्रीर अभिमान अकथित--वि० [सं०] जो न वहा गया हो । से भरा हुअा [को॰] । अकथ्थ---वि० दे० 'अकथ' । उ०---बाल बच पुन आल्ह सी प्रानंद अकडवाई-सज्ञा स्त्री० [हिं० अकड + बाई = वाय] शरीर की नसो कियद अकथ्य 1--१० स०, पृ० १३६ । । |'को पीडा के सहित एक्वारगी विवेना । ऐंठन । कुडल । । अकथ्य-वि० [सं०]न वहन योग्य । अवर्णनीय अनिर्वचनीय । अकडवाज--वि० [हिं० अकड +फा बाज = वाला ] अकड़ दिखने अकद-सया पुं० [अ० अक्द ] इकरार। प्रतिज्ञा। बाद । वाला। अपने को लगानेवाला । नोक झोकवाला । ऐंठदार। अकन-क्रि० वि० दे० 'कदन'। शेखीबाज । अभिमानी । अकदन--वि० [सं० अ + कदन] विन या रहित । उ०—-कदन विदन अकडबाजी--मुन्ना स्त्री० [हिं० अकड +फा बाजी ] अकडने की • - अदन तुदा गहन त्र जद वले शाहि । दुख उनि ६ अब जानि दे प्रवृत्ति। ऐंठ । अभिमान । शेखो । कत वैठी अनजाहि ।- नदद स ( शब्द० ) । अकड़ा-सा पुं० [सं० * अफाण्डके या हिं० अरुद्ध | चौपयो अकद्वदी---सा स्त्री० [अ० प्रयद+फा बवी ) बरारनामा । का एक छूनवाला रोग । प्रतिज्ञ पत्र । विशेप-जब चौराए तराई की धरती में बहुत दिनो तक चरकर अकधक --सझा पु० [ देश अनु० ] अशक । भाग। पी । सहसा किसी जोरदार धरती की घ से पा जाते हैं तब यह सोच विचार । भय । डर । उ०--ā के लोभी दो मारी उन्हें हो जाती है । लेन बस, छवि मुकुनाह न लंन । कूदत रूप समुद्र में अकधक अकड़ा--वि० [हिं० अकड ] अकड मे भरा । ऐंठ भरा। उ०— करत न नैन ।--रतन०, दो० ४५२ । । । हिंसा गवन्नत हारों में ये अकडे अण टहल रहे ।---कामायनी, अकतना+--क्रि स० [ स० प्रकिर्णन प्रा० आकगण ] १ सुनना । पृ० २६६ । फर्णगोचर करना । उ० पुरजन बत अकनि चराता । अकड़ाव---मझा पुं० [हिं० अफ इ + श्राव ( प्रत्य० ) ] ऐंठन । । मुदित सव ल पुलकावलि गाता ।--मानस १३ ४४। २ हिट बिचाव । लेना। उ० --नगर स र भने नत सुनत अति रुच उपजावत । अकड़ --वि० [हिं० अफ + ॐ (प्रत्य॰)] अकड़बाज । अर्ड दिखाने —सूर ( राधा० ). २५६१ । ३ वान लगाकर सुनना । वालों । चुपचाप सुन । उ०--ग्रालस गात जानि मनमोहन बैठे छाँह अकडे त--वि० [हिं० अकड + ऐत । (प्रत्य० }] अकुडवाज । . : - करत सुख चैन । अवनि रहत यहूँ सुनत नही कछु नहि गो अकड। रमन बालक वैन |--सूर (ब्द०) । अकेत १--वि० [सं० अक्षत, प्रा० अप० अखत अथव। स० अकृत, १० अक" अकना१1--क्रि अ० [सं० या देश० ] श्वनी । उकताना। घबराना। | अकत्त, हि० अकत ] समग्र । समूचा । अख।। सारा । । उ०—-दौड दंड आने से जुअरत के अकोमत क्यों करे। उस अकत’- क्रि० वि० विलकुल । मरामर ।। - दिचारे की तबियत तुम पे है अाई हुई !--जुअरत (पाद) । अकती--सच्चा स्त्री० दे० ' अखती' । उ०--प्रकती को तीज तजबीज के अकना-सा पुं० [सं० अरण] ज्वार की बहू वान जिसके दाने महेली ज़'--ठाकुर (शब्द॰) । ' निकाल लिये गए हो। अन्त्य है--वि० स० अफत्स्य, प्रा० अफत्य ] जो कहा न जा सके। अकनिष्ठ'--वि० [सं०] १ जो कनिष्ठ न हो। कनिष्ठ भिन्न। २. 'न कहने योग्य । अकथनीय । उ०—-मसि नैना लिखनी वरुनि जिससे कोई कनिष्ठ नै हो। सबसे छोटा [को०]। रोई रोई लिखा कत्थ'|--जायसी (शब्द०)। । । । । अकनिष्ठ-सा q० १ गतम बुद्ध का एक नाम । २ बौद्ध देवगणो अकथन--वि० [सं०] जो डीग न हाँके । अविवत्थन [ को०]। , को एक वर्ग [को॰] । अकथ--वि० [सं० प्रफथ्य, प्रा० अकत्य] जो कहा न जा सके। कहने अकनिष्ठग---समा १० [सं०] बुद्ध [ को ० ]। की समय के बाहर । अकथनीय । अवर्णनीय । अनिर्वचनीय । अकन्या-पया स्त्री॰ [३] वह कन्या जो कुमारी न हो [को०]। उ०--नाम रूप दुई ईस उपाधी । अकथ अनादि सुसामूझि अकपट--वि० [सं०] कपट से रहित । निष्कपट । उ०--हरी डाल के साघी -मनिस, १२१ । सुखद हिडोले में परिवर्धित होर, जो अकपट विकसित भाव यौ--अकय कथा; अकथ कहानी = अनिर्वचनीय प्रा०पान । | दिखाधी मैं कैसी मानदमयी --प्रेम०, १०७ ।