पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/११३

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अंगुरिया वेल अँगोछ। अँगुरिया बेल--सझा पुं० [फा० अंगूर ] कालीन या नीचे के २ मनुष्य के पैर की सबसे मोटी उगली । . किनारे पर की एक बेल या नक्काशी जो अगूर की लता के अँगूठी--सज्ञा स्त्री० [हिं० अँगूठा + ई ( प्रत्य० )] १ उगली में ढग पर बनाई जाती है। पहनने का एक गहना। एक प्रकार का छा। मुंदरी । मुद्रिा । अंगुश्तरी । ३०- मी पहिरे नगजरी अँगूठी -- अँगुरी--सच्ची श्री० [सं० अङ्गरी ]१ उँगली । उ०—-तीजे मासे । हस्त पग होहि चौथ मास कर अँगरी सोहि । -- सूर०, ३।३। पदु०, पृ० ५० | क्रि० प्र०-घटकाना = दे० 'उँगली चटकाना' । उ०--योवन के यौ०---अँगूठी की नगीना=महत्वपूर्ण व्यक्ति या वन्तु । ३०-देव, मद सग ढरे अँग अग मुरे अँगुरी चटकायें ---देव ग्र०, जैसा ईश्वर ने यह सुदर अँगूठी के नगीने गा नगर वन्य है। पृ० १२। --मारतेंदु ग्र०, १० १, पृ० २८२ ।। २ वरक पीटने की चाँदी । यौ०-- अँगुरी की चांदी = यह चाँदी २ उगलो में लपेटा छु । मे ज़ाइन का तागा । सिल की चाँदी को खुव साफकरके बनाई जाती है । इर्मा को । विशेप-जुलाहे जब पाई को राछ में जडने लगते है ना ८१ई के थोडे पीटकर चांदी का वरक बनाते हैं। थोडे तागो को ऐंठकर उग्ली में लपेट लेते हैं और म्रि अँगुली--सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्ग,लो, प्रा० अगुली ] १. अँगुली । उंगली में से एक एक तागा निकालकर राछ में जोड़ते हैं। ईम उँगली । २ हाथों की सूड का अगला भाग । ३ एक नदी उँगली में लपेटे हुए तागे को अंगूठा या अंगूठी व ह्ते हैं।' का नाम । अँगूर --सज्ञा पुं० दे० 'ग्र गुर’। उ०—चूसे अधर अंगूर दोठ गान अँगष्ठ---सच्चा पुं० दे० 'अगुष्ठ । उ०—सुभग अँगुप्ठ अगली अविरल, पै प्रगट निसानी सी --भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ८ ६३ । कछुक अरुन नखज्योति जगमगति 1--तुलसी १०, पृ० ४१५ । अँगूर --सज्ञा पुं॰ [ १० अङ,र ] अकुर। अंवा । ३०-- १ अँगुसा-सच्ची पुं० [सं० अङ्श = टेढी नोक प्रा० अकु सय ] अकुर। जाने नैन रस, हिरदै प्रेम अंगूर !-—जायसी ( शब्द०)। अँखुमा। अँगे -क्रि० वि० [ सं० अग्रे, प्रा० श्रगे] अागे । भविष्य में । में गुसाना--क्रि० अ० [हिं० 'अँगुसा से नाम० ] वोए हुए अनाज उ०--- जैमा अंगे हानहाना है वाम --दक्विनी०, पृ० ७६।। का अँखा फोडना । जमना । अकुरित होना । अँखु प्रना। अँगेजना--क्रि० स० [सं० अङ्ग = शरीर + एज= हिलना, कॅपना ] अँगुस--संज्ञा स्त्री० [हिं० अँगुसा+ई (प्रत्य०)] १ हुल का फाल । १ सहना । घरदीपत पारना । उठाना । ३०----ह मका काम का २ सोनारों को वकनाल या टेढी नली जिससे दिए की लौ को सुखी सुदर, कौन सा अंग दुव अंगेजे पर।