पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/११८

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अँधियारी अँध्यारी | | । मनहूस ।उ ----वीर कीर, सिय राम लखन विनु लागत जंग । । मुहा०:--अंधेरे घर की उजाला = (१) अत्यत कातिमान । || अधिवारो।—तुलस ग्र०, भा॰ २, पृ० ३५५।। अत्यत सुदर। ( २ ) शुभ लक्षणवाला । सुलक्षण । कुलदीपक । अँधियारी'+----छा स्त्री० [हिं० अँधियार] १, अधकार। उ०— वश की मर्यादा वढानेवाला । ( ३) इकलौता बेटा । अँधेरे घर जब करि यक्य सरल नहि एक नाहि मिटी अंधियारी । का चिराग या दिया= दे० 'अंधेरे घर का उजाला'। जग० ग , भा॰ २, पृ० १०६ । २ अधकार फैला देनेवाली । | अँधेरा उजाला---सम्रा पुं० [ हि०अँधेरा+उजाला ] एक खिलौना अधी। उ०-.-अँधियारी प्राई तहें भारी । दनुज सुता तिहि जो अबैत श्रर रगीन कागजो से बनता है। रात दिन का ते न निहारी |--- सूर०, ६१७४ । ३. दे० 'अधिारी' । ३०--- खिलना । । .. जेवन गज अपमर मद कीन्हें । अब ने रहै अंधियारी दीन्हें । विशेष---कागज को एक विशेष प्रकार से कई तह में लपेटकर बनाया चिन्ना०, पृ० १६४ ।। | हुशा एक प्रकार का खिलौनः जिसके भीतरी दो भाग सादे र अँधियारी’----वि० ० अधकारपूर्ण । उ०—अंधियारी भादों की | दो भाग रगीन होते हैं और जो हाथ की चारों उँगलियो की रात--सूर०, १०1१२ । || सहायत, से खोला और मूंदा जाता है। इससे कभी तो उसका अँधियारी कोठरी--सज्ञा स्त्री० [हिं० अँधियारी + कोठरी.] १ सादी अश दिखाई पडता है और कभी रनि। अंधेरा छोटा कमरा । २ पालर्क का अगला कहार जब रास्ते में । अँधेरा गुप---सच्चा पुं० [हिं० अंधेरा + कूप.] इतना अधिक अधकार है पानी देखता है तब पीछेवाले कहारों को सावधान करने के लिये कि कुछ दिखाई न दे। घोर अधकार, जैसे---इस कोठरी में ‘भघियारी कोठरी' कहेता हैं। ३ पट। उदर। गभस्थान । कोख । धरन। तो बिलकुल अंधेरा गुप है ( शब्द०)।, अँधियाली--वि० ० 'अधियारी' |------आधी रात को समा, वहीं अंधेरिया-सा ली० [सं० अन्धकार] १. अधकार । अँधेरा। उ०--- अँधियाली रान, मव अर सन्नाटा, इमपर बादलो की घेरघार, झलकि चमकि तह रूप विराजे मिटिगै सकल अंधेरियाँ री ।-- पमारने पर हाथ भी न झता 1-2ठ, १० ३२।" जग० ए ०, भा॰ २, पृ० १०६ ।, बँधुला)...नि दे० 'वर' । ३०---जैन, अंधूने भ्रमत खै कालु । अँधेरी १ -- सच्ची स्त्री० [हिं० अंधेरा +] {पू० अँधियरिया १ अध अघ्री ': सभी °ि । --प्राण ०,१० १८० । । कार। तिमिर । प्रकाश का अभाव! तम । अघियारी । उ०-~अँधेर--मसः पुं० ० अंधेरा" । उ० --- वहि देसवा में नित पूनिमा, मन्तिी कुज मे मिलती चद्रिका अंधेरी जैसे |--- आंसू पृ० ४८ । | क्वहु ने ३ अंधेर ।