पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१२०

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  • अर्जत

। । अन् अ----उप० सा र विशेषण शब्दों के पहले लगकर यह उनकै अर्को अध+--वि० दे० 'अधा' । उर --फिर को फूलै फूलै फूलै । जब में में फेरफार करना है । जिस शब्द के पहले यह लगाया जाता मास अउध मुख होते सो दिन काहे भूले ।- वीर वी०, हैं उस शब्द के अर्थ का प्राय अमबि सूचित करता है, जैसे, पृ० ५४। । अकमं, अन्याय, अचल । कही। कहें। यह अक्षर शब्द के अर्थ अउरा --संज्ञा पुं० दे० 'श्रीरा'। उ०—कोइ उ । कोइ राइ को दूपित भी करता है जै--- मागा, अकाल, दिन । । करउँदा ।—पदुमा०, १० ८५ । स्वर से प्रारंभ होने वाले श‘दो के पहले जब इस अक्षर को अउ.--सयो० अव्य ० [सं० अपर या प्रवर] श्रीर। तथा । उ०—लगाना होता है तब उसे 'अन' कर देते हैं, जैसे, अनत, अनेक जस हुथ्य 'मुगृति अउ मुकुति दोउ कहि नरहरि नित समरिय । अनवर । पर हिंदी में कभी कभी व्यजन के पहले भी 'प्रन्। --अक्व ० , पृ० १७४ } के 'न' को सस्वर 'न' करके 'अन' लगा देते हैं। जैसे, अनवन, अउ--- -सर्व १ः वह । उ०—- सारीख जेडी आ जुडी नारी प्रेउ अनरीति, अनहोनी अादि । ।। । नाह।--ढोला०, ८० ६ } २ यह । उ०--राजा राणी हूँ सस्कृत वैयाकरणो ने इम निषेधसूचक उपसर्ग का प्रयोग :- कहुइ कोजइ अउ वीमहि ।---ढोला०, दू० ६।। इन छह अर्थों में माना है (१) सादृश्य, यथा--प्राह्मण= अउख9 --सञ्ज्ञा पुं० दे० 'अपघ' । स–अॅसा अखतु स्वाह ब्राह्मण के ममान श्रीचौर रखने वाला अन्य वर्ण का मनुष्य । गवाँरा । जितु खाधे तेरे जाँहि विकारा |--प्राण०, पृ० २७४ । (२) अभाव, यथा---प्रफल= फन्नरहित, अगुण= गुणरहित । अरगाह(५ --- सुधा पुं० १० अवगाह' । उ०----तैयन् हि जानउँ नीअरे (३) अन्यत्व , यथा--, घट = घट से भिन्न, पर्ट प्रादि । (४) । । । कर पहुँचत अउगाह ।--पदुमा, पृ० ५४।। अल्पता, यथा--अन्दर कन्य= कृशोदरी कन्या । (५) । अउगुण-- सच्चा पुं० दे० 'अवगुण । उ०—मजण मिल्या मण अप्राशस्त्य । बुरा, यथा- भाग। धन = बुर घने । (६) ऊमग्य, अउगुण सहि गलियाह ।--ढोला०, ६० ५६० । विरोध, यथा- अधर्म = घर्म के विरुद्ध आचरण । अन्याय, अउ झक ७ +---क्रि० वि०, दे० 'अझक' । उ०• मारू दीठी अउझक इ अादि । हिंदी में इसकी प्रयोग सुE लाग स्वथिक रूप में भी । जाणि खिवी घण सझ |--ढोल(०, ६० ८६ । मानते हैं, जैसे अलाप= लोप । अउठा---संश पुं० [देश॰] नापने की दो हाथ की एक लकड़ी जिसे अ---सा • [सं०] १. विष्णु । २ शिव (को०) । ३ ग्रह्मा ।। ।। जुलाहे लिए रहते हैं। ४ विराट। ५ इद्र । ६ वायु । ७ कुवेर। ६ अग्नि। । अउत --वि० दे० 'अऊत' । उ०-नानक लेखें मांगी अउत जणेदी विश्व । १० सरस्वत । ११ अमृत । १२ कति । १३ ललाट। । जाय।