--चोखे, पृ० २१ । फेंककर टाँका जोडते हैं। २ अगीकार करना । स्वीकार करना। ४०--इक मरियै कौं अँगूठा--सच्चा पुं० [सं० अङ्गष्ठ, प्रा० अगुठ्] १ मनुष्य के हाथ की | छाडि कहा जो नाहि अंगेज्य }--२(नामर, मा० १, पृ० ८०) सबसे छोटी और मोटी उँगली। पहली उँगली जिससे दूसरा अॅगेट -सज्ञा स्त्री॰ [ सै० अङ्ग] अगों की दीप्ति या याति । उ०-- स्थान तर्जनी का है। तर्जनी की बगल में छोर पर की वह (क) एडी ते सिखा लो है अनूठिए गं मैट अछी --रमखान, उँगली जिसका जोड हथेली में दूसरी उँगलियों के जोडो के पृ० १२० । ( ख ) सांवरे छैल की प्रार्छ। अंगेट पे काम नीचे होता है। उ०--हथफूल पीठ पर करके घर, उँगलियाँ करोरिक वारियै जोहि के --घनानद०, पृ० ४७ । मुदरियों से सव भर, आरसी अँगूठे में देकर '--ग्राम्या, अँगेठा--सज्ञा स्त्री० दे० ' गीठी'। १० ४० | अॅगठी+--सज्ञा स्त्री० दे० 'अँगीठी' । विशेप--मनुष्य के हाथ में दूसरे जीवों के हाथों से इस अंगूठे की अँगेरनापु)---क्रि० स० [ १० अङ्ग = देह + ई = जाना, अमेया स० बनावट में घड़ी भारी विशेपता है। यह बडो सुगमता से अङ्ग = स्वीकार या स० अङ्गीकरण, प्रा० अगअरण यो अगरण] इधर उधर फिरता है और शेप चार उंगलियों में से प्रत्येक १ अगीकार करना । स्वीकार करना । मजूर वरना । २ सनी पर सटीक वैठ जाता है। इस प्रकार यह पकड़ने में चारों वरदाश्त करना । उँगलियों को एक साथ भी और अलग अलग भी सहायता अँगोछना---क्रि० स० [ स० अङ्गोच्छन] गीले कपड़े से देह पो ना। देता है । विना इसकी शक्ति और सहायता के उगलियाँ शरीर पर गीला चा भीगा वम्व २ख र मलना। गीला कपडा कोई वस्तु अच्छी तरह नहीं पड सकती । फेरकर वदन साफ करना । उ०—पत पट लै लै के - अंगात मुहा०-~-गूठा चूमना= १ भादर करना । विनय प्रकट करना। सरार करु कजन स पोछत भुसुङ गजराज की !--रत्नाकर, २ अधीन होना। ३ खुशामद करना। सुश्रुपा करना। भा० २, पृ० १००। अंगठा चुसना - धडा होकर बच्चों की सी नासमझी करनी। गोळा-संज्ञा पुं० [ स ० अङ्गोच्छ! [ जी० अँगे छो][पू० गमछाअँगूठा दिखाना = १ किसी वस्तु को देने से अवज्ञापूर्वक नहीं। करना। २ किसी कार्य को करने से हट जाना। किसी कार्य को गमछी ] १ दह पोछने को कपडा। तीलिया । २ ऊपर रखने के करने से अस्वीकार करना । ३ अवज्ञा करना। ४ चिढाना । लिये एक कपडे का टफडा । इसे प्राय लेग कधे पर रखते हैं। उ०—ऐसी उपाय गई निमुकाय, चितं मुमुकाय दिखाय अंगूठो। उपरना। उपवस्त्र । उ०—वासने टाँकि अंगोछा, डा। ह्वाँ से भाजन काढि निकारा। --रत्न०, पृ० १६८। --सुधानिधि, पृ० । अँगूठा नचाना = चिढ़ाना । अँगूठे पर " कि० प्र०—लेना = पछन । उ०—-चरन पखारि अंगोछा लीन्हा। मारना = तुच्छ समझना। परवाह न करना। । | --कवीर सा० ।