--दर श०भा० २, पृ० ६४ } २ काली रात । अधकार भरी रात्रि । | अंधेरना(j---झि ० ० [ अधेर 4- ना] अंधेरा कना। अधकार क्रि० प्र०-छाना ।---झुकना --दौटना --फैलना । मय करना । तमाच्छादित केन । उ ०-- अ, ख) सटपट । ३ अधिः । अधडे । ४. घोडो र वैलो की आँख पर डाला परी, नि ध प्राधे FT हेरि । मग लगै मघ्पनु लई भागन गली जानेवाला पद। अधारी ।। अधेरि |--विहारी र०, दो० ४५६ ।। क्रि० प्र०-~-डालना ---देना । अँधेरा--सङ्ग पुं० [सं० अन्धकार, प्रा० अधयार ] १. अधकार। मुहा०--अंधेरी डालना, अंधेरी देना = (१) किसी की अखिो को तम् । प्राश का अभद। उजाले का विलोम । उ०मान, | मूंदकर उसकी दुर्गति करना । इसी को केवल ओढाना भी कहते नाश, विध्वम् अँधेरा शून्य बना जे प्रकट अभाव ।---कामायानी, हैं। (२) श्रीख में धूल डालना। घाखा देना। प० १८ । २ घंधनापन। धुध । उ०——उसकी अखिो में । अधेरा छाया रहता हैं ( शब्द०)। अँधेरी--वि० प्रकाशरहित । अधकारयुक्त। बिना उजेल की। उ०—क्रि० प्र०-- करना ।--छाना ।—दीडना |--पहना।-फैलना। रजनी अँघरी हैं न सुभ ति थे री रच चोर' करे फ्री लखि मुख | --हना।। | ना लुकोवै तू।--दीन'० ग्र०, पृ० १३८ ।। यौ०--अँधेरो कोठरी= १. पेट) गर्भ । कोख । घरन । २ मुहा०== घेरा होना = प्रकाश के सामने से हट जाना। उजाला । गुप्त छोडना । | भेद । रहस्य । ३. छाया परछाई । उ०—-चिराग के सामने से हट जाओ, मुहा०--अंधेरी कोठरी का यार = गुप्त प्रेमी । जार। , तुम्हारा अवैरा पडता है ( शब्द०)। ४ उदासी । शोक । अँधोटी-: संज्ञा स्त्री॰ [ स० अन्ध+पटी, प्रा० अधवटी, अंधोटी, उ०--उसके मरते ही समाज में अँधेरा छा गया ( शब्द०)। अंधोटी ! वैल या घोडे की अखं वद करने का ढक्कन या अंधेरा--वि० अब कामय। प्रकाशरहिन । तमाच्छादित । । यौ०----अँधेर कुप = कुएं की तरह अँधेरा । वहुत गहरा अंधेरा। अँधौटा--संक्षा पुं० [सं० अन्ध + पट्टक, प्रा० अर्धवट्ट] दे० 'अँधोदी' । अँधेर पाख, अँधेरा पक्ष == कृष्ण पक्ष । वदी। मधेरे उजाले, । उ०—-रहट विसह एह मूढ मन दिएँ अँधटा वैल ---चिनाअँधेरे उजेले = अवेर सवेर। समय कुसमय । वक्त वेवक्त । । वली, पृ० १७५ । ' ३०--अच्छा जमादार अंधेरे उजाले समझ लूंगा |--किसानी, अँधौरी+---सद्या स्त्री० के० 'अम्हौरी'। पृ० ४८६ । अँधेरे महें,म है अंधेरे = सूर्योदय के पहले जब अँध्यारोम' पु० दे० अंधियार। उ०----दीपक हजारन अँध्यार * मनुस्, एक टूनरे का मुंह अच्छी तरह न , देख सकते हो । वटै लुनियतु हैं ।--ब्रजमाधुरी० पृ० ३०६ । । तडके । वडे मवैरे । । अँध्यारी--१७--सच्चा स्त्री॰ ६० 'अधियारी' । उ०---‘भई एक चार अपार संध्यारी --हम्मीर रा०, १० २० । पदा।।