पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/११९

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अँध्यारी ३ अँहुडी । पृ०७४।। अँध्यारी’-च० अंधकारयुक्त। अंधेरी। उ०—-माद की अंधेराति अँवधाना--क्रि० स० [७ अॅवधा से नाम०] धो करन । उलटा अँध्यारी --सूर०, १०।११।। | करना। उ०--- मुरत मनौज देखि कै हारा । निज अवधाय सो अँव--सझा पुं० | ले० अम्रि, प्रा० अब ] ग्राम । उa---तही सु अव - रत्यौ नगारा ।--हिं० प्रेमा०, पृ० २५५ । । । तर रिप्प इक क्रम तम अंग सुरंग ।--१० रा०, ६।१७। । अँवरा- संज्ञा पुं० दे० 'अविला'। उ:--कोई अंदरा कोई वेर अॅवराई+--- सच्चा स्त्री० [सं० आम्र = अम+राजी ==qक्ति प्रा० अर्ब + । करौदा ।---जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० २४७ ।। राई] ग्राम का बगीचा । श्रम के वारी ।। । । अँवराईf---सच्चा स्त्री० दे० 'ब्रेवराई' । उ०—सत सभा चहुँ दिसि अॅवराउ पु-सक्षा d० दे० 'वाई' । उ०-घन अँबराउँ लाग चहूं अंर्वराई --मानस, १॥३७ । । पासा।—जायसी ग्र० ( गुप्त), पृ० २७ । । अॅवलउँ--वि० [सं० प्रा० प्रबल ] ग्रस्वस्थ । व्यथित। उ०--सज्जण अँवराव--सज्ञा पुं० दे० 'अॅवराई' । उ०——यस अँमराव सधन बन, चाल्या हे सखी पडहउ वाज्यउ द्रग । कोही ली बधामणी, वरन ने पारौं अतं !-—जायसी (शब्द॰) । ' कांही अॅवलउ अग।--ढोला, दू० ३५१ । अॅवली--संक्षा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की गुजराती कपास जो अँवला--सच्चा पुं० दे० 'प्रवला । ढोलेरा नामक स्थान में होती हैं। । । अवल-सुझा स्त्री० [सं० मिलफी, प्रा० आमलई] छ टा अबला । अँववा+--सच्ची पुं० [सं० प्रोग्र, प्रा० अव हिं० अॅव +वा (प्रत्यं०) ] उ०--पक गये सुनहले मधुर वेर, अंवला से तरु की डाल | अम् । प्रस्न। उ०--यहाँ अववा तरे रुक एक पल विश्राम जडी-- ग्राम्या, पृ० ३६।। लेना ।--3डा०, पृ० १६ । । अँवली-- वि० [ 7 ] उलटा। उ०--नगन लगी जव और अँव--सज्ञा पुं० दे० 'वा' । उ०-- ब्रज करि अँवा जग ईंधन प्रीत छी, अव कुछ वली रीति ।---सत० सार०, भा॰ २, घरि सुरति अगि सुलगाए ।--सूर०, १०1३७८१ ।। अंवाडा--सुज्ञा पुं० दे० 'आमडा'। अॅवहलदी--सः स्त्री० दे० प्रामा हल्दी । ९-आलूची अमिली अँवारी----सबा स्त्री० [अ० अमारी ] दे॰ 'अबारी--१'। उ०---- अवलदी, अलि अविरा लि अफलदी।-- सुजान०, १० १९६१ | कलित करिवन्हि परी अंबारी ।—मानस, १३०० । । अॅवा-- ---सल्ला १० दे० 'अव । उ०--अंवा अगिनि जिमि अतर अॅविया--संज्ञा स्त्री० [सं० आम्र, प्रा०' अद+इया (प्रयं०)] अम (9.11 प्राम ' जरै ।