पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/११६

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ड़िया ५५ अँदरसा मॅडिया--सबा जी० [ देश ] १ बाजरे की पकी हुई याल । २ विशेष-विपण में इसका प्रयोग साधु भाषा में केवल 'ज्वर' शब्द के पते पर लपेटा हुआ सूत । कुकडी । साथ और प्रातीय भाषाओं में कालसूचक शब्दों के साथ होता अँड अ सला पु० [ स० अण्ड, हिंदी, अॅड-+उआ (प्रत्य०) ] वह है; जैसे, अंतरा ज्वर । अँतरे दिन ।। पशु जो वधियों न किया गया हो । अड। यौ०--अंतरे खोतरे = बीच में नागा करते हुए । दूसरे तीसरे । मॅड -- वि० जो दधिया न किया गया हो । ग्रीड ।। । उ०—अंतरे खोतरै डडे करे, तालु नहाय प्रोस म परे । अँड आना--क्रि० स० [ स० अण्ड से नाम० ] वैन के अडकोश को दैव न मार पुत्र [न] इ मर' ।धाघ०, पृ० ४७ । | कुचलना जिसमें वह नटखटी न व रे और ठीक चले। दधियाना अंतराना" t-- क्रि० स० [सं० अन्तर से नाम०] १ अलग करना। बबिया करना। जुदा करना। २ भीतर के रना । भीतर ले जाना । मॅड आ बैल--सझ' पुं० [हिं० अङग्रा + बैल ] १ बिना वधिया। अँतराना(G)----क्रि० अ० अतर या भेद डालना । फर्क डालना । उ०क्यिा हुआ बैल । साँड । २ बहुत बड़े अडकोशवाला आदमी हो ही कहत धोख अंतराही । ज्यौ भी सिद्ध कहाँ परिछाही। | जो उसके वोझ मे चले न सके । ३ सुस्त आदमी । -जायसी ग्र० ( गुप्त ), पृ० २८४ ।। अँड वा--वि० दे० 'डेअर' । अँतरिख---सद्या पुं० दे० 'अतरिख। उ० --चद सुरुज श्री नखत अँड वारी--मज्ञा स्त्री० [स०अण्डज> अडअ>अडव>अँडउ --वारी> तराई । तहि उर अंतरिख फिरे सवाई !-—जायसी १०, पृ० एक प्रकार की वहुउ छोटी मछली । २२६।। | अँतरिछ--सज्ञा पुं० दे० 'अतरिच्छ' । उ०---ज़ाकी कुरिया अॅतरिछ अँतडी-- सज्ञा स्टी’ | प्रा० अ० अन्नड ] त । नली । १० 'अति' ।। छाई । सो हरिचद देखल नहि जाई --कबीर वी०, पृ० १२ । महा०----तडी टटोलना = १ भूर्य को समझना । उ ------जोरू तरीसा श्री० दे० 'नहीं'। टले गट ही, मी टट ले अंतही ( वहावत ) । २ रोग की पह मुहा०---अंतरी का वेल खोलना = जी भर खना। पेट भर खाना। चान व लय पट का दबावर दम्वना । श्रत जलना = पेट " कडी भूख मिटाना। प्रेतयां जननी जारी की भूख लगना । जलना। वहूत भूख लग्ना। अॅतड गले में पडना = कि सी अॅतरियो में अा लग्ना= दे० 'अंतरिय' जलना' । । अापत्ति में फसना । सव टग्रस्त होना । तडियो का बल अँतरीखा(@–सज्ञा पुं० दे० 'अतरिक्ष'--.-१'। उ०—- बहूत के फिरों खोलना = बहुत दिन के बाद भोजन मिलने पर खूब पेट में करहिं अंतरीखा। अहे जो लाख भए ते लीखा ।