---प्राण०, पृ० २१६ । । । १४ प्रणव (को०) । १५ यम (को०) । १६ प्राण (को०)। अउत७ --वि० [सं० अयुक्त ] अनुचित । अयुक्त । ३०--अउत अ--वि० १ रक्षक । २ उत्पन्न करनेवाला । होइ घरि छोड है यि --वी० रा०, पृ० ४९।। अइG)---सर्व० [सं० एतत् , अप० एइ, ए ] ये । उ०---करि कहर अउधान --सझा पुं० [सं० अवधान] गमधान । गर्भस्थिति । ही पारण अइ दिन यू हैं। ठेनि [--ढला०, दहा०, ४३० ।। अउधू01,अउधूत --सी पुं० दे० अवधूत' । अइयपन+--सज्ञा पुं० [देश॰] दे॰ 'ऐपन । उ०--पउ अनलि अउपन(+--संक्षा पुं॰ [ प्रा० भोप्पा],सान पर घिसना । मान देना। | अइययन भल मैल |--विद्यापति, पृ० २२१ । अउर(५ ---- य० दे० र । उ-मकरध्वज वाहणि चढची अइया-सवा स्त्री० दे० 'ऐया' । । अहिमकर उत्तर वाउ वाए अउर।--वेलि०, ८० २२२ । अइल--संज्ञा पुं॰ [देश॰] दे॰ 'अइला' ।। अउरउt,अउG--क्रि० वि० [सं० अपर+अपि ] श्रीर भी । अइला--सभा पुं० [देश०] चूल्हे का मुँह या छेद । अउलग 1---सच्चा पुं० [सं० अपीलग प्रा० अवलम्ग,अप०अउलग] अइस(५ +--वि० [सं० *दृश, प्रप० अइस] ऐसा । इस प्रकार का । प्रवास | दूर गमन । इसइ -क्रि० वि० [सं० ईंशो हिं, ऐसे ही । इस प्रकरि है। । अउलगना +---क्रि० स० [ अलग से नाम० 1 प्रवास करना। अइसन+---वि० [सं० ईदृश्, अप० अइस] ऐसा 1 इस प्रकार का । यात्रा करना । उ०---ईहर की घर अउलगडे, इतू बाइ सु अइसनाG - वि० [ अप० अइश ] दे० 'अइसन' । उ॰--अइसना जहि ।---ढेला०, इ० २२४।। देह गेह ना सोहावये --विद्यापति, पृ० ११० । अउहेर+,अउहरी:--सझा स्त्री० [सं० अवहेला ] अवहेलना । अपमान । अईसा--वि० दे० 'ऐसा ।। अउहेरना--क्रि० स० [हिं० अवहेर से नामधातु ] अपमान करना। भइसिउG---वि० [सं० ईदशी अपि ] ऐसी भी । इस प्रकार का भी तिरस्यार करना ।। अहद -वि० [ अप०] [सं० ईवश ऐसा । इस प्रकार का । अऊत'५ -- वि० [सं० अपुत्र, प्रा. पुरी, उत्त] निपता । दिना । उ०—-मृगरिपु कटि सुदर वणी, मारू अइह घाट ---४ाला, पुत्र को । नि सतान।' ३०--(प, घन्य सी माता मदरी, जिन जायाँ वैष्णव पुते । रमि सुमिरि निर्भय या, और सब गया अईगई -वि० [हिं० अई-+गई] दे० 'प्राई गई । अत ।।—कवर (शब्द॰) । (ख) गये हुये मांगन को पूत । यह फल दीनी सती प्रत । --अर्घp, १० ६ ।। । मुहा०—अई गई करना = "भाई गई करना' । उ०—चित मान की 'मान ही चहुँ १ हित जान भई गई कीजतु हैं । कुर'०, पृ०३ । अऊत ---सधा १० अपुत्रत्व । निपुत्रता। इ००-यह ताका निस्तारि जनते ६ अर्कत !--सुदर अ०,,भा १, पृ० १८३ ।