-नद० ग्र०, पृ. १३३ । को छोटा कच्चा फल जिसमे जाली न पडी हो । टिक । अँवारनाg --क्रि० सं० [हिं० दारना]: न्योछावर करना । वरना । केरी। अमिया ।। ३०--अ य रामियो शरण तुम्हारी । पल पल ऊपर प्राण विशेष---इसकी खटाई कुछ हल्की हती है। इसे लोग दाल मे अंवारी 1--:म० घर्म०, पृ० ३२२ । डालते तथा चटनी अंदर अचार भी बनाते हैं।' अॅविरथा-- t--वि० दे० 'अव था। उ०--उघर न नैन तुमहिं अॅविरती--सज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अमृतिका, प्रा० अमिरितिझा ] तार को विनु देखे। सबहि अविरया मोरे लेखे ।-—जायसी प्र०, | एक पुराना बाजा। अमृत कुली । उ०---वीन पिनाक कुमाईचं' पृ० ३५७ ।। वही । बाज अविरती अति गहगही ।--पदमावत, १० ५६२ । ---सज्ञा पुं० [सं० अस ] स्कंध । कधा । उ6--वाम भजह सखी अँविरथाG --वि० [सं० वृथा + (उच्चा० ) ॐ बिरया ] . | असे दीन्हें, इच्छिन कर दूम इरियां :--सूर०, १०,४७० वृथा । व्यर्थ । वेफायदा। फजूल। उ०---प्रेम कि अगि | अंसुGि :--सच्चा पुं० [सं० अश्रु, प्रा० असु, असुय ] असू। अश्रु । जरे जो कोई । ताकर दुख न अँविरथा होई !-—जायसी ! । उ०—-तन काँप लोचन भरे अँसु झलके मयि |----इयामी०, १० १२८ ।। ( व्दि०)। अंविलि(G)-- सच्चा स्त्री० [सं० अम्लिका, प्रा० अविलिया ] इमली का असुपात---संज्ञा पुं० [सं० अधुपति सुशो की वे तार । आसू की | वृक्ष । उ०-कोइ अॅविलि कोई महुव खं जूरी --जायसी ग्र० पक्ति या पति । उ०--इतनी सुन्तं सिमिटि सव अाये, प्रेम सहित धारे सुपात !--सूर०, ६३८ । ( गुप्न ), पृ० २४७ । अँवृG-सा पुं० [हिं० अव+उदा ! त्य० )] अन्न ४ । असवाएं *--सद्मा पुं० दे० 'सा'। इ०--यह छवि निरखि ही नैदानी असुवा ढरि ढरि परत करोटनि }--सूर०, १०/१८७॥ | अम् । उ०—-मरे अॅवा अरु द्रुम वेली मधुकर परिमल भूले । । —सूर ( राधा०),२३६१ । वाना--क्रि० स० । हि० असू से नाम०] अश्रुपूर्ण होना। अँभौरी--सच्चा सौ० दे० 'अम्हौरी' ।। १ । वडवा अना। आँसू से भर जाना। उ०---उनही दिन ज्यो जलहीन हूँ मीन सी अखि मेरी, असुवानी रहे।--रसखान अॅमर---सक्षा पुं० दे० 'अबर--६' । उ॰---दाहिने अतर और अमर : ( शब्द । तमोर लीन्हें । सामुहे लपेटें लजि भोजन के थार गएँ !-- अॅहड़ा+--सधा पुं० [ ६० ] तलने का बटखरा । भिखारी० ग्र०, भा० १; पृ० १६८ । अॅहस--सी पुं० [सं० अहस् 1 दे० 'अह' ।। अॅवदाएं---+विः --[सं० अवाघ, ७अॅवघा] १ नीचे की ओर मुंह- अँहुडी--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक लता जिसमे छोटी छोटी गोल पेटे को । बाला । उ०—-शाकाशे अवदा कुआ पाताले पनिहार ।कबीर फलियाँ लगती हैं। इन फलियो की तरकारी बनती है। ( शब्द० ) । २ अधिा। उलटा 1, • । । । और इनके वीज देया में पडते है । याकला।