--पदु०, पृ० खाना। अॅतड़ियो को मसोसकर रह जाना = 'भूख की य ठिन १२० । तव लीफ सहना। अंतडियो में आग लगाना = दे० 'अनडी अतरौटा--संज्ञा पुं० [सं० अन्तरपट 1 महीन साड़ी के नीचे पहनने का जलना' । अंतडियो में बल पड़ना = अंतडियो का ऐठना या व पडा । वह अपडे का टुव डा जिसे स्त्रिया इसलिये कमर में दुखना ! पेट में दर्द होना। उ०--हँसते हँसते अॅतडियो में लपेट लेती हैं जिसमें महीन माडी के ऊपर से शरीर न दिखाई इल पटे गए। ( शब्द०)। दे। अम्तर । छनना। उ०-चोली चतुरानन ठग्यो अमर अंतर--भज्ञा पुं० [हिं० अतर ] दूरी । अतर । ३०--ग्रारोपित हार उपरना रातै । अतरौटा अवलोकि कै असुर महा मद माते | घणो थिय अॅनर उरस्थल कुमस्थल ग्राज (--बेलि० ६०, ६४। | ( हो ) --सूर०, १॥४४ । । अँतर--सज्ञा पुं० दे० 'इट्स' । अँतहकरण--सज्ञा पुं० दे० 'अतहकरण' । उ०—-वर नारि नेत्र निज अँतरजामी--वि० दे० 'अतरजामी'। उ० --कमल नैन करुनामय बदन विलासा, जाणिय अंतहकरण जई |--बेलि दू० १७२। सब ल अतरामी। विनय कहा करें सूर कर कुटिल कामी ।-- fवख(@+ -सधा पुं० [ सं०अन्तरिक्ष 1 प्रकाश । अतरिक्ष । सूर०, १।१२४ । उ०---दूजी अमर वेलि जग आई । जहाँ तहाँ अंत्रिख लपटाई । अँतरधान--वि० दे० 'अंतरधान'। उ०---ह्र अंतरधान हरि मोहिनी ---चित्रा०, पृ० १४२ । रूप धरि जाइ बन माँहि दीन्हें दिखाई ।---सूर ०, ८१० । अँथऊ---सझा १० दे० 'अथक'। अँतरपटq--संज्ञा पुं० [सं० अन्तरपट] १ भोट । झाड । उ०--सीय अॅथवना -क्रि०अ० दे० अथवना'। उ०—केइ यह वसत वसत भीख रावन कहे दोन्हीं। तू असि निठुर अंतरपट कीन्ही । - उजा।। गा सो चाँद अंथवा लै तारा ।—जायसी ग्र० (गुप्त), जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० ३२६ } २ छिपाव। दुराव । उ०-- पृ० २५५। । तास कौन अंतर पट जो अस पीतम पीउ [जायसो ग्र०, पृ० अंदरसा--सधा पुं० [फा० अदर + स० रस, अथवा स ० अन्न + रस ] १३८ । ३ कपडमिट्टी। कपडौट । उ०--का पूछौ तुम घातु एक प्रकार की मिठाई । उ०--सुदर अति सरस अंदर से । ते घृत निछोही, जो गुरु कीन्ह अंतरपट अाही !-—जायसी (शब्द॰) । दधि मधु मिलि सरसे।-सूर०, १०।१८३ । विशेष—यह मिठाई चौरठे या पिसे हुए चावल की बनती है । अतरा--संज्ञा पुं० [सं० अन्तरा]१ अझा । नागा । अतर । वीध । चौरैठे को चीनी के कच्चे शीरे में डालकर थोडा घी देकर पकाते क्रि० प्र०--करना । --डालना । --पडना । हैं । जव वह गाढ़ा हो जाता है तद उतारकर दो दिन तक २ वह ज्वर जो एक दिन नागा देकर आता है । क्रि० प्र०-- रखकर उसका खमीर उठाते हैं। फिर उसी की छोटी छोटी उ०--माना उसे अंतर प्राता हैं। ३ कोना । टिकिया बनाकर उनपर पोस्ते का दाना लपेटकर उन्हें घी अंतरा--वि• एक वीच में छोडकर दूसरा। में निकालते हैं। अंतर